दहेज की आग
(दहेज आज के समय में एक मुख्य समस्या बन गई है, यह कविता उसी समस्या के निवारण का संदेश देती है।)
कहते हैं जोड़ियां बनाता है ऊपर वाला
दो दिलों के बंधन को सजाता है ऊपर वाला
दूर देश के रहने वाले दो अनजान मुसाफिरों को,
संग में साथ-साथ चलाता है ऊपर वाला।
ऊपर वाले के किए हुए इस काम का क्रेडिट हम क्यों लेते हैं?
इस खूबसूरत से रिश्ते को सजाने के लिए दहेज क्यों लेते हैं?
और कोई रिश्ता बनने में तो कोई फीस और टैक्स नहीं लगता,
सिर्फ शादी के रिश्ते को हम इतना महंगा क्यों कर देते हैं?
बेटी का पिता बेटी भी दे और दहेज भी
बेटे का पिता लड़की भी ले और दहेज भी
जाने किसने यह कठोर नियम बनाया?
और हमने आंखें मूंदकर इसे अपनाया।
शादी के बाद बेटी का पिता
कई साल तक बेटी की शादी के कर्जे चुकाता है,
बेटी खुशहाल रहे इसलिए
लड़के वालों के सामने झुकता ही चला जाता है।
अरे लड़के वालों! अपनी हैसियत से ज्यादा मुंह खोलो मत।
अच्छी लड़की मिले तो उसके बाप की जेब टटोलो मत ।
जो जोड़ी बड़ी फुर्सत से ऊपर वाले ने बनाकर भेजी है,
मूर्ख बनकर उससे जुड़ने के लिए टैक्स वसूलो मत।
दहेज वह आग है, जो रिश्ते की खूबसूरती को मिटा देती है।
कोई दे तो भी, कोई ले तो भी, यह आग फैलती ही जाती है।
आओ हम मिलकर अपनी समझ से इस आग को बुझा दें।
ऊपर वाले ने जो बनाई है जोड़ी उसकी खूबसूरती को बढ़ा दें।
कितना अच्छा होगा वह समाज,
जहां कोई लालची बनकर दहेज मांगेगा नहीं।
जहां कोई दहेज देकर कर्ज तले डूबेगा नहीं।
तब केवल रिश्तो में प्यार ही प्यार होगा,
और कोई रिश्ता जल्दी टूटेगा भी नहीं।
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