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चुनाव का बदलता रूप

(इस आर्टिकल में चुनाव के स्वरूप में जो वीभत्स बदलाव हो रहे हैं उन्हें कैसे सुधारा जाए, इसकी चर्चा की गई है।)  चुनाव को एक लोकतांत्रिक देश में राष्ट्रीय पर्व का दर्जा मिला हुआ है। एक लोकतांत्रिक देश को भली-भांति सुचारू रूप से चलाने के लिए यह एक प्रभावशाली शस्त्र की तरह काम करता है लेकिन आधुनिक समय में इसमें न चाहते हुए भी कुछ अवांछित बदलाव आते जा रहे हैं जिससे इसका प्रभावशाली रूप समाप्त होता जा रहा है। आइए उनमें से कुछ प्रमुख बिंदुओं की चर्चा की जाए। चुनाव के प्रचार लिए पैसे और संसाधनों का दुरुपयोग आजकल लगभग जिसके पास पैसा होता है वही चुनाव में खड़ा होने की सोच लेता है, समाज सेवा के लिए नहीं बल्कि इस पैसे को लगा कर चुनाव जीतने के बाद अधिक से अधिक पैसा कमाने के लिए। चुनाव में खड़ा होने के बाद अपनी जीत के लिए लोगों से लुभावने वादे करने और इन वादों का प्रचार करने के लिए लोगों तक अपने कार्यकर्ताओं को पहुंचाने, रेलियां करवाने आदि में अत्यधिक धन का खर्च होता है। यदि इस पैसे को समाज की सेवा में सीधे खर्च किया जाए तो कई लोगों का भला हो सकता है। 2. जाति और धर्म के नाम पर चुनाव का प्रचार आज के चु

संतोष: फलदायक:

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 (इस आर्टिकल में हम 'संतोष: फलदायक:' इस कथन की समीक्षा करेंगे और जानेंगे कि इसके अनुसार चलना जीवन में लाभप्रद है अथवा नहीं।) संतोष: फलदायक: ' संतोष: फलदायक: ' का अर्थ है संतोष अर्थात 'किसी चीज से तृप्त अथवा जितना हो उसमें तृप्त रहना लाभदायक होता है।'वास्तव में जिसे जीवन में जितना ही अधिक वस्तुओं की प्राप्ति होती जाती है, वह 'और चाहिए और चाहिए' की महत्वाकांक्षा से पीड़ित होता जाता है लेकिन ऐसा करना उसके लिए कई परेशानियों को जन्म देता है। एक महत्वाकांक्षी मनुष्य अथवा जीव ना सिर्फ मानसिक रूप से बल्कि शारीरिक रूप से भी परेशान रहता है। इस प्रकार ना तो उसका वर्तमान जीवन सुखी रहता है ना ही मरने के बाद उसकी आत्मा को शांति मिलती है, इसलिए शास्त्रों में कहा गया है, ' संतोष: फलदायक:'  जो भी मनुष्य इस विचारधारा को जीवन में अपनाकर अपने लिए निर्धारित सभी कार्यों को प्रसन्नता से करता है, वह अपने जीवन में हमेशा सुखी रहता है। संतोष: फलदायक: विचारधारा से जीवन में लाभ जो कोई भी श्रद्धा से इस बात को स्वीकार करता है कि उसके पास जितना है, उतने में वह संतोष के साथ जीवन

