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पुरुषार्थी बनो, कर्म करो।

(इस कविता में कर्म करके जीवन में आगे बढ़ने पर जोर दिया गया है, कर्म ना करने और करने का परिणाम भी बताया गया है।) पुरुषार्थी  बनो, कर्म करो  कर्म से ही भाग्य बनता है। दृढ़ संकल्प हो प्रयत्न करो  बिगड़ा भाग्य भी संवरता है। क्यों अपनी गलतियों के लिए दूसरे को गलत ठहराते हो बिना   कर्म   किए   नए-नए सुनहरे  सपने  सजाते   हो। बिना पुरुषार्थ के जीवन में कुछ मिलता नहीं  बिना   ठोकर  खाए  जीवन  निखरता  नहीं। सच्चाई की  कड़वी  बातों को जीवन में  अपनाओ तो, अपनी गलतियों को सुधार कर आगे कदम बढ़ाओ तो। खुली   आंखों  से  देखा  हुआ  सपना भी  सच  होगा, दृढ़ निश्चय और  मेहनत को अपना साथी बनाओ तो। अगर हमने मेहनत किया, जाने के बाद भी हमारी बातें  होंगी, हमारा भी इतिहास होगा, कितने ही दिलों में हमारी यादें होंगी। जीवन तो सफल होगा ही, मरकर भी किसी के काम आएंगे, पूरी  दुनिया को ना  सही कुछ  लोगों को तो  हम याद आएंगे।   

दहेज की आग

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 ( दहेज आज के समय में एक मुख्य समस्या बन गई है, यह कविता उसी समस्या के निवारण का संदेश देती है। ) कहते  हैं   जोड़ियां    बनाता    है   ऊपर वाला दो  दिलों  के  बंधन  को सजाता है  ऊपर वाला दूर देश के रहने वाले दो अनजान मुसाफिरों को, संग   में    साथ-साथ   चलाता है    ऊपर वाला। ऊपर वाले के किए हुए इस काम का क्रेडिट हम क्यों लेते हैं? इस खूबसूरत से रिश्ते को सजाने के लिए दहेज क्यों लेते हैं? और कोई रिश्ता बनने में तो कोई फीस और टैक्स नहीं लगता,  सिर्फ शादी के रिश्ते को  हम इतना महंगा क्यों   कर देते हैं? बेटी का पिता बेटी भी दे और दहेज भी बेटे का पिता लड़की भी ले और दहेज भी जाने किसने यह कठोर नियम बनाया? और हमने आंखें मूंदकर इसे अपनाया। शादी के बाद बेटी का पिता   कई साल तक बेटी की शादी के कर्जे चुकाता है,  बेटी खुशहाल रहे इसलिए  लड़के वालों के सामने झुकता ही चला जाता है। अरे लड़के वालों! अपनी हैसियत से ज्यादा मुंह खोलो मत। अच्छी लड़की मिले तो उसके बाप की   जेब  टटोलो मत । जो   जोड़ी बड़ी फुर्सत से  ऊपर वाले ने बनाकर भेजी है, मूर्ख  बनकर  उससे  जुड़ने  के लिए  टैक्स  वसूलो  मत। दहेज वह आग

नए साल के लिए कविता (नया साल कब पुराना बन जाता है?)

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 नए साल के लिए कविता (नया साल कब पुराना बन जाता है?) एक साल  पहले ही तो  नया साल  मनाया था। पिछले   साल को   भुलाकर इसे अपनाया था। स्वागत    में   इसके   नया-नया गीत  गाया था।  कुछ अच्छा करने का हमने प्रण भी उठाया था। दिन   गुजरते-गुजरते   यह  साल भी गुजर गया वह एक साल यूं   हमारे   हाथों से   निकल गया  साल  नया  आते   ही   नया   पुराना  बन   गया  वह नया साल अब गुजरा हुआ जमाना बन गया फिर नया साल आया है आओ नई खुशियां मनाएं पुराने  गिले-शिकवे भुलाकर   खुशी के गीत गाए। कुछ   नया   कर    दिखाने    के   वादे    दोहराएं  पिछले साल को अलविदा कह नए साल को अपनाएं। कुछ खट्टे मीठे अनुभव यह साल भी हमें देगा खुशियां   बेशुमार  यह   साल  भी   हमें देगा  कुछ  नए  सपने   साकार   भी  यह   करेगा   यूं  ही पुराने की जगह नया साल ये ले लेगा। साल  2022  का   स्वागत  हमें  दिल  से  करना  है। जो  पिछले साल नहीं कर पाए,  इस साल  करना है। पुराने को  छोड़कर नए के साथ जीवन में आगे  बढ़ना है। पर यह भी कभी पुराना होगा यह बात हमें नहीं भूलना है।

