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चुनाव का बदलता रूप

(इस आर्टिकल में चुनाव के स्वरूप में जो वीभत्स बदलाव हो रहे हैं उन्हें कैसे सुधारा जाए, इसकी चर्चा की गई है।)  चुनाव को एक लोकतांत्रिक देश में राष्ट्रीय पर्व का दर्जा मिला हुआ है। एक लोकतांत्रिक देश को भली-भांति सुचारू रूप से चलाने के लिए यह एक प्रभावशाली शस्त्र की तरह काम करता है लेकिन आधुनिक समय में इसमें न चाहते हुए भी कुछ अवांछित बदलाव आते जा रहे हैं जिससे इसका प्रभावशाली रूप समाप्त होता जा रहा है। आइए उनमें से कुछ प्रमुख बिंदुओं की चर्चा की जाए। चुनाव के प्रचार लिए पैसे और संसाधनों का दुरुपयोग आजकल लगभग जिसके पास पैसा होता है वही चुनाव में खड़ा होने की सोच लेता है, समाज सेवा के लिए नहीं बल्कि इस पैसे को लगा कर चुनाव जीतने के बाद अधिक से अधिक पैसा कमाने के लिए। चुनाव में खड़ा होने के बाद अपनी जीत के लिए लोगों से लुभावने वादे करने और इन वादों का प्रचार करने के लिए लोगों तक अपने कार्यकर्ताओं को पहुंचाने, रेलियां करवाने आदि में अत्यधिक धन का खर्च होता है। यदि इस पैसे को समाज की सेवा में सीधे खर्च किया जाए तो कई लोगों का भला हो सकता है। 2. जाति और धर्म के नाम पर चुनाव का प्रचार आज के चु

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