Boss is always right

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 (इस आर्टिकल में 'Boss is always right'इस कथन की समीक्षा की गई है।) हम सदैव यह कथन सुनते रहते हैं कि मालिक सदैव सही ही होता है (' Boss is always right ')भले ही उसकी बात गलत ही क्यों ना हो लेकिन जो उसके नेतृत्व में कार्य करने वाले कर्मचारी होते हैं, उन्हें उनकी बात माननी ही पड़ती है और वह इस कथन को कह कर अपने आप को दिलासा दे लते हैं,' Boss is always right.'आइए हम इस बात की समीक्षा करें कि आखिर हम ऐसा क्यों कहते हैं। अपनी नौकरी बचाने के लिए जब भी मालिक अपने कर्मचारियों से अनावश्यक कोई विवाद करता है अथवा उसे किसी ऐसी गलती के लिए डांटता है, जो उसने ना की हो, उस समय कर्मचारी अपने मालिक की कड़वी- से- कड़वी बात को भी सह जाता है और अपनी सफाई के लिए कुछ नहीं कहता। ऐसे समय यदि वह कुछ कहेगा तो मालिक उसे नौकरी से निकाल देगा इस बात का यदि कर्मचारी को भय रहता है तो वह चुपचाप अपनी गलती ना होने पर भी उसे स्वीकार करके अपने आप को दिलासा देते हुए यह कहता है कि ' Boss is always right.' चापलूसी करने के उद्देश्य से कई लोग अपने मालिक की चापलूसी करने के लिए उसकी हर गलत बात पर

बलिया एक सुंदर शहर

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 ( इस आर्टिकल में बलिया की सुंदरता का चित्रों के साथ वर्णन किया गया है।) बलिया एक सुंदर शहर बलिया बलिया उत्तर प्रदेश में स्थित एक जिला है, जिसका एक सुनहरा इतिहास है। लोग इसे बागी बलिया भी कहते हैं। सबसे पहले स्वतंत्रता बलिया जिले को ही प्राप्त हुई थी और शायद इसी के कारण यह इतना सुंदर जिला है, आइए इसकी सुंदरता देखते हैं देखिए उपर्युक्त चित्र को, यह है हमारी बलिया की सुंदरता का एक दृश्य, इसे देखकर ही मन प्रफुल्लित हो जाता है। इस चित्र को देखकर पता चलता है की हमारे योगी जी, जो गायों से बहुत ज़्यादा प्रेम करते हैं, उन्होंने गौ सेवा का कितना अच्छा इंतजाम करवाया है। इस दृश्य के अनुसार न तो गायों के भोजन की कमी है और ना ही रोजगार की और प्लास्टिक का तो कितना अच्छा उपयोग हो रहा है। इस दृश्य में आधा रोड कचरे के कारण जाम हो गया है। लेकिन देखने की बात यह है कि हमारे बलिया के लोग कितने बुद्धिमान है क्योंकि जैसे चींटी किसी भी बाधा के कारण नहीं रुकती अपना रास्ता बदल कर मंजिल तक पहुंच जाती है वैसे ही हमारे बलिया के लोग आधे रोड के जाम होने की परवाह नहीं करते और अपना रास्ता बना ही लेते हैं। वाकई! हमारा

बिजली की चोरी, गरीब की मजबूरी

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 (इस आर्टिकल में मेहंगी बिजली की चोरी के विविध कारणों पर प्रकाश डाला गया है।) बिजली की चोरी, गरीब की मजबूरी आज के समय में ऊर्जा का सबसे सस्ता और सुलभ साधन बिजली है। बिजली लोगों के दैनिक जीवन की एक मूलभूत आवश्यकता है। इस तकनीकी युग में कई मशीनें बिजली के बिना तो चल ही नहीं सकती। छोटे-छोटे कमरों में रहने वाले लोगों को गर्मी से बचने के लिए पंखा तो चलाना ही है, उनको चलाने के लिए बिजली चाहिए, अंधेरे को दूर करने के लिए बिजली  चाहिए, मोबाइल आदि चार्ज करने के लिए बिजली ही चाहिए! लेकिन बिजली इतनी महंगी होती जा रही है कि हर कोई उसे खरीद नहीं सकता, इसलिए बिजली की चोरी करना कुछ लोगों के लिए तो मजबूरी है और कुछ लोगों का शौक। बिजली हमारी जरूरत क्यों? आधुनिक समय में  रोटी कपड़ा और मकान के बाद बिजली भी एक मूलभूत आवश्यकता बन गई है, क्योंकि आज अधिकतर काम बिजली से ही किए जाते हैं। कई उद्योग ऐसे हैं जो बिजली के बिना लगाए ही नहीं जा सकते। चाय फोटोस्टेट की छोटी सी दुकान हो या आटा चक्की की मशीन, बिजली के बिना इनका चलना कहां संभव है। ऑनलाइन जगत में जहां हर काम मोबाइल के ऐप से ही होता है, उस मोबाइल को चार्ज कर

