मुंडन समारोह (ओहार)
(यह लेख एक संस्मरण है, जिसमें लेखिका ने स्वयं के परिवार में हुए एक मुंडन समारोह का विस्तार से वर्णन किया है। गंगा मां के पावन घाट पर मुंडन समारोह का विधि-विधान के साथ परिचय इसमें दिया गया है।)
उत्तर भारत में जब भी किसी हिंदू परिवार में किसी बालक या बालिका का जन्म होता है तो परिवार के लोग उस बालक या बालिका के बालों को गंगा माता को समर्पित करते हैं। गंगा माता को बच्चे का बाल समर्पित करने की दो विधियां प्रचलित हैं।
1. साधारण तरीके से बच्चे का बाल अर्पण (मुंडन)
इस तरीके से बच्चे का मुंडन करने में कोई ज़्यादा खर्च नहीं करना पड़ता। परिवार के व कुछ और परिचित लोग गंगा माता के घाट पर जाते हैं और गंगा माता की पूजा करते हैं, उन्हें वस्त्र प्रसाद और पीठा आदि चढ़ाते हैं। और गंगा माता की पूजा में ही नाई से बच्चे के बाल कटवाकर उन्हें चढ़ा दिया जाता है।
2. धूमधाम से किया जाने वाला आर-पार बार-ओहार(मुंडन)
इस तरीके से बच्चे का मुंडन करने में अधिक खर्च लगता है और पहले से ही योजना बनानी पड़ती है। इसमें बैंड-बाजे के साथ अधिक से अधिक लोग गंगा माता के घाट पर जाते हैं। इसमें सामग्री भी अधिक लगती है। आम के लकड़ी के दो छोटे-छोटे खूंटे होते हैं, नदी के इस पार बच्चे की मां उसमें से एक खूंटे को पकड़कर गंगा माता की पूजा करती है, वहीं पर बच्चे के बाल कटवाकर मां के आंचल में तथा गंगा माता को अर्पण किए जाते हैं। उस खूंटे में आम के पल्लों से सजी हुई लंबी रस्सी को बांध दिया जाता है और परिवार के कुछ अन्य लोग नाव की पूजा करने के बाद उस नाव में बैठकर गंगा माता में रस्सी को डालते हुए इस पार से उस पार जाते हैं। उस पार जाकर फिर से एक खूंटे को बांध कर उसमें रस्सी को बांध दिया जाता है और वहां भी गंगा माता की पूजा की जाती है। यह सारा काम बहुत ही विधि-विधान के साथ किया जाता है।
जब मैंने फोटो में अपने भतीजे के बढ़े हुए बाल देखें तो मन में उसके मुंडन की योजना चलने लगी क्योंकि उसके जन्म के बाद ही गंगा माता में आर-पार ओहार की मन्नत मानी गई थी। अब क्योंकि मेरा भतीजा 2 साल पूरा करके तीसरे साल में प्रवेश करने वाला था तो यह उसके मुंडन का उचित समय लग रहा था वरना इसके बाद अब हमें मुंडन के बारे में उसके 5 साल का हो जाने के बाद ही सोचना था। मैंने अपने छोटे भाई और भाभी से इस विषय में बात की और फरवरी के महीने में 14 तारीख को मुंडन की तारीख पंडित जी ने निकाल कर दे दी। और तभी से हमारी तैयारियां शुरू हो गईं।
मेरा भाई महाराष्ट्र (कल्याण) में रहता था, उसे मुंडन के लिए उत्तर प्रदेश में बलिया आना था तो सबसे पहले उसने सबकी टिकट बुक करवाई। उसके बाद मेहमानों को उपहार के तौर पर देने के लिए कपड़े आदि की शॉपिंग की गई। क्योंकि भतीजे का मुंडन होने पर बुआ को विशेष रुप से लाभ मिलना होता है तो महंगाई के ज़माने में भी उनके लिए चांदी की पायल खरीदी गई।बच्चे की नानी ने भी अपनी ओर से चांदी की बिछिया देने का निर्णय लिया।
मुंडन में अलग-अलग जगहों से आने वाले सभी मेहमानों के ठहरने के लिए एक अच्छा-सा लॉज बुक किया गया। बस, हलवाई, बैंड-बाजा आदि सारी तैयारियां धीरे-धीरे हो गईं। मेरे भतीजे का भाग्य बहुत अच्छा था और इसी कारण हमने जो भी तैयारी की वह बहुत अच्छी थी।
