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जनता और सरकार

 (इस कविता में जनता और सरकार के बीच के संबंध बताए गए हैं।) यह कैसा दुर्भाग्य के देश का  है अपमान यह लोकतंत्र का जिसने है सरकार बनाई जिसने है उम्मीद लगाई उस जनता पर टैक्स लगाकर  महंगाई की आग मैं उसे जलाकर सरकार खाए मलाई हाय! यह कैसी बेवफाई? जब भी कोई योजना बनती जेब सिर्फ सरकार की भरती  छोटे-बड़े सब मिलकर खाते  ठेकेदार जी मौज है करते। जनता बिचारी कुछ ना पाई हाय! यह कैसी बेवफाई? काश जनता जाग जाती! पैसों का  वह हिसाब लेती  टैक्स के बदले सेवा  लेती  वोट के वक्त दिखाती तेवर  ये तेवर उसका बन जाता  जेवर फिर ना करता कोई उससे बेवफाई।    

अनोखा रक्षाबंधन

 (रक्षाबंधन का पावन त्योहार सिर्फ अपने परिवार तक ही नहीं सीमित रहना चाहिए बल्कि देश के सभी भाई - बहनों को मिलकर मानना चाहिए। कुछ ऐसी ही भावना इस कविता में दी गई है।) भाई - बहन के पावन पर्व की आप सभी को बधाई दुआ यही है सुनी ना रहे किसी  भाई की    कलाई। भारत माता के बच्चे हम सब, आपस में है भाई भाई  भारत माता के बच्चे हम सब, आपस में है भाई भाई चाहे कोई हिंदू - मुस्लिम चाहे हो वह सिख -इसाई। प्रेम की डोर से हम सभी की  कलाइयां  आपस में बंधी रहे । सिर्फ अपनी ही नहीं हर बहन  की  रक्षा  हर भाई करता रहे। ना कोई ईर्ष्या, ना कोई लालच, बस प्रेम ही  हम सबके दिलों में भरा रहे। और   रक्षाबंधन   का  ये        पर्व  हर वर्ष यूं ही मनता रहे। हर वर्ष यूं ही मनता रहे।

Mundan

  उत्तर भारत में जब भी किसी हिंदू परिवार में किसी बालक या बालिका का जन्म होता है तो परिवार के लोग उस बालक या बालिका के बालों को गंगा माता को समर्पित करते हैं। गंगा माता को बच्चे का बाल समर्पित करने की दो विधियां प्रचलित हैं। 1. साधारण तरीके से बच्चे का बाल अर्पण (मुंडन) इस तरीके से बच्चे का मुंडन करने में कोई ज़्यादा खर्च नहीं करना पड़ता। परिवार के व कुछ और परिचित लोग गंगा माता के घाट पर जाते हैं और गंगा माता की पूजा करते हैं, उन्हें वस्त्र प्रसाद और पीठा आदि चढ़ाते हैं। और गंगा माता की पूजा में ही नाई से बच्चे के बाल कटवाकर उन्हें चढ़ा दिया जाता है। 2. धूमधाम से किया जाने वाला आर-पार बार-ओहार(मुंडन) इस तरीके से बच्चे का मुंडन करने में अधिक खर्च लगता है और पहले से ही योजना बनानी पड़ती है। इसमें बैंड-बाजे के साथ अधिक से अधिक लोग गंगा माता के घाट पर जाते हैं। इसमें सामग्री भी अधिक लगती है। आम के लकड़ी के दो छोटे-छोटे खूंटे होते हैं, नदी के इस पार बच्चे की मां उसमें से एक खूंटे को पकड़कर गंगा माता की पूजा करती है, वहीं पर बच्चे के बाल कटवाकर मां के आंचल में तथा गंगा माता को अर्पण किए जाते

जलन का अर्थ

  किसी को देखकर जलने का मतलब  जो जलता है वह रोशनी भी करता है और वह रोशनी हमें रास्ता दिखाती है इसका मतलब यदि कोई हमें देख कर जलता है तो हम कभी भटक नहीं सकते, उसकी जलन से निकलने वाला प्रकाश हमें राह दिखाएगा। लोग अक्सर इस बात से दुखी रहते हैं की अन्य लोगों से देखकर जलते हैं लेकिन यदि सोच सकारात्मक हो तो हम इसका भी लाभ ले सकते हैं। किसी के जलन की वजह से हमें अपना कार्य अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि से मार्गदर्शन लेकर सही दिशा में आगे बढ़ना चाहिए और कार्य को पूरा करना चाहिए।