नारी तेरे कितने रूप(निबंध)

 (इस आर्टिकल में सही मायने में नारी को किस प्रकार शिक्षित किया जाना चाहिए तथा नारी के अनेक रूपों के  बारे में  जानकारी दी गई है।) नारी का महत्व नारी समाज और परिवार का एक अभिन्न अंग है। वह माता, भगिनी, पुत्री तथा अन्य अनेक रिश्तो के रूप में परिवार के लिए आवश्यक अपने सभी कर्तव्य निभाती है। समाज में शिक्षित होकर अलग-अलग पदों पर आसीन होकर समाज के कल्याण के लिए नए-नए निर्णय लेती है। नारी यदि शिक्षित है, संस्कारी है, तो समाज में भलाई का संचार करेगी। परिवार में सुख-संपदा का प्रतीक बनेगी। समाज और परिवार के लिए सही और सटीक निर्णय लेगी। यही नारी यदि कुसंस्कारी हो अर्थात उसमें अलगाव और बिखराव के संस्कार हैं, वह स्वार्थी है, धन लोलुप है, तो ऐसी स्त्री नित नए स्वांग रचकर दुराचार एवं हिंसा फैलाने में जिम्मेदार मानी जाती है। नारी तेरे कितने रूप नारी समाज का एक अभिन्न अंग है, जिसके बिना किसी समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती। लेकिन नारी के समाज में अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं। कभी तो नारी समाज का उद्धार करने वाली सावित्रीबाई फुले बन जाती है, तो कभी विश्वासघात करके परिवार और समाज का विनाश करने वाली

संशयात्मा विनश्यति.... लेकिन संशय की भी आवश्यकता है!

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 (संशयात्मा विनश्यति... यह भगवत गीता के चौथे अध्याय का 40 वां श्लोक है। इस आर्टिकल में इसकी आलोचनात्मक व्याख्या की गई है तथा आज के युग में इसके महत्व का वर्णन किया गया है।) अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च   संशयात्मा    विनश्यति। नायं लोकोस्ति न परो न सुखं संशयात्मन:।।               (भगवत गीता अध्याय- 4.ज्ञान                कर्म सन्यास योग;                                श्लोक- 40) श्लोक का भावार्थ उपर्युक्त श्लोक भगवान श्री कृष्ण द्वारा रचित श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय का 40 वा श्लोक है। इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कर्मयोग का संदेश देते हुए ज्ञान को सर्वश्रेष्ठ बताते हैं तथा उस ज्ञान पर शंका करने वालों के लिए यह कहते हैं -   "हे अर्जुन, विवेकहीन और श्रद्धा रहित संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से अवश्य भ्रष्ट हो जाता है ऐसे संशय युक्त मनुष्य के लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है।" श्लोक की व्याख्या जब अर्जुन अपने कर्तव्य पथ से विचलित होने लगता है अर्थात युद्ध करने से इंकार कर देता है, तब भगवान श्रीकृष्ण उसे अनेकानेक ज्ञान की बातें बताते हैं, जिससे अर्जुन का ज्ञ

