जनता और सरकार
(इस कविता में जनता और सरकार के बीच के संबंध बताए गए हैं।) यह कैसा दुर्भाग्य के देश का है अपमान यह लोकतंत्र का जिसने है सरकार बनाई जिसने है उम्मीद लगाई उस जनता पर टैक्स लगाकर महंगाई की आग मैं उसे जलाकर सरकार खाए मलाई हाय! यह कैसी बेवफाई? जब भी कोई योजना बनती जेब सिर्फ सरकार की भरती छोटे-बड़े सब मिलकर खाते ठेकेदार जी मौज है करते। जनता बिचारी कुछ ना पाई हाय! यह कैसी बेवफाई? काश जनता जाग जाती! पैसों का वह हिसाब लेती टैक्स के बदले सेवा लेती वोट के वक्त दिखाती तेवर ये तेवर उसका बन जाता जेवर फिर ना करता कोई उससे बेवफाई।