चरित्र गया तो सब गया। (हिंदी कविता)

 चरित्र गया तो सब गया। (हिंदी कविता) जीवो में  मानव  की पहचान  कराता है   उसका चरित्र रिश्ते,   मान और धन से भी बढ़कर है    मानव  चरित्र। और   चीजें तो   लुटकर   फिर  से आ जाती हैं अपनी किस्मत भी कभी हमें धोखा दे जाती है पर हमारा चरित्र   साथ निभाता है,   बनकर सच्चा मित्र चाहे सब कुछ बिगड़ जाए बिगड़ने ना देना अपना चरित्र। धन  चला भी गया तो मेहनत करके और हम कमा लेंगे दोस्त  अगर  रूठ भी  जाए तो  उन्हें भी हम  मना लेंगे जालिम   दुनिया का  हर सितम  हंसकर हम उठा लेंगे अपने अच्छे चरित्र से हर असंभव को संभव हम बना लेंगे हर कष्ट सहेंगे, मर मिटेंगे, अपने  चरित्र को  ना मिटने दगे। किसी ने  सच ही  कहा है, 'चरित्र गया तो सब गया'। चरित्र  को   खोकर    धनवान  भी  दरिद्र   हो गया झूठी मुस्कुराहटों में  दर्द की आहटों को छिपा गया। चरित्र  के  साथ  अपनी  खुशियों को यूंही गंवा  गया किसी ने क्या खूब कहा है, 'चरित्र गया तो सब गया'।

बलिया के लोग (हिंदी कविता)

 ( इस कविता में बलिया के लोगों की कुछ विशेषताओं को बताया गया है।) बलिया के लोग (हिंदी कविता) बड़े सीधे-साधे और हठीले होते हैं, बलिया के लोग भोले भाले और रसीले होते हैं बलिया के लोग झूठ,क्रोध, मद, लोभ दंभ का करते हैं, सही उपयोग सत्य और न्याय के पथ पर चलके करते हैं सबका सहयोग बलिया के लोग होते हैं अनोखे, नहीं देते हैं वो दूसरों को धोखे। उनकी बातों में जो भी कोई आए, जग  की भूलभुलैया में खो जाए। बलिया के लोग तो सड़क को भी अपना समझते हैं। इसीलिए अपने घर का कूड़ा वहीं पर ला पटकते हैं। बिना वजह ट्रैफिक लगा कर, खुद  सिर  पटकते हैं। चाहे जितने भी हो गड्ढे, उसी सड़क से वो गुजरते हैं। होगी रोजगार की कमी यहां, लेकिन बलिया गरीब नहीं बड़ी-बड़ी गाड़ियां चलती हैं यहां, अच्छा रोड नसीब नहीं। परीक्षार्थी और प्रतियोगी सफल होने तक कभी रुके नहीं। लेकिन अपनी मंजिल पाने के, उन्हें अच्छे मौके मिले नहीं। मीठी   भाषा   बड़ी  अनोखी  बोलते  हैं  बलिया  के लोग। कभी गाली से, कभी ताली से सब को लुभाते बलिया के लोग। जाति, पंथ  के नाम पर  कभी  नहीं  लड़े  बलिया  के  लोग। बड़े   स्नेह  से  सब के संग  त्योहार मनाते बलिया

