सूर्य भगवान को जल (अर्घ्य) देने से लाभ

 (सूर्य भगवान हम सभी के लिए सर्व सुलभ एवं जीवन के स्रोत हैं, इस आर्टिकल में सूर्य भगवान को जल देने हेतु समस्त जानकारी दी गई है।)

सूर्य भगवान की फोटो


भगवान सूर्य सभी वनस्पतियों एवं प्राणियों के लिए ऊर्जा का स्रोत हैं। उनकी ऊर्जा को यदि सही रूप में ग्रहण करना हो, तो उन्हें जल (अर्घ्य) देना अत्यंत आवश्यक है। सूर्य को जल देने के जो बौद्धिक,मानसिक एवं शारीरिक लाभ हैं, उन्हें विज्ञान भी स्वीकार करता है। इस विषय में हर जानकारी को विस्तार से जानना आवश्यक है, आइए हम इसे जानें।


सूर्य को जल (अर्घ्य) देने से लाभ

प्राचीन समय से ही भारत में सूर्य भगवान को जल देने की परंपरा चली आ रही है। लगभग हर धार्मिक सीरियल में आप भगवान सूर्य की पूजा और उन्हें जल देना आदि ज़रूर देखते होंगे।
सनातन धर्म में 33 कोटि देवता हैं, उनमें से सूर्य भगवान ही ऐसे देवता हैं, जिनके दर्शन हर किसी को सुलभ होते हैं। उनके दर्शनों के लिए ना तो किसी तपस्या की आवश्यकता है, ना ही किसी विशेष पूजा की। सूर्यदेव दर्शन के साथ-साथ  अपनी उर्जा का प्रसाद भी पूरे संसार को देते रहते हैं।

सूर्य भगवान को जल देने से शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक तीनों तरीके से कुछ ना कुछ लाभ हमें मिलता ही है।

सूर्य भगवान को जल देने से शारीरिक लाभ

जब हम सूर्य भगवान को जल देते हैं, जल से होती हुई उनकी किरणें हमारे शरीर पर पड़ती हैं, उन पर अपना अलौकिक प्रभाव डालती हैं। त्वचा के अनेकों रोग दूर हो जाते हैं, साथ ही हड्डियों के लिए आवश्यक विटामिन डी भी पर्याप्त मात्रा में मिलता है।


सूर्य भगवान को जल देने से मानसिक लाभ

सूर्य भगवान को जल देने से बुद्धि प्रखर होती है। मस्तिष्क को सूर्य की उर्जा मिलने से  तनाव दूर हो जाते हैं, उसमें नई ऊर्जा का संचार होने लगता है। चंचल मन को शांति मिलती है। सारे जगत का कल्याण करने वाले सूर्य भगवान से जब हम सबके मंगल की कामना करते हैं, तो हमारा मन और बुद्धि निष्काम भक्ति से युक्त, शुद्ध और शांत हो जाते हैं। शांत मन और बुद्धि नए-नए विकल्पों के साथ, पूर्ण उत्साह से नए कार्यों को करने के लिए हमें प्रेरित करती हैं। अतः मन और बुद्धि को शांत और प्रखर करने के लिए हमें सूर्य भगवान को नियमित जल अवश्य देना चाहिए।


सूर्य भगवान को जल देने से आध्यात्मिक लाभ

सूर्य भगवान को जल देने से हमारे तन मन के साथ-साथ हमारी आत्मा भी शुद्ध होती है। शुद्ध आत्मा भगवान की भक्ति के लिए हमें प्रेरित करती है। ध्यान, भजन आदि में मन लगने लगता है।
सभी विकार दूर होने लगते हैं। जो लोग त्रिकाल संध्या करते हैं, तीनों प्रहरों में सूर्य भगवान की पूजा करते हैं, उन पर सूर्य भगवान की विशेष कृपा होती है।
कर्ण के पिता सूर्य भगवान थे, इस बात से अनजान होते हुए भी कर्ण सूर्य भगवान की तीनों पहर की पूजा-अर्चना , अर्घ्य- दान आदि करने के बाद ब्राह्मणों को तथा जरूरतमंदों को दान अवश्य देता था। उनके इस सूर्यभक्ति और दान के कारण आज भी उन्हें महान समझा जाता है।


सूर्य भगवान को अर्घ्य कब देना चाहिए?