जल है तो कल है।

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  (इस आर्टिकल में जल का हमारे जीवन में महत्व बताते हुए उसके संरक्षण के उपायों को सुझाया गया है।) जल है तो कल है। जल है तो कल है, इसका तात्पर्य है, यदि जल, जो हमारे जीवन के अस्तित्व लिए आवश्यक है, हमें आज भी उपलब्ध है, भविष्य में भी जल हमें मिलता रहेगा, तो ही हम जीवित रह सकते हैं। जल के बिना ना वर्तमान में जीना संभव है और ना ही भविष्य की कल्पना करना संभव है।इस छोटे से वाक्य का अर्थ हमारे वर्तमान के साथ-साथ हमारे भविष्य से भी है। हमारा भविष्य सिर्फ हमारा ही नहीं, हमारी आने वाली पीढ़ियों की धरोहर है, यदि उस भविष्य में जल ना हो, तो इसके सबसे अधिक जिम्मेदार हम ही होंगे। जल की आवश्यकता क्यों? कहा जाता है कि, "जल ही जीवन है।"क्योंकि जल के बिना हम अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकते, चाहे मानव हो, पशु- पक्षी हों अथवा पेड़ पौधे हों, सब का अस्तित्व जल पर ही टिका हुआ है। हमारे दैनिक जीवन में प्रत्येक कार्य भोजन पकाने से लेकर, साफ- सफाई, खेती-बाड़ी जैसे सभी कार्यों के लिए जल आवश्यक है। विशेषकर पीने के लिए तो पानी हर किसी को चाहिए! किसी प्यासे को पानी पिलाने से जो सुख मिलता है, उसका तो वर्णन

मास्क का सही प्रयोग

 (मास्क आज के आधुनिक समय में सब की जरूरत बन गया है, इस आर्टिकल में इसका सही उपयोग कैसे करना चाहिए और कितनी सावधानियों से करना चाहिए, यह बताया गया है।) मास्क की जरूरत क्यों? आज हमारा पर्यावरण कुछ हद तक दूषित हो चुका है, वाहनों से निकलने वाले धुएं, धूल, छोटे-छोटे जीवाणु, वायरस यह सभी हमारी हवा में सदैव मौजूद रहते हैं, कहीं कम मात्रा में तो कहीं अधिक मात्रा में। इन सभी से बचाव के लिए हम बोलते समय अथवा सांस लेते समय अपने मुंह और नाक को किसी ना किसी कपड़े से ढक लेते हैं, हमें ऐसा करना भी चाहिए! जिस कपड़े की सहायता से हम अपने मुंह और नाक को ढक कर इन सभी दूषित तत्वों से अपनी रक्षा करते हैं, उस कपड़े को हम मास्क कह सकते हैं। मास्क के प्रकार मास्क कई प्रकार का हो सकता है, एक बड़ा-सा  रुमाल जिससे हम अपने नाक और मुंह को ढंक सकते हैं, उसे भी एक तरह का मास्क ही कहा जाएगा। आजकल अनेक प्रकार के disposal mask भी मार्केट में उपलब्ध हो रहे हैं।सूती तथा अन्य प्रकार की कपड़ों से भी मास्क बनाए जा रहे हैं। इनमें से किसी भी प्रकार के मास्क को पहनने का एक ही उद्देश्य है, अपने आप को वायरस, जीवाणु तथा दूषित हवा