जन्माष्टमी का एक अनोखा संकल्प

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 आज जन्माष्टमी को संकल्प लें- श्री कृष्ण को ही नहीं उनकी बातों को भी जीवन में अपनाएंगे,  कृष्ण को मक्खन प्रिय है, गाय इससे भी अधिक प्रिय है, गाय को भी चारा खिलाएंगे। कृष्ण ने जो भी गीता में कहा है, उसे अपने जीवन में उपयोगी बनाएंगे। कर्म करना ही अगर भगवान को अच्छा लगता है, तो अपने अच्छे कर्मों से ही भगवान को रिझाएंगे। आएंगे भगवान जरूर, हमारे हृदय में ही आएंगे... भगवान तो हर कण में विराजित है, पर हम उन्हें मंदिरों में ढूंढते हैं, अब हम अपने हृदय को ही उनका मंदिर बनाएंगे। हर युग में वो धर्म की रक्षा करते हैं, हम भी उनका अनुसरण करेंगे, उनके दिखाए हुए पथ पर अपने आप को चलाएंगे। झालरों से सजाकर उनका जन्मदिन तो हर कोई मनाता है, लेकिन हम अपने हृदय को ही उनके लिए निर्मल बनाएंगे। आएंगे भगवान जरूर हमारे हृदय में ही आएंगे... ओ गैया चराने वाले! बंसी बजाने वाले! कष्टों में भी मुस्कुराने वाले, हमारे हृदय को अपना धाम बना दे। सच कहते हैं प्रभु! दिन-रात अपना कर्तव्य निभाते हुए सदा तेरे ही गुण गाएंगे। ओ हर सुखों को देने वाले! हमें अपनी भक्ति का भी सुख दे दे, छल, कपट और दंभ को भुलाकर,तुझ में ही खो जाएंगे।

मेरा आदर्श बेटा (हिंदी कविता)

 (यह कविता लड़के और लड़कियों में समानता की शिक्षा देने वाली एक आदर्श कविता है।) मेरा आदर्श बेटा लाखों में एक, दुनिया में अनोखा मेरा आदर्श बेटा। सुबह देर से उठने पर भी रहता है वह लेटा। जब भी कोई उठाने आता, बस 5 मिनट कह देता। फिर भी सबकी आंखों का तारा है मेरा आदर्श बेटा। और लोग तो अपनी गलतियों से परेशान रहते हैं। लेकिन मेरा बेटा ऐसा नहीं है, एक बार कहने से सुन जाए, यह तो कभी संभव नहीं है। अक्सर लोग उसे देखकर हैरान रहते हैं। और लोग तो सफाई का ध्यान रखते हैं लेकिन मेरा बेटा ऐसा नहीं है उसके लिए तो मन का साफ रहना ही जरूरी है दिखावे से दूर रहता है, बस कपड़े पहनना जरूरी है। और लोग तो प्यार से दूसरों से बातें करते हैं लेकिन मेरा बेटा ऐसा नहीं है, वह तो अच्छी बात कहने पर भी डांट देता है। दुश्मन तो छोड़ो दोस्तों से भी वह डांट कर ही बात करता है। और लोग तो दिन-रात पढ़ाई करते हैं लेकिन मेरा बेटा ऐसा नहीं है वह तो 1 घंटे में ही सारी पढ़ाई कर लेता है अपनी बातों से अच्छे- अच्छों को फेल कर देता है। और लोग तो समय की पाबंदी पर ध्यान देते हैं। लेकिन मेरा बेटा ऐसा नहीं है। वह तो समय पर जाना अपनी शान के खिल

मोबाइल(हिंदी कविता)

 मोबाइल(हिंदी कविता) आज के युग में मोबाइल है सबके घर का गहना मानो इसके बिन, मुश्किल है ज़िंदा रहना। छोटा हो या बड़ा सब इसका मोहताज होता है महंगा हो या सस्ता सबकी जेब में रहता है। पहले जब मोबाइल न था, डांक की चिट्टी का इंतजार रहता था। कबूतर भी मैसेंजर का काम करता था। डीजे बजा कर ही कोई डांस करता था, पर अपनों से अपनों का तार जुड़ा रहता था। अब मोबाइल के आने से, माना हर संदेश मिनटों में पहुंच जाता है पर अपनों के लिए वक्त कहां निकल पाता है! घर में रहकर भी लोग मोबाइल में ऐसे खोए रहते हैं, जैसे साधु, संसार से वैराग्य बनाए रखते हैं। कानों में  माइक लगाकर लोग बड़बड़ाते हैं, ऐसे  पागलखाने में  किसी को करंट दिया जा रहा हो, जैसे।  माना, इससे लोगों को बड़ी सुविधा है, पर क्या अच्छा है! क्या बुरा! इसकी बड़ी दुविधा है। बच्चों के लिए यह वरदान के साथ अभिशाप भी हैं,  इसीसे ऑनलाइन कक्षा का उनको मिला साथ भी है। माना इसके प्रयोग से उनके संस्कारों में कमी आई है, पर उनके ह्रदय मंडल पर इसी की छवि छाई है। माना इस मोबाइल में बहुत कुछ दिया पर बहुतों को बेरोजगार भी किया।

