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प्राइवेट नौकरी बेवफा सनम है। (हिंदी कविता)

 प्राइवेट नौकरी बेवफा सनम है। --(हिंदी कविता) प्राइवेट नौकरी बेवफा सनम है। इसके नखरे कहां, किसी से कम हैं। कभी गिफ्ट में ओवरटाइम मांगे, कभी सैलरी की कटाई मांगे, नए - नए रूल्स ने किया नाक में दम है। माना   सरकारी    नौकरी,  पत्नी की तरह साथ निभाती है। पर सबको कहां मिल पाती है। पढ़े- लिखे और अनपढ़ सब हैं,  इसके दीवाने और परवाने। इसको पाने के वास्ते  लंबी उम्र निकल जाती है। जैसे महबूबा सजती है,  अपने महबूब के लिए। हर युवा पढ़ता है, डिग्रियां लेकर घूमता है,  नौकरी पाने के लिए। कोई बेवफा सनम के सहारे ही,  अपनी ज़िंदगी बिता देता है। तो, किसी को पत्नी भी मिल जाती है। अक्सर पत्नी का सुख , रिश्वतखोरी  को  ही   मिलता है। हर युवा को ये मौका कहां मिलता है? कोई बेवफा सनम के लिए भी मचलता है, उसी के साथ गिरता और संभलता है! ऐ प्राइवेट नौकरी तू किसी से बेवफाई ना करना, तुझसे ही कईयों के घर का चूल्हा जलता है। अब हमें तेरे नखरे भी सुहाने लगते हैं। क्योंकि तेरे साथ रहना अब अच्छा लगता है।

मच्छर महाराज की स्तुति

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  (इस कविता में मच्छर की स्तुति के रूप में उसके होने का कारण, स्वच्छता तथा मच्छर से बचने के लिए क्या करना चाहिए, इसे हास्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है।) मच्छर महाराज की स्तुति क्या कभी आपने सोचा है, कि भगवान ने मच्छर जैसा जीव क्यों बनाया होगा? शायद.... जो लोग गंदगी करते हैं, और सफाई करना भूल जाते हैं, उन्हें सज़ा देने के लिए। क्योंकि प्रकृति में कुछ भी महत्वहीन नहीं है। सजीव, निर्जीव हर वस्तु का कोई ना कोई अपना महत्व है, तो फिर मच्छर महत्वहीन कैसे हो सकता है? तो आईए इन मच्छर महाराज की स्तुति करें, जिनकी उपस्थिति हमें साफ- सफाई करने का संदेश देती है।... मंत्र-"ओम मच्छर देवाय नमः" हाथ जोड़कर हम सब करते, रोज तुम्हारा ही गुणगान। जय- जय मच्छर महाराज जय- जय मच्छर महाराज।। खून हमारा चूस-चूस करते हो, तुम दुनिया पर राज। मार्टिन, कछुआ, गुडनाइट लेकर हम तो तुम्हें मनाएं आज। जय- जय मच्छर महाराजा, जय- जय मच्छर महाराज।। अद्भुत शक्ति है तुममें, जो करती है सबको हैरान। डेंगू, मलेरिया के तुम दाता सब रोगों की तुम हो खान। जय- जय मच्छर महाराजा, जय- जय मच्छर महाराज।। कूड़े- करकट में तुम रहते, ल

रोग भुलक्कड़ी

 छोटी मोटी बातें भूलना यह तो आम बीमारी है, पर रोग भुलक्कड़ी आज के युग में एक महामारी है। मंत्री जी कहते थे ,"वोट पाकर भला करुंगा देश का, खुशियों से झोली भर दूंगा देश के हर गरीब का। सब को उनका हक दूंगा, आएगा धन स्विस बैंक का।" सत्ता पाकर भूल गए सब वादें, रोग लगा उन्हें भुलक्कड़ी ‌का। दरोगा जी ने ट्रेनिंग के वक्त ,शपथ लिया था देशभक्ति का। अनुशासन के डंडे से बुराइयों को दे मात , सेवा करूंगा जनशक्ति का। भर्ती के बाद जब वर्दी पहनी ,उन्हें ध्यान रहा बस सैलरी का। रिश्वत लेते वक्त सारी बातें भूल गए , रोग लगा उन्हें भुलक्कड़ी ‌का। बचपन में हमने सीखा था , "स्वच्छता और सफाई है कितनी जरूरी।" इनके अभाव में होते हैं रोग बड़े-बड़े, हो जाती है ज़िंदगी अधूरी। फिर भी हम जल ,हवा और धरती को गंदा करते हैं, नहीं सोचते देश का; बीमार हैं, परेशान‌हैं। पर याद नहीं वो सीखी बातें, हमें लगा रोग भुलक्कड़ी का।