स्वास्थ्य जरूरी या स्वाद

  (इस आर्टिकल में स्वास्थ्य और स्वाद का तुलनात्मक विवरण दिया गया है तथा इस बात को स्पष्ट किया गया है ,कि अपने स्वाद को स्वास्थ्य के अनुसार कैसे परिवर्तित किया जा सकता है।) स्वास्थ्य जरूरी है या स्वाद स्वाद और स्वास्थ्य एक ही सिक्के के दो पहलू के समान हैं, यदि केवल स्वाद के बारे में सोचा गया, तो निश्चित ही स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर पड़ेगा और यदि केवल स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर कड़वी और औषधि युक्त भोजन का ही सेवन किया जाए, तो जीवन नीरस बन जाता है। अतः हमें स्वाद और स्वास्थ्य दोनों का ध्यान रखना होगा, लेकिन एक संतुलित मात्रा तक। जैसे माता- पिता अपने बच्चों को बिना पक्षपात के इस प्रकार उनका ध्यान रखते हैं, कि किसी भी बच्चे का अहित नहीं होने देते। आवश्यकता पड़ने पर कभी एक बच्चे को निराश भी कर देते हैं, डांट भी देते हैं क्योंकि उसी में उसका भला छिपा होता है। ठीक इसी प्रकार अपने जीवन में हमें स्वास्थ्य और स्वाद के साथ भी व्यवहार रखना होगा। केवल स्वस्थ व्यक्ति ही अपने जीवन में हर प्रकार का आनंद ले सकता है,  चाहे वह भोजन का हो अथवा मनोरंजन का। एक ऐसा बीमार व्यक्ति जो दिन- रात बिस्तर पर पड़ा

भारत में भ्रष्टाचार

(भारत में भ्रष्टाचार एक आलोचनात्मक निबंध है, इसमें भारत में किस तरह हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार व्याप्त हो चुका है और उस से मुक्त होने का क्या उपाय है, इसका वर्णन किया गया है।) भारत में भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार से तात्पर्य है, जिसका आचरण या आचार -विचार भ्रष्ट हो चुका है। वास्तव में जिसका विचार भ्रष्ट हो चुका है, वही अपना कर्तव्य या तो नहीं निभाता या निभाने के बदले में दूसरों से किसी फल की आशा करता है। आज भ्रष्टाचार, जिसे रिश्वतखोरी भी कहते हैं या फिर घूस लेना भी कहते हैं, भारत में एक रोग की तरह हर क्षेत्र में, ऊपर से नीचे सभी वर्ग में फैलता ही जा रहा है। यह भ्रष्टाचार अमरबेल की तरह भारत के विकास का रस पीकर मजबूत पकड़ बनाता जा रहा है। यदि आज हमने इसकी जड़ों को काटना शुरू नहीं किया तो यह भ्रष्टाचार अपनी जड़ें इतनी मजबूत बना लेगा, कि इसको मिटाना असंभव हो जाएगा। जो व्यक्ति अपना वह काम, जिसे करना उसका कर्तव्य है और उसके बदले में उसे पहले से ही सैलरी मिलती है, लेकिन फिर भी उस काम को करने के लिए सामने वाले से पैसे या और कोई संपत्ति लेता है, तो वह भ्रष्टाचार करता है। अब चाहे कोई से कम मात्रा में कर

कोविड-19 का भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर

कोविड-19 और लॉक डाउन का भारत एवं उसके नागरिकों पर प्रभाव कोविड-19 या कोरोनावायरस भारत में दिसंबर 2019 में आ चुका था, इसका उद्गम स्थान क्या था और भारत में यह कैसे पहुंचा यह अभी तक एक विवाद का विषय बना हुआ है। इस वायरस ने हम सभी को घरों में कैद कर दिया और बहुत लोगों की तो रोजी-रोटी ही छीन ली। इस वायरस की चपेट में ना आ जाए इस बात से डर कर बहुत से लोगों ने अनेक वस्तुओं का अविष्कार भी किया। नई -नई दवाओं का शोध भी हुआ और नई योजनाओं का उद्गम भी हुआ।इन सब के बावजूद हमारी अर्थव्यवस्था डामाडोल हो गई। सबसे पहले दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में कोविड-19 के मरीज पाए गए । मार्च 2020 में कोरोनावायरस का प्रसार अभी प्रारंभ ही हुआ था तभी हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने पूरे देश में लॉकडाउन घोषित कर दिया । 23 मार्च को रात्रि को उनका संदेश आया। उन्होंने देशवासियों से सहयोग करने का आवाहन किया और 24 मार्च से 21 दिन के लिए पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया गया। लॉकडाउन भारत में पहली बार लगा था, इसलिए किसी को भी इसका किसी प्रकार का कोई अनुभव नहीं था और ना ही इसे पूर्व नियोजित ढंग से लागू किया गया। जो जहां था, जिस