प्राइवेट शिक्षक की ज़िंदगी

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  ( इस कविता में प्राइवेट शिक्षक की ज़िंदगी के कुछ समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है ) कितने दिन पढ़ने के बाद , अच्छी डिग्रियां पाने के बाद, बड़े शौक से कोई शिक्षक बनता है। "सरकारी ना मिली तो क्या हुआ, यहां भी तो पढ़ाना ही है।" यह सोचकर ही कोई प्राइवेट शिक्षक बनता है। बच्चों के लिए आदर्श शिक्षक का व्यक्तित्व होता है। इसलिए शिक्षक को भी बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है। नहीं बता सकता वह, हर  किसी को  अपनी मजबूरी। कौन जाने, कितनी इच्छाएं रह जाती है उसकी अधूरी!  मजदूर  की  मजदूरी  से,  कम मेहनत  का  यह  काम नहीं। केवल कपड़ों और भाषा का अंतर है, जीवन में आराम नहीं। रूल रेगुलेशन से,बड़े घर के बच्चों को शिक्षा देना आसान नहीं। लगता होगा, लेकिन   शिक्षक का   जीवन इतना  आसान नहीं। एक सरकारी शिक्षक तो बड़ी शान से अपना जीवन बिताता है। समय पर नहीं जाता,काम नहीं करता फिर भी वेतन पाता है। पर प्राइवेट शिक्षक का वेतन, हर गलती के लिए कट जाता है। यह वेतन भी मिलते ही, खर्चे में प्रसाद की तरह बंट जाता है। बच्चों की गलती पर भी, एक शिक्षक ही डांट खाता है। भले ही नंबर बच्चों के कम आए, वही फेल कहलाता है। कभी अ

डर(हिंदी कविता)

  डर ने हमसे क्या-क्या छीना! डर-डर के अब क्यों जीना? क्यों घुट-घुट कर आंसू पीना डर के बिना जिंदगी होगी एक हसीना। बचपन बीता डर ही डर में कभी टीचर के डंडे का डर,  कभी मीठी डांटे सुनने का डर। उन बातों को सोच कर मज़ाआए जीने में। आई जवानी नए-नए डर ने घेरा, कभी नौकरी ना मिलने का डर,  कभी नौकरी के  जाने  का डर।  कभी शादी और प्यार का डर।  कभी सब कुछ खो जाने का डर पत्नी को पति का डर,  पति को पत्नी का डर,  दोनों को बच्चों का डर।  बुढ़ापे में बीमारी का डर बीमारी में दवाइयों का डर  मरकर मोक्ष न पाने का डर।  जीवन में पथ से भटकने  का डर। यह डर हमारे जीवन के पहले भी था और बाद में भी होगा। जीवन  में  डर-डर कर,  डर  को  यूं  बदनाम    ना करो। थोड़ी मात्रा में यह भी जरूरी है, इसका सही उपयोग तो करो! जब एक विजेता अपने हार के डर से घबराता है, तभी जीवन के हर क्षेत्र में, विजयी बन पाता है। जिसने डर से खुशी- खुशी दोस्ती कर ली, हर असंभव को वह संभव करके दिखाता है। किसी ने सच ही कहा है...डर के आगे जीत है।

हाय! हाय! कोरोना

 हाय! हाय! कोरोना (हिंदी कविता) कोरोना आया था एक वायरस बनकर, हमारे जीवन का हिस्सा बन गया। जल्दी ही मीडिया के लिए किस्सा बन गया। नेता जी के भाषण में यूं समाया, राजनीतिक दलों का वो मेंबर बन गया। अब तो सबके जीवन का उद्देश्य है, इसे ही हटाना भले ही अशिक्षा और बेरोजगारी को पड़े बढ़ाना। अब तो डर के ही है जीवन बिताना, स्वच्छ हाथ, मास्क और 2 गज की दूरी को है अपनाना। नेताजी के भाषण में विकास की बातें अब नजर नहीं आती। महंगाई और भ्रष्टाचार तो बढ़ ही रहा है, पर इस पर किसी की नजर नहीं जाती। अब मीडिया को इतनी फुर्सत कहां  कि वो गरीब की बस्ती में भी जाकर झांके! वो तो कोरोना के आंकड़ों से  दिन-रात  हमें  ही  है   डराती। मेरे प्यारे दोस्तों अंधविश्वासी ना बनो क्या हो रहा है? क्या होना चाहिए? इस पर भी विचार करो हमने केवल अपने हाथों को साफ रखा, पर्यावरण के लिए स्वच्छता अभियान क्यों छोड़ दिया? 2 गज दूरी के चक्कर में, इंसानियत का नाता तोड़ दिया? कोरोना से अधिक दवाइयों का साइड इफेक्ट खतरनाक है, ये वाइट और ब्लैक फंगस इसीकी करामात है। कुछ तो सरकार की नीतियों से भी, बिगड़े हालात हैं। डरना छोड़ के दिल से सोचोगे

