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पुरुषार्थी बनो, कर्म करो।

(इस कविता में कर्म करके जीवन में आगे बढ़ने पर जोर दिया गया है, कर्म ना करने और करने का परिणाम भी बताया गया है।) पुरुषार्थी  बनो, कर्म करो  कर्म से ही भाग्य बनता है। दृढ़ संकल्प हो प्रयत्न करो  बिगड़ा भाग्य भी संवरता है। क्यों अपनी गलतियों के लिए दूसरे को गलत ठहराते हो बिना   कर्म   किए   नए-नए सुनहरे  सपने  सजाते   हो। बिना पुरुषार्थ के जीवन में कुछ मिलता नहीं  बिना   ठोकर  खाए  जीवन  निखरता  नहीं। सच्चाई की  कड़वी  बातों को जीवन में  अपनाओ तो, अपनी गलतियों को सुधार कर आगे कदम बढ़ाओ तो। खुली   आंखों  से  देखा  हुआ  सपना भी  सच  होगा, दृढ़ निश्चय और  मेहनत को अपना साथी बनाओ तो। अगर हमने मेहनत किया, जाने के बाद भी हमारी बातें  होंगी, हमारा भी इतिहास होगा, कितने ही दिलों में हमारी यादें होंगी। जीवन तो सफल होगा ही, मरकर भी किसी के काम आएंगे, पूरी  दुनिया को ना  सही कुछ  लोगों को तो  हम याद आएंगे।