नवरात्र में नवमी पूजन का महत्व
( चैत्र मास में पड़ने वाली नवरात्र के नवमी तिथि को उत्तर भारत के लोग शीतला माता के पूजन की कुछ विधियों का पालन करते हैं, जिसका वैज्ञानिक तथ्यों के साथ आकलन इस आर्टिकल में किया गया है।)
नवरात्र में नवमी पूजन का महत्व
भारत में प्रतिवर्ष आश्विन और चैत्र मास में नवरात्र के विशेष पर्व को श्रद्धा -भाव से कुछ विशेष नियमों के साथ संपूर्ण भारत वर्ष के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रूप में मनाया जाता है । नवरात्र में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, व्रत उपवास तथा अन्य नियमों का दृढ़ता से पालन किया जाता है, ये नियम हमारे स्वास्थ्य तथा जीवन के कल्याण के लिए आवश्यक होते हैं। आइए इन सभी नियमों को वैज्ञानिक तथ्यों के साथ समझें।
नवरात्र का महत्व
वर्ष में दो नवरात्र पड़ती हैं। शरद नवरात्रि आश्विन मास में पड़ती है, वह बारिश के ठीक बाद का समय होता है, मौसम बहुत सारे संक्रमण भरे रोगों का होता है, और साथ ही एक मौसम समाप्त होकर दूसरा मौसम आरंभ होने की स्थिति रहती है। ऐसे समय में यदि व्रत किया जाए, अन्न को छोड़कर अन्य फलाहार का सेवन किया जाए, तो यह हमारे स्वास्थ्य के लिए अनेक प्रकार से लाभकारी होता है।
हमारे शरीर में पुराना माल जमा होने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, यदि कुछ दिनों के लिए अन्न का सेवन ना करके फलाहार में रहें, तो पुराने मल को निष्कासन के लिए समय मिल जाता है और हमारे शरीर को स्वस्थ होने का मौका भी मिल जाता है। इसलिए हर 6 महीने पर नवरात्र के व्रत -उपवास का नियम हमारी संस्कृति में बनाया गया है।
नवरात्र में साफ सफाई क्यों रखी जाती है?
नवरात्र में जब हम मां दुर्गा का पूजन करते हैं, तो साफ सफाई पर विशेष ध्यान देते हैं, घर में पवित्रता का माहौल रहता है, और यह पवित्रता साफ सफाई के बिना अधूरी होती है।
नवरात्र जब भी पड़ते हैं, संक्रमण के मौसम में ही पड़ते हैं। ऐसे समय में यदि घर को साफ- सुथरा रखा जाए, तो बहुत से संक्रमण कारी रोगों से बचा जा सकता है। अतः मां दुर्गा के पूजन के बहाने ही बहुत से संक्रमण कारी रोगों से हमारी रक्षा हो जाती है।
नवरात्र में सुबह शाम घंटा- ध्वनि के साथ आरती का महत्व
सुबह शाम मंदिरों में अथवा घर पर ही हम घंटा ध्वनि के साथ, शंख आदि बजाकर माता की आरती एवं पूजन करते हैं, इससे मन को शांति और वातावरण को पवित्रता का माहौल तो मिलता ही है, साथ ही इन सभी ध्वनियों से पर्यावरण के अनेक हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। अतः ऐसा करने से हमें मानसिक शांति के साथ-साथ अच्छे स्वास्थ्य की भी प्राप्ति होती है।
नवरात्र में दूसरे के घर का अथवा बाहर का भोजन क्यों नहीं करना चाहिए?
नवरात्र में हमें अपने बड़ों से सख्त निर्देश दिया जाता है, कि किसी के घर का बना हुआ तथा बाहर का भोजन नहीं करना है। ऐसे निर्देश के पीछे एक ही उद्देश्य होता है, कि किसी भी प्रकार की खराब भोजन से जो कि हमारे लिए किसी बीमारी को उत्पन्न करने वाला हो सकता है, उसी से बचा जाए।
इस समय अधिक लोगों से मिलने के लिए भी मना किया जाता है, क्योंकि यह संक्रमण का मौसम रहता है, यदि हम किसी ऐसे मनुष्य से मिलते-जुलते हैं, जिसे किसी प्रकार का संक्रमण हो, तो यह संक्रमण हमें लगने का खतरा रहता है। इसलिए इस समय हमें घर में रहकर पूजा-पाठ आदि करने की हिदायत दी जाती है।
नवरात्रि के समय यज्ञ, हवन आदि करने से लाभ
नवरात्र में संध्या के समय घरों में लौहबाण आदि की धूनी जलाई जाती है, घरों में नवरात्र के अंत में यज्ञ, हवन आदि का आयोजन किया जाता है। इसका उद्देश्य बहुत ही कल्याणकारी है, यज्ञ, हवन तथा लौहबाण आदि की धूनी से वातावरण के जीवाणु, विषाणु आदि नष्ट हो जाते हैं, हवा शुद्ध हो जाती है तथा पवित्रता का माहौल बन जाता है।
चैत्र मास की नवरात्रि में नवमी पूजन का महत्व
चैत्र मास की नवरात्रि में मां दुर्गा के पूजन के साथ साथ अष्टमी तिथि की रात्रि को शीतला माता के पूजन का विधान बनाया गया है। इस दिन घर की बहुत ही अच्छी तरह सफाई की जाती है, मिट्टी के घरों को गोबर से लीपा जाता है (गोबर से मिट्टी के घरों को लिखने से सीलन के कारण उत्पन्न होने वाले अनेक बैक्टीरिया मर जाते हैं।), संध्या काल के समय कलश रखकर मां शीतला की पूजा की जाती है, प्रसाद स्वरूप मध्यरात्रि को दाल- पुरी एवं गुड और चावल से बनी खीर अर्पित की जाती है।
नवमी पूजन में होने वाले हर विधि विधान से हमें कुछ ना कुछ लाभ होता है, जैसे घर की साफ सफाई से हानिकारक कीटाणुओं का नाश हो जाता है। मां शीतला रोगों से रक्षा करने वाली देवी है कहीं जाती हैं। वास्तव में इनकी पूजा करने से हम इन नियमों का पालन करते हैं, जिनसे अनेक रोगों से हमारी रक्षा हो जाती है।
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