कब तक डरते रहोगे ? (हिंदी कविता)

 कब तक डरते रहोगे! (हिंदी कविता)  मानव जीवन है नश्वर, इस सत्य से कब तक अनजान रहोगे? किसी ना किसी रूप में, कभी ना कभी मृत्यु तो वरण करेगी ही कब तक डरते रहोगे? युगों से मर- मरकर कितनी बार जन्म लिया है। और हर जन्म में मृत्यु का वरण किया है। मृत्यु विज्ञान से पहले भी थी, विज्ञान के हर खोज के बाद भी रहेगी। चाहे जो भी नाम रखो या इसे बेनाम रखो। हाथ तो तुम्हारा थामेगी ही, कब तक डरते रहोगे?

प्राइवेट नौकरी बेवफा सनम है। (हिंदी कविता)

 प्राइवेट नौकरी बेवफा सनम है। --(हिंदी कविता) प्राइवेट नौकरी बेवफा सनम है। इसके नखरे कहां, किसी से कम हैं। कभी गिफ्ट में ओवरटाइम मांगे, कभी सैलरी की कटाई मांगे, नए - नए रूल्स ने किया नाक में दम है। माना   सरकारी    नौकरी,  पत्नी की तरह साथ निभाती है। पर सबको कहां मिल पाती है। पढ़े- लिखे और अनपढ़ सब हैं,  इसके दीवाने और परवाने। इसको पाने के वास्ते  लंबी उम्र निकल जाती है। जैसे महबूबा सजती है,  अपने महबूब के लिए। हर युवा पढ़ता है, डिग्रियां लेकर घूमता है,  नौकरी पाने के लिए। कोई बेवफा सनम के सहारे ही,  अपनी ज़िंदगी बिता देता है। तो, किसी को पत्नी भी मिल जाती है। अक्सर पत्नी का सुख , रिश्वतखोरी  को  ही   मिलता है। हर युवा को ये मौका कहां मिलता है? कोई बेवफा सनम के लिए भी मचलता है, उसी के साथ गिरता और संभलता है! ऐ प्राइवेट नौकरी तू किसी से बेवफाई ना करना, तुझसे ही कईयों के घर का चूल्हा जलता है। अब हमें तेरे नखरे भी सुहाने लगते हैं। क्योंकि तेरे साथ रहना अब अच्छा लगता है।

पेड़ लगाओ, धरती की रौनक बढ़ाओ

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  पेड़ लगाओ, धरती की रौनक बढ़ाओ -हिंदी कविता पेड़ हमें ऑक्सीजन देते हैं, शीतल छाया देते हैं। मीठे-मीठे फल देकर हमारी भूख मिटाते हैं। रोगों से लड़ते लोगों को औषधि भी देते हैं। हमारी जरूरतों के लिए ईंधन बन जलते हैं। इन पेड़ों को काटकर,  अपने भविष्य को अंधकारमय ना बनाओ। इन्हीं से हमारा जीवन है, अपने जीवन को बचाना है, तो पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ, धरती की रौनक बढ़ाओ। ये पेड़ कई पशु - पक्षियों के लिए आसरा हैं, उन्हें बेसहारा ना बनाओ। ये पेड़ प्रदूषण को रोकने वाले फौजी हैं, प्रदूषण से बचना है, तो पेड़ लगाओ। पेड़ लगाओ, धरती की रौनक बढ़ाओ। तुम्हारा लगाया हुआ पेड़  बच्चों के लिए उपहार होगा। हरियाली को बढ़ाकर, पेड़ लगाना आपका, अपनों पर उपकार होगा। स्वस्थ और खुशहाल रहना है,  तो पेड़ लगाओ। पेड़ लगाओ, धरती की रौनक बढ़ाओ।

