होली - एक विशेष पर्व
(इस आर्टिकल में होली जो हिंदुओं का एक विशेष पर्व है, उसके बारे में विशेष जानकारी दी गई है। होली क्यों मनाई जाती है? होली कब मनाई जाती है? इस त्योहार का क्या महत्व है?और ऐसी ही कुछ विशेष जानकारियां इस आर्टिकल में दी गई हैं।)
होली (एक विशेष पर्व)
भारत विविधताओं से भरा एक ऐसा देश है, जिसमें अनेक प्रकार के जाति, धर्म, संप्रदाय के लोग रहते हैं। जितने प्रकार के लोग रहते हैं, उतने ही अनेक प्रकार के उत्सव और त्योहार मनाए जाते हैं। भारत में मनाया जाने वाला हर पर्व विशेष तरीके से बनाया जाता है।
होली कब मनाई जाती है?
होली प्रायः फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह अक्सर मार्च महीने में मनाई जाती है, लेकिन कभी-कभी यह फरवरी के अंतिम सप्ताह में भी पड़ जाती है। यह बसंत ऋतु का समय होता है। मौसम न ज़्यादा गर्म होता है और न ही ज़्यादा ठंड होती है।
सुनहरा मौसम, कोयल की किलकारी, लहलहाती सरसों इन सभी का संयोजन तो खास होता ही है, इसमें होली का पर्व चार चांद लगा देता है। इस पर्व के अवसर पर मानव प्रकृति भी खुश होकर अपनी हंसी वातावरण में बिखेर देती हैं। इस तरह होली का पर्व कुछ और खास हो जाता है।
होली की पौराणिक कथा
सतयुग में हिरण्यकश्यप नाम का एक महान असुर था। उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से ऐसा वरदान प्राप्त किया था, कि ना तो वह दिन में मरे, ना रात में; ना धरती पर मरे, ना आकाश में; ना तो वह किसी मानव, देव, दानव या पशु द्वारा मारा जाए, ना ही किसी अस्त्र अथवा शस्त्र द्वारा मारा जाए।
ऐसा वरदान प्राप्त करने के बाद उसने धरती पर त्राहि-त्राहि मचा दिया। साधु - संतों पर अत्याचार करने लगा, उसने देवताओं की पूजा बंद करवा दी,किसी भी प्रकार के यज्ञ - अनुष्ठान को करने पर रोक लगा दिया।
भगवान विष्णु ने उसके बड़े भाई हिरण्याक्ष को वराह का अवतार लेकर मृत्यु प्रदान कर दी थी। इस कारण से वह भगवान विष्णु से विशेष ईर्ष्या करता था। उसने भगवान विष्णु का नाम लेने वालों को दंडित करना प्रारंभ कर दिया था। उसके डर से कोई भी भगवान विष्णु का नाम नहीं लेता था।
ईश्वर के खेल भी निराले होते हैं, जिस भगवान विष्णु से वह इतनी ईर्ष्या करता था। उसका अपना बेटा प्रह्लाद ही उस भगवान विष्णु का परम भक्त निकला, क्योंकि देवताओं ने हिरण्यकश्यप की पत्नी जो गर्भवती थी, उसका हरण कर लिया था, लेकिन महर्षि नारद ने उसे अपने आश्रम में संरक्षण प्रदान किया था। वहां के भक्तिमय वातावरण के कारण हिरण्यकश्यप का बालक महान विष्णु भक्त बन गया। जब वह अपने पिता के पास वापस आया, तो सभी को विष्णु भक्ति का पाठ पढ़ाने लगा।
जब यह बात उसके पिता तक पहुंची, तो वह आग- बबूला हो गया। उसकी विष्णु भगवान के प्रति ईर्ष्या उसके पुत्र मोह से कहीं अधिक थी। उसने प्रह्लाद को ऊंचे पहाड़ से नीचे फिंकवा दिया, लेकिन प्रह्लाद बच गया। प्रह्लाद को अपनी ही मां के द्वारा हलाहल विष दिया गया, लेकिन प्रह्लाद फिर भी बच गया। उसे कारागार में विषैले सर्पों के बीच रखा गया, लेकिन उसका बाल भी बांका न हो सका।
