निर्जला एकादशी(भीमसेनी एकादशी)
(इस आर्टिकल में निर्जला एकादशी की विधि, महत्व, तिथि तथा पौराणिक कथा आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।)
निर्जला एकादशी किस तिथि को पड़ती है?
निर्जला एकादशी जेष्ठ मास के शुक्लपक्ष को मनाई जाती है। अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार यह जून महीने में पड़ती है। इस समय कभी भीषण गर्मी का समय होता है, तो किसी वर्ष मानसून के आगमन का समय होता है।
निर्जला एकादशी व्रत की विधि
निर्जला का अर्थ है 'बिना जल के'। निर्जला एकादशी के दिन जल का भी त्याग कर दिया जाता है। क्योंकि सभी भोज्य पदार्थों में कुछ जल का अंश होता ही है, इसलिए इस दिन ना तो कोई फलाहार लिया जाता है, नहीं किसी प्रकार का रसपान किया जाता है। इसलिए इस एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं।
- निर्जला एकादशी के दिन प्रातः जल्दी उठकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। एकादशी व्रत भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है, इसलिए भगवान विष्णु के भक्त एकादशी का व्रत करते हैं।
- घर की साफ- सफाई करने के पश्चात दीपक जलाकर एवं भगवान विष्णु को फलाहार के साथ तुलसी दल का भोग लगाया जाता है।
- भगवान विष्णु के लिए इस दिन निर्जला रहने का प्रण लिया जाता है।
- भूखे लोगों को, ब्राह्मणों को यथाशक्ति अन्न, जूता, छाता, आदि का दान किया जाता है। पेयजल के लिए प्याऊ लगाने जैसा पुण्यमय कार्य भी इस दिन किया जाता है।
- संध्या के समय निर्जला एकादशी की कथा सुनी जाती है, भगवान विष्णु की पूजा एवं आरती की जाती है।
- अगले दिन ब्राह्मण को यथाशक्ति दान देकर व्रत का पारण किया जाता है।
- एकादशी व्रत के पारण में सरसों तेल में बनी वस्तुएं तथा बैंगन नहीं खाना चाहिए।
- ऐसी मान्यता है की एकादशी के दूसरे दिन द्वादशी को, जिस दिन एकादशी का पारण किया जाता है, उस दिन केवल दो समय भोजन करना चाहिए।
निर्जला एकादशी का महत्व
एकादशी व्रत करने से जीवन में सुख तो मिलता ही है, मृत्यु भी सुखदाई बनती है। अतः मृत्यु लोक में जन्मे मानव समुदाय को अपने जीवन मरण को सुखी बनाने के लिए एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए।
निर्जला एकादशी वर्ष में पड़ने वाली 24 एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण एकादशी है। इस एकादशी को विधि विधान से व्रत करने पर वर्ष की सभी एकादशियों को करने का पुण्य प्राप्त होता है।
जो लोग हर महीने पड़ने वाली एकादशी का व्रत किसी कारण से नहीं कर सकते, वे निर्जला एकादशी के दिन व्रत करके उतना ही पुण्य एवं फल प्राप्त कर सकते हैं।
निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी क्यों कहते हैं?
निर्जला एकादशी का व्रत सबसे पहले पांडवों में बलवान भीमसेन ने किया था। क्योंकि उनको अधिक भोजन करने की लत थी, भोजन किए बिना रह पाना उनके लिए मुश्किल था। इसलिए वर्ष की सभी एकादशियों का व्रत वे नहीं कर पाते थे। अतः इस समस्या के समाधान हेतु उन्होंने निर्जला एकादशी का व्रत करना आरंभ किया। इसी कारण से निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा
एकादशी व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है, इस बात को समझते हुए चारों पांडव एकादशी का व्रत निष्ठा से करते थे लेकिन भीम जिन्हें अधिक भोजन करने की आदत थी और भोजन के बिना नहीं रह सकते थे, वे इस व्रत को करने में सक्षम नहीं थे, इसलिए वे एकादशी का व्रत नहीं करते थे।
एक दिन वेदव्यास जी पांडवों से मिलने के लिए आए। भीमसेन ने उनसे कोई ऐसा उपाय पूछा जिससे उन्हें एकादशी व्रत करने के लिए भूखा भी ना रहना पड़े और व्रत का पुण्य भी प्राप्त हो जाए। इस पर वेदव्यास जी ने उन्हें निर्जला एकादशी करने का सुझाव दिया और उस दिन जल भी त्याग देने को कहा। भीमसेन ने उनकी बात मान ली तथा निर्जला एकादशी करने का प्रण लिया। सबसे पहले उन्होंने इस व्रत को किया था इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।
जो किसी भी एकादशी का व्रत नहीं कर सकते उन्हें क्या करना चाहिए?
आजकल की व्यस्तता से भरे समय में हर किसी के पास इतना समय नहीं रह गया कि वह किसी व्रत का अनुष्ठान करें ऐसे में वह भी कुछ ऐसे कार्य कर सकता है जिससे उसे भी कुछ पुण्य प्राप्त हो जाए।
- इस दिन जो लोग व्रत नहीं कर सकते, उन्हें कम से कम अन्य बुरे कामों से दूर रहना चाहिए।
- भगवान का थोड़ा भजन करना चाहिए, नहीं तो सुन ही लेना चाहिए, यह भी नहीं कर सकते तो किसी का भला ही कर देना चाहिए।
- अपने शरीर की अवस्था के अनुसार ही कोई भी व्रत करना चाहिए। इसलिए जो लोग किसी कारणवश व्रत करने में सक्षम ना हो उन्हें नहीं करना चाहिए।
- किसी भी व्रत का आयोजन हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे स्वास्थ्य के लिए ही रखा है। इसी धर्म से इसलिए जोड़ा गया है कि अधिक से अधिक लोग इसे कर सकें। ऐसा कुछ भी नहीं है कि भूखे रहने से भगवान मिल जाएंगे
- व्रत के सही उद्देश्य को समझते हुए अपनी अवस्था और स्थिति के अनुसार व्रत करना चाहिए।
निष्कर्ष
एकादशी सभी व्रतों में श्रेष्ठ है।निर्जला एकादशी सभी एकादशियों में श्रेष्ठ है । लेकिन सबसे श्रेष्ठ भगवान की भक्ति है, जो व्रत के साथ और व्रत के बिना भी हो सकती है। यदि सक्षम है, तो हम एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए। भगवान को सबसे अधिक प्रिय हमारा क्या हुआ अच्छा कर्म है। अच्छा कर्म हम तभी कर सकते हैं जब हमारे जीवन में पुण्य और स्वास्थ्य हो तथा इसकी प्राप्ति एकादशी व्रत से होती है।
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