सड़क सुरक्षा नियम का पालन

सड़क सुरक्षा नियम का पालन- हिंदी कविता दुर्घटना से बचना है  और अगर सुरक्षित रहना है, तो सड़क सुरक्षा नियम का पालन  सोच- समझ कर करना है। जब भी बाइक चलाओ, सिर पर हेलमेट लगाओ। ड्राइविंग  करते  समय, फोन पर मत बतियाओ। पैदल चलते समय भी देखो रहना सजग और सावधान। दाएं, बाएं, क्रॉसिंग का  तुम, बिल्कुल  रखना  ध्यान। जब भी हो तुम्हें ड्राइविंग करना, नशे  का  सेवन मत  करना। 'दुर्घटना से देर भली' ये समझना, तुम रोड पर रेसिंग मत करना। सड़क है सब की संपत्ति, इस पर गड्ढे तुम मत करना। सड़क है आवागमन का साधन, इसको गंदा मत करना। सड़क सुरक्षा नियमों को अब है सब को समझाना निर्बाधित आवागमन को हमको दुर्घटना मुक्त है बनाना। सड़क सुरक्षा नियम के बारे में विस्तार से जानें- 👈👈

मच्छर महाराज की स्तुति

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  (इस कविता में मच्छर की स्तुति के रूप में उसके होने का कारण, स्वच्छता तथा मच्छर से बचने के लिए क्या करना चाहिए, इसे हास्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है।) मच्छर महाराज की स्तुति क्या कभी आपने सोचा है, कि भगवान ने मच्छर जैसा जीव क्यों बनाया होगा? शायद.... जो लोग गंदगी करते हैं, और सफाई करना भूल जाते हैं, उन्हें सज़ा देने के लिए। क्योंकि प्रकृति में कुछ भी महत्वहीन नहीं है। सजीव, निर्जीव हर वस्तु का कोई ना कोई अपना महत्व है, तो फिर मच्छर महत्वहीन कैसे हो सकता है? तो आईए इन मच्छर महाराज की स्तुति करें, जिनकी उपस्थिति हमें साफ- सफाई करने का संदेश देती है।... मंत्र-"ओम मच्छर देवाय नमः" हाथ जोड़कर हम सब करते, रोज तुम्हारा ही गुणगान। जय- जय मच्छर महाराज जय- जय मच्छर महाराज।। खून हमारा चूस-चूस करते हो, तुम दुनिया पर राज। मार्टिन, कछुआ, गुडनाइट लेकर हम तो तुम्हें मनाएं आज। जय- जय मच्छर महाराजा, जय- जय मच्छर महाराज।। अद्भुत शक्ति है तुममें, जो करती है सबको हैरान। डेंगू, मलेरिया के तुम दाता सब रोगों की तुम हो खान। जय- जय मच्छर महाराजा, जय- जय मच्छर महाराज।। कूड़े- करकट में तुम रहते, ल

आई बसंत ऋतु सुहावनी

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  (इस  कविता में वसंत ऋतु की सुंदरता का वर्णन किया गया है, तथा इस ऋतु के कारण आने वाले जीवन में बदलाव को दर्शाया गया है।) आई बसंत ऋतु सुहावनी-हिंदी कविता ठिठुरते ठंड से हमें बचाने आई बसंत ऋतु सुहावनी। जीवन की निराशा को दूर भगाने आई बसंत ऋतु सुहावनी। देखो  खेतों  में  कैसे  सरसो   लहलहाए, बसंत ऋतु के स्वागत को, जैसे ये कोई गीत गुनगुनाए। और बसंती हवा, इसके सुर में सुर मिलाए। अमवारी में कोयल  की  किलकारी मन को भाए, मुरझाए जीवन में  मानो,  नई  ताजगी    लाए। सुस्त पड़े, सोए  मन को  जैसे  झकझोर  जगाए। दुख के बाद खुशियां भी आती हैं, हमें यही समझाए। बसंत ऋतु है मौसम, हंसने और गुनगुनाने का गुलाल लगाकर,  सबको अपना  बनाने  का। खुशियों के रंग में रंगकर,  होली  मनाने का। गिले-शिकवे सब भूलकर, जीवन को सजाने का। मासूम चेहरों पर मुस्कुराहट लाई, बसंत ऋतु सुहावनी। मौसम में गर्माहट लाई बसंत ऋतु सुहावनी। बसंत पंचमी (एक विशेष त्योहार)-जरूर पढ़ें 👈👈