आज का विद्यार्थी

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 ( इस कविता में आज के विद्यार्थी के सपनों को पूरा करने  तथा उनकी परेशानियों को दूर करने की प्रेरणा दी गई  है।) छोटी सी उमर  में ही  बस्ते का बोझ   उठाकर  उज्ज्वल भविष्य का सपना आंखों में सजाकर कई अनकही बातों को अपने डर तले छुपा कर  विद्यालय  में  पढ़कर  अपने  ज्ञान  को  बढ़ाने देखो  चला   विद्यालय   आज   का   विद्यार्थी।  अपने  माता-पिता के   आंखों  का   तारा आने वाले उज्ज्वल भविष्य का उजियारा  शिक्षकों की आंखों का  चमकता  सितारा सबकी   उम्मीदों   को   पूरा   करने  देखो   चला   आज  का   विद्यार्थी। न जाने इसको, इसके योग्य विद्यालय मिलेगा कि नहीं? न जाने इसके प्रश्नों को कोई  शिक्षक सुनेगा  कि नहीं ? न   जाने    इसको,  इसका  लक्ष्य   मिलेगा  कि  नहीं? न जाने संघर्षशील, आदर्श विद्यार्थी बन पाएगा  कि नहीं? इन प्रश्नों के उत्तर की तलाश में देखो चला  आज का  विद्यार्थी। ऐ विद्यार्थी सुनो! इतने सपने और प्रश्न लेकर आए हो तो छोटी-सी किसी बात  से  निराश मत हो जाना। शिक्षक  से ज्ञान  के साथ  थोड़ी डांट  भी मिलेगी, इससे    परेशान  और   हताश   मत   हो  जाना। हर दिन तुम्हारे  गुणों और धैर्य की परीक्

पुरुषार्थी बनो, कर्म करो।

(इस कविता में कर्म करके जीवन में आगे बढ़ने पर जोर दिया गया है, कर्म ना करने और करने का परिणाम भी बताया गया है।) पुरुषार्थी  बनो, कर्म करो  कर्म से ही भाग्य बनता है। दृढ़ संकल्प हो प्रयत्न करो  बिगड़ा भाग्य भी संवरता है। क्यों अपनी गलतियों के लिए दूसरे को गलत ठहराते हो बिना   कर्म   किए   नए-नए सुनहरे  सपने  सजाते   हो। बिना पुरुषार्थ के जीवन में कुछ मिलता नहीं  बिना   ठोकर  खाए  जीवन  निखरता  नहीं। सच्चाई की  कड़वी  बातों को जीवन में  अपनाओ तो, अपनी गलतियों को सुधार कर आगे कदम बढ़ाओ तो। खुली   आंखों  से  देखा  हुआ  सपना भी  सच  होगा, दृढ़ निश्चय और  मेहनत को अपना साथी बनाओ तो। अगर हमने मेहनत किया, जाने के बाद भी हमारी बातें  होंगी, हमारा भी इतिहास होगा, कितने ही दिलों में हमारी यादें होंगी। जीवन तो सफल होगा ही, मरकर भी किसी के काम आएंगे, पूरी  दुनिया को ना  सही कुछ  लोगों को तो  हम याद आएंगे।  पढ़िए 👉कर्म ही पूजा है।  

जय मच्छर महाराज (नाटक )

(यह एक नाटक की रूपरेखा है। जो मच्छर भगाने पर आधारित है।) शीर्षक-मच्छरों से बचने का उपाय दो भाई मच्छरों से बहुत परेशान रहते हैं कई उपाय करने के बाद भी मच्छरों मच्छरों से जब उन्हें राहत नहीं मिलती तब वे अंत में एक महात्मा के पास जाते हैं, जो वास्तव में एक ठग होता है। वह उन्हें एक मच्छर की फोटो देता है और उसकी पूजा और आरती करने के लिए कहता है, बदले में उसे दक्षिणा भी अच्छी खासी मिलती है। दोनों भाई नियम से सुबह शाम मच्छर की पूजा आरती करते हैं। मंत्र-"ओम मच्छर देवाय नमः" हाथ जोड़कर हम सब करते, रोज तुम्हारा ही गुणगान। जय- जय मच्छर महाराज जय- जय मच्छर महाराज।। खून हमारा चूस-चूस करते हो, तुम दुनिया पर राज। मार्टिन, कछुआ, गुडनाइट लेकर हम तो तुम्हें मनाएं आज। जय- जय मच्छर महाराजा, जय- जय मच्छर महाराज।। अद्भुत शक्ति है तुममें, जो करती है सबको हैरान। डेंगू, मलेरिया के तुम दाता सब रोगों की तुम हो खान। जय- जय मच्छर महाराजा, जय- जय मच्छर महाराज।। कूड़े- करकट में तुम रहते, लेते हो गटर का स्वाद। भन-भन, भिन-भिन गूंजता रहता, सदा तुम्हारा ही स्वर-नाद। जय- जय मच्छर महाराजा, जय- जय मच्छर महाराज