सूर्य भगवान सुबह से लेकर शाम तक अपनी किरणों को बिखेर कर पूरी दुनिया को प्रकाशमान करते हैं। वनस्पतियों एवं प्राणियों को जीवन के लिए आवश्यक ऊर्जा देते हैं। उन्हें अर्घ्य देने का कोई एक समय निश्चित नहीं किया गया है, बल्कि उनके लिए तो त्रिकाल संध्या का विधान बनाया गया है।
त्रिकाल संध्या का मतलब है, तीनों प्रहरों में जब-जब संधि का समय आए अर्थात रात से सुबह हो; सुबह से दोपहर का समय आए तथा जब दोपहर से फिर संध्या का समय आए, इन तीनों समय में सूर्य भगवान की पूजा की जाती है, उन्हें अर्घ्य दान किया जाता है। अर्थात जो तीनों समय की संध्या कर सकते हैं उनके लिए तो अति उत्तम है, यदि नहीं तो कम से कम प्रातः के समय सूर्य भगवान को अर्घ्य अवश्य देना चाहिए।

भगवान सूर्य को जल कितने बजे देना चाहिए?

सूर्योदय के समय, जब सूर्य की लालिमामय किरणें पर्यावरण को सुशोभित करती हैं, वह समय सूर्य भगवान को अर्घ्य देने का, सूर्य नमस्कार करने का सबसे उत्तम समय होता है। उगते हुए सूर्य भगवान जब लाल गेंद की तरह दिखते हैं, उन पर त्राटक अर्थात उन्हें ध्यान से निहारने की प्रक्रिया करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। इस समय सूर्य भगवान की पूजा- अर्चना करने से शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक सभी प्रकार के लाभ मिलते हैं।

सूर्य भगवान की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए?

सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के बाद उनकी सात परिक्रमा करनी चाहिए। अर्थात अपने ही स्थान पर खड़े होकर सात बार गोल घूमना चाहिए और हर बार सूर्य देवता को नमन करना चाहिए।

 सूर्य देवता की सात बार परिक्रमा करने का शास्त्रों में निर्देश दिया गया है, ऐसा करने से शारीरिक रूप से भी व्यायाम करने का लाभ मिल जाता है।


सूर्य नमस्कार क्या होता है?

सूर्य नमस्कार एक प्रकार का योगासन है, जिसे सूर्योदय के समय किया जाता है।सूर्य सभी वनस्पतियों एवं प्राणियों के लिए ऊर्जा का स्रोत है। सूर्योदय के समय सूर्य नमस्कार करने से शरीर के लिए आवश्यक सभी प्रकार के व्यायाम हो जाते हैं। साथ ही सूर्य की ऊर्जा तथा पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी भी मिल जाता है, जो हड्डियों की मजबूती के लिए आवश्यक होता है।
सूर्य नमस्कार में कुल 12 आसन होते हैं, जिन्हें नीचे वीडियो में दर्शाया गया है।
शुरुआत में थोड़ी परेशानी होती है, लेकिन कुछ दिन के अभ्यास के बाद इसे अच्छी तरह किया जा सकता है।



नियमित रूप से सूर्य नमस्कार करने तथा सूर्य भगवान को जल अर्थात अर्घ्य देने से शरीर स्वस्थ रहता है, मानसिक तथा आध्यात्मिक शांति मिलती है। बुद्धि प्रखर होती है।


सूर्य को जल कैसे चढ़ाना चाहिए?

सूर्य भगवान की अधिक से अधिक ऊर्जा हमारे पूरे शरीर को प्राप्त हो, ऐसे उपयुक्त स्थान पर ही हमें सूर्य भगवान को जल चढ़ाना चाहिए। सूर्य भगवान को अर्घ्य देते समय अपने दोनों हाथों को अपने मस्तिष्क से ऊपर करके जल को ऊपर से नीचे इस प्रकार गिराना चाहिए की उस जल से होकर आती हुई सूर्य की किरणें हमारे पूरे शरीर पर पड़े। इस समय अपने नेत्र खुले रखने चाहिए, इससे आंखों को फ़ायदा होता है।

सूर्य भगवान को किस पात्र से जल चढ़ाना चाहिए?

