रोग प्रतिकारक क्षमता (इम्यूनिटी)

 (इस आर्टिकल में रोगप्रतिकारक क्षमता को बढ़ाने के कुछ उपाय तथा इसे सुरक्षित रखने के बारे में बताया गया है।)


रोगप्रतिकारक क्षमता (immunity)

रोग प्रतिकारक क्षमता का तात्पर्य उस शक्ति से है, जो हर जीव के भीतर बाहर से आक्रमण करने वाले जीवाणु (bacteria), विषाणु(virus) आदि से रक्षा करती है।
ईश्वर ने हर जीव मात्र को शरीर देते समय उसमें एक  ऐसी क्षमता प्रदान की है, जो उसकी सुरक्षा कर सके। जैसे हर राज्य की एक सेना होती है, जो बाहरी आक्रमणों से उस राज्य की रक्षा करती है। उसी प्रकार हर जीव की रोग प्रतिकारक क्षमता उसे अनेक रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है। जब कुछ कारणों से यह रोग प्रतिकारक क्षमता कमजोर पड़ जाती है, तो छोटे- बड़े संक्रमण हमें आसानी से लग जाते हैंं, जो कभी-कभी हमारे लिए घातक भी सिद्ध होते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम अपनी रोग प्रतिकारक क्षमता, जिसे ईश्वर ने वरदान स्वरुप हमें दिया है, इसे मजबूत बनाएं, कमजोर ना होने दें।

रोगप्रतिकारक क्षमता शरीर में कैसे काम करती है?

हमारे शरीर में मुख से लेकर पेट तक अनेक ऐसे अंग हैं, जिनमें किसी ना किसी रूप में रोगप्रतिकारक क्षमता काम करती है।


  • जब भी हमारे शरीर में बाहर से किसी जीवाणु या विषाणु का आक्रमण होता है, हमारे शरीर का तापमान बढ़ जाता है। यह तापमान इसलिए बढ़ता है, ताकि उस जीवाणु या विषाणु का अंत कर सके।
  • जब भी नाक के रास्ते हमारे शरीर में कोई अवांछनीय वस्तु प्रवेश करती है, हमें छींके आती हैं, इस  के जरिए हमारा शरीर उस आवाज़ अन्य वस्तु को बाहर फेंकने की कोशिश करता है।
  • दस्त और उल्टी भी हमें तभी आती है, जब हम कुछ उल्टा सीधा खाते हैं। हमारा शरीर उल्टी -सीधी चीज को उल्टी और दस्त के माध्यम से शरीर के बाहर फेंकने की कोशिश करता है।
  • त्वचा पर लाल रैशेज,खुजली आदि भी हमें तभी होते हैं, जब हमारे खून में आवश्यकता से अधिक अशुद्धता आ जाती है, हमारा शरीर त्वचा के रोम छिद्रों द्वारा कुछ औषध अशुद्ध चीजों को बाहर निकालने की कोशिश करता है, लेकिन वे सतह पर ही एकत्र होकर स्किन एलर्जी उत्पन्न करते हैं।
उपर्युक्त संकेतों के अतिरिक्त हमारी रोगप्रतिकारक क्षमता कई अन्य तरीकों से भी हमारी रक्षा करने की कोशिश करती है। लेकिन जैसे कोई वफादार जानवर अपने मालिक की हिफाजत करते हुए भी कभी-कभी मालिक द्वारा पीट दिया जाता है, उसी प्रकार हम भी जाने- अनजाने अपनी रोग प्रतिकारक क्षमता को कमजोर  बनाने का कारण बन जाते हैं।

 रोग प्रतिकारक क्षमता कमजोर होने के कारण-

हमारी कुछ गलतियों के कारण अथवा कुछ अन्य कारणों से हमारी रोगप्रतिकारक क्षमता कमजोर हो जाती है। आइए उन कारणों को जाने-

अनावश्यक दवाओं का सेवन

विज्ञान के प्रगति के साथ-साथ औषधि विज्ञान ने भी बहुत तरक्की की है, विशेषता एलोपैथी चिकित्सा ने, लेकिन जैसे किसी भी वस्तु का अनावश्यक सेवन नुकसानदेह होता है, उसी प्रकार एलोपैथी की कुछ दवाइयां जो हम केवल रोक की शंका होने पर ही खाने लगते हैं। इनसे हमारे रोगप्रतिकारक क्षमता को बहुत क्षति पहुंचती है, यह कमजोर पड़ने लगती है और हमें अन्य दूसरे रोग धीरे-धीरे होने लगते हैं।
थोड़ा सा बुखार होने पर ही, अथवा छिंके और सर्दी होने पर हम जो एलोपैथिक की दवाइयां लेते हैं, उससे तो बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचता है। अतः हमें इन छोटी- छोटी बातों को नेचुरल तरीके से ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए दवाओं से नहीं।

अस्त व्यस्त जीवनशैली

आज के भागदौड़ भरे समय में हमें अपने शरीर का ध्यान रखने का समय नहीं मिल पाता, जो मिलता है खा लेते हैं, नींद आने पर भी हम सो नहीं पाते, थोड़ा सा दर्द होने पर अपने काम को महत्व देने के लिए हम तुरंत ही दवाओं का सेवन करने लगते हैं। ये सभी बातें हमारी रोग प्रतिकारक क्षमता को शनै: शनै: कमजोर बना देती हैं। एक समय ऐसा भी आ जाता है , जब हम बिस्तर पर पड़े एक मरीज बन जाते हैं, और अपनी व्यक्तिगत कामों के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है।