गणतंत्र दिवस ( 2021) हिंदी कविता

 गणतंत्र दिवस 2021-हिंदी कविता हर साल जब हम हैं मनाते, गणतंत्रता का पर्व। होता है अपने देश की,    उपलब्धियों पर गर्व। हाथ में थामे तिरंगा, मन में नई उमंग। गाकर खुशी के गीत अपने साथियों के संग, आओ मनाएं हर्ष से, गणतंत्रता का पर्व। बड़ी मुश्किलों से देश यह आज़ाद जब हुआ अपना भी संविधान हो महसूस जब हुआ, भारत के संविधान का निर्माण तब हुआ। और आज के ही दिन सुनो, लागू था यह हुआ। गणतंत्र भारत की धरा को , स्वच्छ रखना है हमें। कर्तव्य अपना श्रेष्ठता से, अब निभाना है हमें। शहीदों की शहादत का अभी, ऋण चुकाना है हमें। सिर्फ वाणी से उनकी जय- जयकार  क्या करना पुरुषार्थ से सपनों को उनके, अब सजाना है हमें। आओ मिलकर, आज एक प्रण उठाएं हम। भ्रष्टाचार का विनाश हो, प्रदूषण का नाश हो, और देश का विकास हो, ऐसे कदम उठाए हम। हमारा गणतंत्र इतना शानदार हो, कि विश्व उसकी मिसाल दे, अपने प्रयासों से, ऐसा देश बनाएं हम। ऐसा देश बनाया हम।।

मकर संक्रांति का पर्व आया (कविता)

 मकर संक्रांति का पर्व आया (हिंदी कविता) आया रे आया मकर संक्रांति आया। सूर्य के उत्तरायण का समय आया। नए साल का पहला यह पर्व आया। सबके दिल में खुशियां भरपूर लाया कहीं इसे कहते हैं लोहड़ी, कहीं इसे कहते हैं पोंगल, तो कहीं कहलाता है यह खिचड़ी। चाहे जहां और जैसे मनाओ इसे बांटो तिल -गुड़, खाओ खिचड़ी। सबको खुशियां देने में रहता है यह आगे बच्चेऔर बूढ़े सभी पतंग के पीछे भागें। स्नान करना है जरूरी, इसलिए प्रातः जल्दी जागें। दान- दक्षिणा करने में आज सब का मन लागे। मकर संक्रांति की सभी को शुभकामनाएं। संग- संग मिलकर खुशियां मनाएं। अपने और पराए का भेद भुलाके, प्रेम की डोर से सजी पतंग उड़ाएं। नई उमंग में पुराने दुख -दर्द को भूल जाएं

नए साल का नया प्रण(२०२१)

 नया साल हर 1 जनवरी को आता है। हर बदला साल ,एक नई उम्मीद जगाता है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है, सबको यह समझाता है। भुलाकर पुराने गिले-शिकवे ,हर कोई नया गीत गुनगुनाता है। ़़़़़़ं़़़ क्या खोया ,क्या पाया, यह सोच कर आगे बढ़ना है। कभी तो मंज़िल मिलेगी ,इसी उम्मीद में चलते रहना है। जो पिछले साल नहीं कर पाए, वह काम इस साल करना है। दंभ और स्वार्थ को भुलाकर,सब के संग मिलकर रहना है। ़़़़़़ं़़़़ंं़़ं नया साल आया है ,तो खुशियां भी आएंगी। अपना कर्म हमें करते रहना है। जैसे दिन- रात बदलते हैं ,नसीब भी बदलेगा। सही समय का इंतज़ार भी करना है। ंंंंंंंं़़ंंं़़ंं नए साल में कुछ नया प्रण हर किसी को करना चाहिए। अपने साथ-साथ पर्यावरण की  स्वच्छता पर भी विचार होना चाहिए। कोशिश करना है समाज भी बदलेगा ,विश्वास होना चाहिए। नव वर्ष 2021 का स्वागत ज़ोरदार होना चाहिए। ़़़़़़़़़़़़ंंंंंंंं़़़़ं