वैसे तो किसी भी पात्र से सूर्य भगवान को जल चढ़ाया जा सकता है, चाहे वह मिट्टी का पात्र हो अथवा सोने का, लेकिन तांबे के पात्र का विशेष महत्व है। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि सधवा स्त्रियों को तांबे के पात्र से जल नहीं चढ़ाना चाहिए। जो भी पात्र प्रयोग में लाया जाए, वह स्वच्छ होना चाहिए।

पात्र कोई भी हो, हमारा हृदय रूपी पात्र स्वच्छ होना चाहिए। पवित्र हृदय के साथ जगत के मंगल की कामना के भाव से, जब हम सूर्य भगवान को नमन करते हुए, जल अर्पित करेंगे, तो सूर्य भगवान अवश्य ही हम पर अपनी कृपा करेंगे।


सूर्य भगवान् को जल चढ़ाते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए?

सूर्य भगवान को जल चढ़ाने का जितना महत्व है, उतना ही महत्व जल चढ़ाते समय कुछ विशेष मंत्रों का उच्चारण करने का है। मंत्र विज्ञान के अनुसार जल चढ़ाते समय इन मंत्रों का उच्चारण करने से शरीर के अंदर  स्थित सातों केंद्रों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है। शारीरिक एवं आध्यात्मिक लाभ मिलता है।

सूर्य भगवान को जल चढ़ाते समय 13 मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए, जो निम्नलिखित हैं।

  1. ओम सूर्याय नमः
  2. ओम आदित्याय नमः
  3. ओम भास्कराय नमः
  4. ओम हिरण्यगर्भाय नमः
  5. ओम सावित्रे नमः
  6. ओम पूष्णे नमः
  7. ओम अर्काय नमः
  8. ओम भानवे नमः
  9. ओम रवये नमः
  10. ओम खगाय नमः
  11. ओम प्रभाकराय नमः
  12. ओम दिवाकराय नमः
  13. ओम श्री सावितृ सूर्यनारायणाय नमः

सूर्य भगवान के इन 13 मंत्रों का उच्चारण करते हुए हमें सूर्य भगवान को जल चढ़ाना चाहिए। उच्चारण सस्वर बोलते हुए करना चाहिए।


सूर्य को जल क्यों देते हैं?

सूर्य भगवान सारी सृष्टि के कर्णधार हैं, उनसे ही आवश्यक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। सूर्य की ऊष्मामय किरणें पृथ्वी पर से जल को अवशोषित करके वर्षा के रूप में हमें प्रदान करती हैं, जिससे हमें जल एवं भोजन की प्राप्ति होती है। इसके अनुदान के स्वरूप में कम से कम हमें सूर्य भगवान को एक लोटा जल अवश्य चढ़ाना चाहिए।

सूर्य भगवान को जल चढ़ाने का वैज्ञानिक कारण

सूर्य भगवान को जल चढ़ाते समय जब उस जल से होते हुए सूर्य की किरणें हमारे शरीर को स्पर्श करती हैं, तो त्वचा के साथ-साथ शरीर के कई रोग दूर हो जाते हैं। सूर्य की रश्मियों में जो सात रंग होते हैं, जिन्हें प्रिज्म कहते हैं,  वे हमारे सप्त धातुओं का पोषण करते हैं। इसलिए सूर्य भगवान को जल देना स्वास्थ्य की दृष्टि से अति उत्तम है।

सूर्य भगवान को जल देने का आध्यात्मिक कारण

सूर्य भगवान हमें इतना कुछ देते हैं, तो हमारी भी कृतज्ञता बनती है कि हम उन्हें भी कुछ दे, लेकिन सर्व सामर्थ्यवान भगवान को हम अपनी भक्ति के अलावा और क्या दे सकते हैं! वे तो एक लोटा जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। अतः कृतज्ञता के रूप में हमें सूर्य भगवान को यदि संभव हो तो तीनों प्रहरों में नहीं तो कम से कम प्रातः के समय जल अवश्य चढ़ाना चाहिए।


शनिवार को सूर्य भगवान को जल देना चाहिए या नहीं?