पह्लाद को विशेष प्रकार की यातनाएं देने के बाद भी जब उसका कुछ नहीं बिगड़ा, तब हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, जिसे ब्रह्मा द्वारा वरदान प्राप्त था, कि अग्नि उसे नहीं जला सकती। होलिका ने अपने भाई के समक्ष यह प्रस्ताव रखा, कि वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठेगी।
होलिका जब प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी, तो इसके वरदान का प्रभाव कुछ उल्टा ही हो गया, क्योंकि असत्य को कोई भी वरदान संरक्षण नहीं प्रदान कर सकता। प्रह्लाद बच गया तथा होलिका जल गई।
जिस दिन होलिका प्रह्लाद को अग्नि में लेकर जलने के लिए बैठी थी, वह फाल्गुन मास की पूर्णिमा का दिन था। उस दिन लोगों ने होलिका के जलने की और प्रह्लाद के बचने की खुशी को धूमधाम से रंगों के साथ मनाया, तभी से प्रत्येक फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका जलाने की प्रथा चली आ रही है। प्रत्येक वर्ष लोग होलिका दहन के रूप में अपनी सभी बुराइयों एवं कष्टों को जला देते हैं, पुरानी बातों को भुलाकर रंगों से अपने जीवन को नवीनता प्रदान करते हैं।
होली क्यों मनाई जाती है?
होली भारतवर्ष में प्राचीन समय से ही मनाई जाती है। प्रत्येक वर्ष लोग होलिका दहन के रूप में बुराई, पाप तथा अनेक व्याधियों को जलाते हैं, तथा सत्य की विजय के रूप में होली का उत्सव मनाते हैं। अनेक धर्म ग्रंथों में भी होली को मनाने का प्रमाण मिलता है। राधा-कृष्ण और गोपियों की होली विशेष रूप से विख्यात है।
होली कैसे मनाई जाती है?
होली एक ऐसा वार्षिक त्यौहार है, जिसे सभी लोग धूमधाम से मनाते हैं, परिवार के सभी लोगों के लिए नए वस्त्र खरीदे जाते हैं,घर की साफ - सफाई के साथ-साथ उसकी साज- सजावट पर भी ध्यान दिया जाता है। सभी के घरों में नए-नए अच्छे पकवान बनाए जाते हैं। गुजिया,मालपुआ, अनेक प्रकार के नमकीन और मिठाइयां तथा अन्य व्यंजन इस दिन बनते हैं। सभी लोग अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के घर जाते हैं, आपस में घुलते - मिलते हैं। एक दूसरे के बनाए गए व्यंजन चखते हैं।
होली में सजते बाजार
होली के इस विशेष पर्व में बाजारों में कुछ खास किस्म की रौनक होती है। कहीं रंगों और पिचकारियों की दुकानें है, तू कहीं विविध प्रकार के पकवानों की!बाजार की एक झलक नीचे चित्रों में आप देख सकते हैं।
होली के दिन सुबह सभी लोग अपने - अपने घर के देवी- देवताओं की पूजा करते हैं, अबीर और गुलाल चढ़ाते हैं, उन्हें कुछ प्रसाद अर्पित करते हैं। घर के बच्चे , बूढ़े और अन्य सभी लोग एक-दूसरे को रंग और अबीर लगाते हैं।
होली की शाम को सभी एक - दूसरे के घर जाते हैं, यदि उस दिन नहीं जा पाते, तो होली के दूसरे दिन अपने दोस्तों रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं। इस प्रकार होली के दिन सभी लोग आपस के गिले शिकवे भुला कर मिलजुल कर होली का पर्व मनाते हैं।
होली में उबटन लगाने तथा रंग खेलने का वैज्ञानिक महत्व
