चरित्र गया तो सब गया। (हिंदी कविता)
चरित्र गया तो सब गया। (हिंदी कविता)
जीवो में मानव की पहचान कराता है उसका चरित्र
रिश्ते, मान और धन से भी बढ़कर है मानव चरित्र।
और चीजें तो लुटकर फिर से आ जाती हैं
अपनी किस्मत भी कभी हमें धोखा दे जाती है
पर हमारा चरित्र साथ निभाता है, बनकर सच्चा मित्र
चाहे सब कुछ बिगड़ जाए बिगड़ने ना देना अपना चरित्र।
धन चला भी गया तो मेहनत करके और हम कमा लेंगे
दोस्त अगर रूठ भी जाए तो उन्हें भी हम मना लेंगे
जालिम दुनिया का हर सितम हंसकर हम उठा लेंगे
अपने अच्छे चरित्र से हर असंभव को संभव हम बना लेंगे
हर कष्ट सहेंगे, मर मिटेंगे, अपने चरित्र को ना मिटने दगे।
किसी ने सच ही कहा है, 'चरित्र गया तो सब गया'।
चरित्र को खोकर धनवान भी दरिद्र हो गया
झूठी मुस्कुराहटों में दर्द की आहटों को छिपा गया।
चरित्र के साथ अपनी खुशियों को यूंही गंवा गया
किसी ने क्या खूब कहा है, 'चरित्र गया तो सब गया'।
Nice
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