हिंदू धर्म के अनुसार सूर्य भगवान शनि भगवान के पिता कहे जाते हैं। शनि भगवान दंड के देवता हैं, वे मनुष्य को उनके कर्मों के अनुसार  दंडित करते हैं। शनिवार को उनकी विशेष रूप से पूजा की जाती है।

सूर्य भगवान को नियमित जल देना चाहिए, चाहे वह कोई भी दिन हो। हर दिन सूर्य भगवान की किरणों के साथ ही शुरू होता है। ऐसा कोई विधान नहीं है कि सूर्य भगवान को शनिवार को जल नहीं देना चाहिए, बल्कि सूर्य भगवान को जल देने से तो शनि भगवान और प्रसन्न होते हैं। अतः हमें शनिवार हो या कोई भी दिन हो, हर दिन नियम से सूर्य भगवान को जल अवश्य देना चाहिए।


सूर्य स्नान क्या है? कब करना चाहिए?

जैसे हम जल से स्नान करते हैं, इसी प्रकार सूर्य की किरणों में स्नान करने को सूर्य स्नान कहा जाता है। सूर्य स्नान से त्वचा संबंधी अनेक रोग दूर होते हैं। जिनका शरीर अत्यंत दुबला पतला होता है, उन्हें विशेष रूप से सूर्य स्नान करना चाहिए। सूर्य की कोमल किरणों से हमें हड्डियों के लिए आवश्यक, विटामिन डी की प्राप्ति होती है, जो किसी भी अन्य वस्तु से हमें नहीं मिल सकती।

सूर्य स्नान, प्रातः की कोमल किरणों में किया जाता है। ऋतु के अनुसार प्रातः की कोमल किरणों का समय अलग-अलग होता है। जैसे ग्रीष्म ऋतु में सुबह 5:00 बजे ही हल्की धूप निकल जाती है तथा शीत ऋतु में प्रायः 8:00 बजे के बाद धूप निकलती है। ऐसे में हमें अपनी समझ से हल्की धूप देखते हुए उसका सेवन करना चाहिए, यही सूर्य स्नान है।

सूर्य स्नान के समय शरीर पर कम-से-कम कपड़े होने चाहिए। आंखों और मस्तिष्क पर सूर्य की सीधी किरण नहीं पड़नी चाहिए। आंगन या छत पर लेट कर भी सूर्य स्नान किया जाता है। लेकिन बारी-बारी से शरीर के सभी अंग सूर्य की किरणों के संपर्क में आए इस प्रकार हमें अपने शरीर की स्थिति रखनी चाहिए। सूर्य स्नान के बाद थोड़ी देर छांव में बैठकर तत्पश्चात जल से स्नान अवश्य करना चाहिए।

निष्कर्ष

सूर्य भगवान पूरे संसार को ऊर्जा और प्रकाश देते हैं। वे हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं, हमें उनकी तरह ही अपने हर कार्य को  नियत समय पर करना चाहिए। दिन और रात जैसे समय पर सूर्य भगवान की गति के कारण होते रहते हैं, हमें भी अपने जीवन में ऐसे ही नियमितता बनाए रखनी चाहिए।

प्रातः के समय सूर्य भगवान को जल अर्पित करने के लिए यदि हम प्रातः उठकर जल्दी स्नान करेंगे और और अर्घ्य दान के समय सूर्य नमस्कार जैसे आवश्यक योगासन करेंगे, तो हमें पुण्य के साथ-साथअच्छे स्वास्थ्य की भी प्राप्ति होगी। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है अर्थात स्वस्थ रहकर हम अपनी सफलता के लिए बड़े से बड़ा कार्य कर सकते हैं। सूर्य भगवान को अर्घ्य देने से इससे बड़ा और कोई लाभ तो हो ही नहीं सकता!









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