12 तारीख की शाम को मेरा भाई परिवार सहित बलिया मेरे घर आ गया। मुंडन के पहले गंगा माता के गीत गाए जाते हैं इसलिए उसी दिन हमने गंगा माता के नाम पर शगुन उठाया और थोड़ा-सा गीत-संगीत हुआ। अगले दिन हमें बुक किए गए लॉज में प्रस्थान करना था, हमने जल्दी से सुबह के सभी काम निपटा कर भोजन आदि की व्यवस्था करके लॉज के लिए प्रस्थान किया। धीरे-धीरे सभी मेहमान उपस्थित होने लगे और शाम होने तक हमारा लॉज मेहमानों से भर गया।
शाम को मुंडन समारोह के लिए संगीत समारोह होना था, नाचने बजाने वाली आई और संगीत समारोह शुरू हुआ। पहले देवी मां के गीत फिर सोहर और फिर अन्य नृत्य संबंधी गीत से महफिल सज गई। इस महफिल में सभी मेहमानों ने ठुमके लगाए। बच्चे की दादी, नानी फुआ-फूफा, पापा-मम्मी और सभी रिश्तेदारों ने खूब नाचा और गाने-बजाने वाली को निछावर भी दी।
संगीत समारोह के साथ-साथ लॉज में ऊपर भोजन का भी प्रबंध हो रहा था, जैसे ही संगीत समाप्त हुआ सभी औरतों को भोजन के लिए बिठा दिया गया। अपेक्षा से अधिक मेहमान भी आए थे, तो हलवाई का गणित भी थोड़ा फेल हो गया और सब्जी और पूरी की कमी हो गई लेकिन क्योंकि एक चतुर हलवाई था तो उसने जल्दी ही सब कुछ मैनेज कर लिया और सभी लोगों ने भोजन का आनंद लिया।
भोजन के बाद सभी मेहमान यथा स्थान सोने चले गए लेकिन मेरी भाभी , हलवाई की टीम और कुछ अन्य लोग जागते रहे क्योंकि उन्हें सुबह की व्यवस्था करनी थी। गंगा माता की पूजा के लिए शुद्ध घी की पूरी हमें स्वयं बनानी थी इसलिए हमने नहाकर गंगा माता की पूजा के लिए पूरी बनाई। सुबह होते होते लगभग सारी तैयारियां पूरी हो गईं। गंगा माता के घाट पर ले जाने के लिए सभी मेहमानों के लिए भोजन बस में रखवा दिया गया। बैंड बाजे वाले सुबह बाजा बजाने लगे। सुबह 6:00 बजे हमें गंगा माता के घाट के लिए प्रस्थान करना था। सभी मेहमान बस में बैठे, बुजुर्गों के लिए एक कार का प्रबंध किया गया था। हमारी बस गंगा माता और बालेश्वर बाबा के जय कारे के साथ घाट के लिए निकली।
लगभग 1 घंटे में हम गंगा माता के घाट पर पहुंच चुके थे, उस दिन घाट पर बहुत अधिक भीड़ थी ऐसा लग रहा था मानो मेला लगा हो। हम ने सभी मेहमानों को चेतावनी दी कि वह अपने-अपने बच्चों को अपने साथ रखें और इसी के साथ हम घाट पर आगे पैदल निकल पड़े। घाट पर पहुंचते ही सभी लोगों ने एक जगह अपने सामान को रख दिया और गंगा माता में स्नान के लिए जाने लगे, कुछ लोग वहीं पर रुक कर सामान की रखवाली करते रहे। मेरी भाभी गंगा माता की पूजा के लिए बैठी आर पार ओहार की विधि शुरू हो गई। एक तरफ मेरी भाभी गंगा माता में स्नान करके भीगे कपड़ों में अपने आंचल को फैलाकर गंगा माता की पूजा के लिए बैठ गई और उसके ठीक सामने मैं अपनी दोनों बहनों और बुआ की लड़की के साथ आंचल फैला कर बैठ गए बाल के साथ-साथ नेग(उपहार) पाने के उद्देश्य से। जितने भी मेहमान आए थे सभी लोग बच्चे के लिए मां के और हमारे आंचल में निछावर डालते गए। घाट पर मांगने वालों की भी कमी नहीं थी। हर किसी को पर्याप्त दक्षिणा मिली और हम बहनों की भी अच्छी-खासी आमदनी हो गई।
इस पार की पूजा होने के बाद हम सभी बहनें और कुछ रिश्तेदार नाव पर बैठकर उस पार गए और उस पर भी पूजा हुई। नाव उस पर जाते समय और फिर आते समय दोनों ही समय नाव पर हमने गायन और नृत्य भी किया।