बिस्तर पर मरीज बनकर रहने से अच्छा है, हम अपनी दुर्दशा के बारे में सोच कर पहले से ही अपना ख्याल रखें। कितनी भी अस्तव्यस्त जीवन शैली  क्यों ना हो, जीवन से बढ़कर कुछ भी नहीं है। यह जीवन तभी है, जब हमारे शरीर की रोग प्रतिकारक क्षमता हमारे साथ हैं।


प्रकृति से दूरी और सुख सुविधाओं का अत्यधिक सेवन

जैसे-जैसे सुख-सुविधाओं की वस्तुएं बढ़ते जा रहे हैं, हम उनके आदि होते जा रहे हैं। धूप और शुद्ध हवा जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अमृत है, उसे नजरअंदाज करके हम एसी और कूलर वाले कमरों में रहना पसंद करने लगे हैं। प्रकृति की ऐसी अनदेखी हमारी रोगप्रतिकारक क्षमता के लिए घातक सिद्ध हो जाती है।

मानव शरीर के लिए 45 मिनट की धूप अति आवश्यक है, जैसे सूर्य प्रकाश की मदद से पौधे अपना भोजन बनाते हैं, इसी प्रकार हमारी रोग प्रतिकारक क्षमता भी इसी धूप से शक्ति प्राप्त करती है। आवश्यकता से अधिक तो कोई भी चीज़ हानि पहुंचाती है, लेकिन जितनी जरूरत है इतनी धूप और हवा तो हमारे शरीर को मिलनी ही चाहिए।


अपने शरीर के प्रतिकूल भोजन का सेवन

आज के युग में हम स्वास्थ्य से ज़्यादा महत्व अपने स्वाद को देने लगे हैं। हमें यह समझना होगा कि हमारे लिए स्वाद जरूरी है या स्वास्थ्य ।

जिस ईश्वर ने हमारा यह शरीर बनाया है, उसी ईश्वर ने हमारे पालन पोषण के लिए कुछ खाद्य पदार्थों को भी बनाया है। इसके विपरीत यदि हम कोई भोजन करते हैं, तो वह हमें कभी भी स्वास्थ्य नहीं दे सकता। कभी भी कोई शाकाहारी प्राणी मांसाहार ग्रहण नहीं करता, भले ही वह भूखा मर जाए उसी प्रकार कोई मांसाहारी प्राणी है भूखा मर जाए पर घास ना खाएं। लेकिन हम मनुष्य अपने स्वाद के लिए जो जी में आए वह खा लेते हैं। हमारी यह आदत हमारी रोगप्रतिकारक शक्ति को कमजोर बना देती है।

उपर्युक्त सभी गलतियों को यदि हम सुधार लें, तो हमारी रोगप्रतिकारक क्षमता सदा बलवान बनी रहेगी, और एक बलवान सेना के साथ हम सदा ही स्वस्थ रहेंगे। छोटे-छोटे रोग अगर आ भी जाए, तो यह शक्ति जल्दी ही उन रोगों का नाश कर देगी।

रोगप्रतिकारक क्षमता को बढ़ाने के कुछ उपाय


  • हमारा शरीर हमारे लिए सब कुछ है, अपनी सारी धन दौलत को बेच कर भी हम अपने लिए अच्छा स्वास्थ्य नहीं खरीद सकते, इसलिए जरूरी है कि धन- दौलत कमाने के चक्कर में हम अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ ना करें। अपने शरीर को इतना मजबूत बनाएं, कि यह हमारे जीवन में हमें किसी भी अच्छे कर्म करने की प्रेरणा दे। ऐसा तभी होगा जब हम अपने शरीर के लिए भी रोजाना कुछ समय निकालें। खुली हवा में बैठें, योगासन, ध्यान आदि करें।
  • प्राचीन समय से ही धूप और शुद्ध हवा हमारे लिए अमृत रही है, इसका यथोचित सेवन  करें, शुद्ध हवा हमें मिल सके, इसलिए हमें अपनी प्रकृति का भी ध्यान रखना चाहिए।
  • सभी डॉक्टर भगवान नहीं होते, कुछ डॉक्टर बिजनेसमैन भी होते हैं, उनके बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए आप अनावश्यक दवाओं का सेवन न करें। इसके लिए जरूरी है कि अपने शरीर का ध्यान रखना आप खुद सीखें, अपने शरीर का डॉक्टर खुद बनें। और कोई ज्ञान आप के काम आए या ना आए, अपने शरीर का ज्ञान आपके हर पल काम आएगा।
  • अपने शरीर के अनुकूल भोजन करें, ईश्वर ने आपको विशेषतः शाकाहारी जीव के रूप में बनाया है, अपने भोजन में अधिक- से- अधिक शाकाहार का समावेश करें, कच्ची सब्जियों और पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें। मौसम के अनुसार उपलब्ध फलों का लाभ उठाएं। एक अच्छा प्रयास हमें अच्छे- से- अच्छा स्वास्थ्य प्रदान कर सकता है और थोड़ी सी लापरवाही हमें बिस्तर पर पड़ा मरीज बना सकती हैं।

अगर हमने उपर्युक्त सभी बातों का ध्यान रखा, तो हमारी रोगप्रतिकारक क्षमता अवश्य ही हमें एक स्वस्थ जीवन प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगी।


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