प्लास्टिक का विकल्प कितना जरूरी

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प्लास्टिक का विकल्प कितना और क्यों ज़रूरी (इस आर्टिकल में प्लास्टिक हमारे जीवन में किस तरह समा गया है, यह बताया गया है तथा उससे होने वाले नुकसान का वर्णन करते हुए प्लास्टिक के विकल्प को प्रयोग में लाने पर ज़ोर दिया गया है) आज का युग प्लास्टिक युग प्राचीन समय से ही धातु के उपयोग एवं उपलब्धता के अनुसार समय सारणी के भी अनेकों नाम रखे गए हैं। जैसी पाषाण युग, लौह युग, कांस्य युग, ताम्र युग, स्वर्ण युग आदि। आज हर क्षेत्र में जिस प्रकार प्लास्टिक का बढ़-चढ़कर प्रयोग किया जा रहा है, आज के युग को प्लास्टिक युग कहना कुछ गलत नहीं होगा। रसोई में प्रयोग किए जाने वाले डिब्बों से लेकर कृषि और बाजार हर जगह प्लास्टिक ने अपनी एक अलग पहचान बना ली है। यदि हम रसोईघर की बात करें तो छोटे-छोटे प्लास्टिक के डिब्बे, हमारा मिक्सर -जूसर ,फ्रिज आदि अधिकांशतः  प्लास्टिक का  ही बना होता है। हमारे बाथरूम में प्रयोग की जाने वाली बाल्टी, मग, नल की टोटी, कपड़े धोने का ब्रश, सोप केस आदि अधिकांशतः प्लास्टिक का ही होता है।उसी तरह हमारे घर में प्रयोग की जाने वाली अधिकांश वस्तुएं जैसे कुर्सी -मेज, घर के डेकोरेशन में प्रयोग क

बेरोजगारी में पनपता रोजगार

(" हर व्यक्ति जिसके पास करने को ऐसा कोई काम नहीं जिससे वह धन कमा सके बेरोजगार है।"कुछ ऐसे भी बेरोजगार होते हैं, जो अन्य बेरोजगारों को रोजगार दिलाने के लिए धोखाधड़ी करके अपने लिए रोजगार का जरिया बनाते हैं, कुछ ऐसे ही उदाहरण इस आर्टिकल में दिए गए हैं।) बेरोजगारी में पनपता रोजगार बेरोजगारी वर्तमान समय की मुख्य समस्याओं में से एक है ।देश में सब को रोजगार मिलेगा ,यह अनोखा सपना लगता है। बढ़ती हुई जनसंख्या, वर्तमान शिक्षा प्रणाली और सरकारी नौकरी के प्रति युवाओं का रुझान, बेरोजगारी को बढ़ाने वाले प्रमुख कारक हैं। हर बेरोजगार का एक अनोखा सपना होता है, कि वह एक अच्छी नौकरी मिलने के बाद  अच्छी सुख -समृद्धि से भरी हुई जिंदगी बिताएगा और अपने उन सभी सपनों को पूरा करेगा जिन्हें वह अपने पढ़ाई के समय से ही देखता आया है। इस सपने को पूरा करने के लिए वह दिन-रात  एक कर देता है । ऑफ-लाइन से लेकर ऑनलाइन तक सारे फॉर्म भरता है, परीक्षाओं के सेंटर जहां भी पड़े, वहां जाने के लिए बसों और ट्रेनों में धक्के भी खाता है ,असफल होने पर वह फिर से तैयारी करता है और हर वह कोशिश करता है ,जिससे वह अपना देखा हुआ सप