स्वास्थ्य जरूरी या स्वाद
(इस आर्टिकल में स्वास्थ्य और स्वाद का तुलनात्मक विवरण दिया गया है तथा इस बात को स्पष्ट किया गया है ,कि अपने स्वाद को स्वास्थ्य के अनुसार कैसे परिवर्तित किया जा सकता है।)
स्वास्थ्य जरूरी है या स्वाद
स्वाद और स्वास्थ्य एक ही सिक्के के दो पहलू के समान हैं, यदि केवल स्वाद के बारे में सोचा गया, तो निश्चित ही स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर पड़ेगा और यदि केवल स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर कड़वी और औषधि युक्त भोजन का ही सेवन किया जाए, तो जीवन नीरस बन जाता है। अतः हमें स्वाद और स्वास्थ्य दोनों का ध्यान रखना होगा, लेकिन एक संतुलित मात्रा तक। जैसे माता- पिता अपने बच्चों को बिना पक्षपात के इस प्रकार उनका ध्यान रखते हैं, कि किसी भी बच्चे का अहित नहीं होने देते। आवश्यकता पड़ने पर कभी एक बच्चे को निराश भी कर देते हैं, डांट भी देते हैं क्योंकि उसी में उसका भला छिपा होता है। ठीक इसी प्रकार अपने जीवन में हमें स्वास्थ्य और स्वाद के साथ भी व्यवहार रखना होगा।
केवल स्वस्थ व्यक्ति ही अपने जीवन में हर प्रकार का आनंद ले सकता है, चाहे वह भोजन का हो अथवा मनोरंजन का। एक ऐसा बीमार व्यक्ति जो दिन- रात बिस्तर पर पड़ा रहता है, उसके लिए किसी भी स्वाद और अन्य वस्तुओं का कोई मतलब नहीं रह जाता। अतः स्वस्थ रहने के लिए हमें अपने स्वाद के साथ समझौता करना ही पड़ता है।
अपनी जीभ की संतुष्टि के लिए हमें कभी-कभी उसकी भी बात माननी चाहिए, लेकिन जब अति हो जाए, तो दृढ़ता पूर्वक उसे समझाना चाहिए, कि"देख भाई जीभ! अगर मैंने तेरी बात मान कर इन सब चीजों का सेवन किया, तो मेरी तबीयत बिगड़ जाएगी और तुझे कड़वी -कड़वी दवाइयों का स्वाद चखना पड़ेगा। इसलिए तुझे जितना दिया जा रहा है, उसी से संतोष कर।"
यदि पूरे शरीर को एक परिवार मान लिया जाए, और शरीर के अंगों को परिवार का सदस्य, तो जीभ भी इसके अनुसार हमारे शरीर रूपी परिवार का एक सदस्य होगी। जब भी किसी एक सदस्य की बात अधिक सुनी जाती है, तो अन्य सदस्य नाराज हो जाते हैं, ऐसा हमारे शरीर के साथ भी हो सकता है, और अक्सर होता भी है।
अतः न्यायप्रद तो यही है, कि शरीर के सभी अंगों के बारे में, उनकी भलाई और स्वास्थ्य के बारे में सोचा जाए, और उसी के अनुसार अपने भोजन और दिनचर्या को बनाया जाए। जीभ का भी फर्ज बनता है,कि वह स्वार्थी ना बने, सिर्फ अपने बारे में सोचना, एक दिन उसे सभी स्वादों से वंचित कर सकता है।
वास्तव में जीभ और पेट में सास और बहू जैसा रिश्ता है, यह रिश्ता यदि लड़- झगड़ कर जिएं, तो दोनों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं, लेकिन यदि प्रेम और समझौते के साथ जिएं, तो दोनों ही खुशहाल रहेंगे। पेट में जो कुछ भी जाए, जीभ को नि:स्वार्थ भाव से उसे स्वीकार करना होगा।
स्वाद और स्वास्थ्य यदि दोनों की तुलना की जाए, तो सदैव ही स्वास्थ्य को वरीयता देनी चाहिए, क्योंकि स्वास्थ्य सही रहेगा, तो स्वाद चखने के मौके बार-बार मिलेंगे, लेकिन यदि एक बार स्वास्थ्य बिगड़ गया, तो स्वाद ही नहीं बल्कि सभी अंगो का संतुलन बिगड़ जाता है। जो स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, वही भोजन हमें इस तरीके से संतुलित करके लेना होगा, कि जीभ को भी थोड़ा अच्छा लगे, और स्वास्थ्य को ज़रा भी नुकसान ना हो।
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