होली मनाने के 1 दिन पहले, होलिका दहन के दिन उत्तर भारत में सरसों को भूनकर, पीसकर उसका उबटन लगाने की प्रथा है, वैज्ञानिक रूप से इसका विशेष महत्व है। वसंत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की गर्मी में वृद्धि हो जाती है। सूर्य की किरणें हमारी त्वचा को जलाने लगती हैं। होली में लगने वाला उबटन हमारी त्वचा को इस प्रकार की जलन से बचाता है। उबटन लगाने के बाद जब उस पर हम प्राकृतिक रंगों से होली खेलते हैं, त्वचा पर एक प्रकार की सुरक्षा परत बन जाती है, यह परत सूर्य की तीव्र गर्मी से हमारी रक्षा करती है।
होली का बिगड़ता रूप
होली एक सांस्कृतिक राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने वाला विशेष पर्व है, लेकिन आजकल लोग इस त्योहार को ऐसे-ऐसे प्रचलन को बढ़ावा दे रहे हैं, जो होली के पर्व को विकृत कर रहें है।
आजकल लोग होली के दिन शराब पीने की प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं। लोग होली के दिन इतनी ज़्यादा मात्रा में शराब पी लेते हैं, कि उन्हें अपने शरीर की भी सुध - बुध नहीं रहती, इससे सड़क पर होने वाली दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं। परिवार में विवाद भी हो जाते हैं। भांग का सेवन अधिक मात्रा में करने से कुछ लोग इस पर्व का आनंद नहीं उठा पाते, सारा दिन सोने में ही बीत जाता है।
ठाट- बाट को कायम रखने के लिए लोग आवश्यकता से अधिक धन खर्च करते हैं, इसके कारण कर्जदार भी बनना पड़ता है। कुछ लोग धन के अभाव के कारण यह पर्व नहीं मना पाते और अच्छी- अच्छी चीजों के लिए तरस कर रह जाते हैं।
होली के दिन क्या ना करें?
- होली खेलने के लिए प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करें, रासायनिक रंगों का प्रयोग करने से त्वचा की अनेक बीमारियां हो सकती हैं।
- होली जीवन में रंग भरने का त्योहार है, उत्साह मनाने का दिन है, शराब पीकर और किसी प्रकार का नशा करके इस त्योहार का मज़ा किरकिरा ना करें।
- अपनी परिस्थिति के अनुसार ही खर्च करें, दिखावा करने के लिए नहीं।
- जहां तक संभव हो, सामर्थ्यवान लोगों को अपने से छोटे लोगों की मदद करनी चाहिए, खासकर के होली के पर्व के दिन। ऐसा करके खुशियां और बढ़ जाती हैं, क्योंकि उन खुशियों में उन गरीब लोगों की दुआएं भी शामिल हो जाती हैं।
- होली एक सांस्कृतिक पर्व है, अभद्र तरीके के गाने बजाकर तथा अनावश्यक गालियों से अपनी संस्कृति को लज्जित ना करें।
निष्कर्ष
होली एक सांस्कृतिक पर्व है। हमें अपने भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए। शराब पीकर तथा किसी भी प्रकार का नशा करके त्योहार को खराब नहीं करना चाहिए। अपने और अपने परिवार की खुशियों का पूरा ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि त्योहार हम खुशियों को बढ़ाने के लिए ही मनाते हैं।
हमारे आस-पास जो अभावग्रस्त लोग रहते हैं, उनके साथ अपनी खुशियों को बांटकर मनाना चाहिए। यदि संभव हो तो उनकी मदद जरूर करनी चाहिए, अगर मदद नहीं कर सकते तो उन्हें चिढ़ाने या ललचाने का काम तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।
खुशियां बांटने से बढ़ती हैं,त्योहार खुशियों को बढ़ाने के लिए ही आते हैं। इस बात का ध्यान रखते हुए हमें होली के इस पर्व को सबके साथ मिलजुलकर मनाना चाहिए।
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