आर पार ओ हार की सारी विधि समाप्त होने के बाद सभी लोग बस की ओर पुनः लौटने लगे। लौटते समय भीड़ सुबह से भी अधिक थी। हम लोग जैसे-तैसे बस के पास पहुंचे, वहां पहुंचकर पता चला कि अभी बहुत से लोग बस के पास पहुंच ही नहीं पाए हैं। थोड़ा इंतजार के बाद सभी लोग बस के पास पहुंच गए लेकिन मेरी भाभी और चार मेहमान अभी भी नहीं पहुंच पाए थे। मेरा भाई और मेरा बेटा उन्हें ढूंढने के लिए पुनः घाट की ओर चले गए। काफी देर तक ढूंढने के बाद उन्हें पता चला कि वे लोग घाट पर आगे निकल चुके हैं तो उन्होंने तय किया कि बस आगे ले जाकर उन्हें बस में बैठा लिया जाएगा।
हमारी बस पुन: गंगा माता के जय कारे के साथ अपने घर के लिए निकल पड़ी। सभी लोगों को भूख तो लगी चुकी थी लेकिन भीड़ के कारण हमें उन्हें खिलाने का कोई स्थान नहीं मिल पा रहा था तो हमने तय किया कि जल्दी से घर पर पहुंच कर वहीं पर भोजन किया जाएगा। छोटे-छोटे बच्चों को जो हमारे पास गंगा माता को चढ़ाई हुई पूरियां थीं, वह खाने को दे दी गई। भोजन बस में नीचे रखा हुआ था और ट्रैफिक के कारण उसे निकालना असंभव था। बस थोड़ा और आगे गई तो हमें पता चला कि मेरी भाभी अभी घाट पर ही यहां वहां घूम रही है उन्हें रास्ता नहीं मिल पा रहा है। बच्चे के साथ वो रास्ता भटक जाने के कारण बहुत परेशान थी उसके पास ना तो उसका अपना मोबाइल फोन था और ना ही पैसे थे। उसी के साथ अन्य 5 मेहमान भी थे इसी बात का सहारा था। उसे परेशान देखकर मेरा भाई बस से उतर पड़ा, उसे ढूंढने के लिए, वह उसे गंगा माता के घाट पर भीड़ में ढूंढता रहा और हमारी बस ट्रैफिक को चीरती हुई आगे की ओर बढ़ने लगी लेकिन सभी लोग इस बात से परेशान थे कि कोई अनहोनी न हो जाए।
सभी लोग प्रार्थना करने लगे कि मेरा भाई, मेरी भाभी को ढूंढने में सफल हो जाए और आखिरकार भगवान ने सबकी प्रार्थना सुन ही ली। मेरा भाई, मेरी भाभी और अन्य मेहमानों को ढूंढने में सफल रहा, लेकिन गंगा माता के घाट से घर आने के लिए उन्हें कोई साधन नहीं मिल पा रहा था, इतनी भीड़ थी और कोई उन्हें लिफ्ट भी नहीं दे रहा था। बुजुर्गों को छोड़कर कार उन्हें लेने के लिए रवाना हो गई और बड़ी कोशिशों के बाद उन तक पहुंची।
यहां हमारी बस सभी मेहमानों को लेकर लॉज पर पहुंच गई, हम सभी लॉज में वापस गए जहां पर हॉल खुला हुआ था उसमें सभी मेहमानों को बिठाकर हमने भोजन कराना शुरू कर दिया। सभी लोग इतने भूखे थे कि किसी को भी लाइन में बिठाना नहीं पड़ा सभी एक-एक करके बैठ गए और गंगा माता का प्रसाद ग्रहण किया। सबके भोजन समाप्त होने तक मेरा भाई भाभी और अन्य मेहमानों के साथ पहुंच चुका था। उन्हें देखकर सबकी चिंता दूर हो गई और सभी लोग खुश हो गए।
मेरी भाभी आते ही अपने भोजन की चिंता किए बिना मेहमानों को उपहार बांटने और उन्हें अच्छे से विदा करने की तैयारी में जुट गई, उसे चिंता थी कि कोई यहां से खाली हाथ न चला जाए। शाम होने तक कुछ दूर से आए मेहमानों को छोड़कर लगभग सभी मेहमान अपने-अपने घरों को लौट गए। सभी मेहमानों को वस्त्र आदि उपहार में दिया गया। अगले दिन बचे हुए मेहमान भी अपने उपहार पाकर खुशी से अपने घर को चले गए। हमें लॉज आज खाली करके पुनः अपने घर आना था तो हमने जल्दी से सारे लॉज की सफाई करके अपना सारा सामान बांध लिया।
इस प्रकार मेरे भतीजे का गंगा जी को माना हुआ आर-पार ओहार(मुंडन समारोह) थोड़े खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ खुशी-खुशी संपन्न हुआ। मेरा भाई भी कुछ दिन यहां घूमने के बाद फिर महाराष्ट्र(कल्याण) लौट गया।
Comments
Post a Comment