प्राइवेट नौकरी बेवफा सनम है। --(हिंदी कविता) प्राइवेट नौकरी बेवफा सनम है। इसके नखरे कहां, किसी से कम हैं। कभी गिफ्ट में ओवरटाइम मांगे, कभी सैलरी की कटाई मांगे, नए - नए रूल्स ने किया नाक में दम है। माना सरकारी नौकरी, पत्नी की तरह साथ निभाती है। पर सबको कहां मिल पाती है। पढ़े- लिखे और अनपढ़ सब हैं, इसके दीवाने और परवाने। इसको पाने के वास्ते लंबी उम्र निकल जाती है। जैसे महबूबा सजती है, अपने महबूब के लिए। हर युवा पढ़ता है, डिग्रियां लेकर घूमता है, नौकरी पाने के लिए। कोई बेवफा सनम के सहारे ही, अपनी ज़िंदगी बिता देता है। तो, किसी को पत्नी भी मिल जाती है। अक्सर पत्नी का सुख , रिश्वतखोरी को ही मिलता है। हर युवा को ये मौका कहां मिलता है? कोई बेवफा सनम के लिए भी मचलता है, उसी के साथ गिरता और संभलता है! ऐ प्राइवेट नौकरी तू किसी से बेवफाई ना करना, तुझसे ही कईयों के घर का चूल्हा जलता है। अब हमें तेरे नखरे भी सुहाने लगते हैं। क्योंकि तेरे साथ रहना अब अच्छा लगता है।