एकादशी महात्म्य

 (एकादशी महात्म्य का अर्थ है एकादशी व्रत की महिमा, इसका लाभ। इस आर्टिकल में हम एकादशी व्रत के शारीरिक-मानसिक रूप से होने वाले लाभ का वैज्ञानिक विश्लेषण करेंगे।

एकादशी महात्म्य


एकादशी महात्म्य

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत की महिमा का वर्णन कई धर्म ग्रंथों में किया गया है। एकादशी व्रत को जीवन को सुखी बनाने वाला और सुखद मृत्यु प्रदान करने वाला बताया गया है। इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

एकादशी क्या है?

एकादशी तिथि का नाम है, हिंदू कैलेंडर में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के 11वीं तिथि को एकादशी तिथि कहा जाता है। इसी दिन एकादशी का व्रत किया जाता है। इस प्रकार हर महीने एक शुक्ल पक्ष की और एक कृष्ण पक्ष की मिलाकर दो एकादशी तिथि आती है। वर्ष में 24 एकादशी आती है। 3 वर्षों में एक बार अधिक मास भी आता है, तो उस अधिक मास में पड़ने वाली दो एकादशियों को मिलाकर उस वर्ष 26 एकादशियां गिनी जाती हैं।


एकादशी व्रत की विधि क्या है?

एकादशी के दिन अन्न ग्रहण नहीं करने का संकल्प लिया जाता है। लेकिन मूंगफली, सिंघाड़ा तथा अन्य फलाहार लिया जा सकता है। इस दिन सात्विक भाव से रहकर ब्रम्हचर्य आदि नियमों का पालन करते हुए, क्रोध को अपने से दूर रख कर इस व्रत का निष्ठा से पालन किया जाता है। इन सभी नियमों का पालन करके पुण्य तो हमें मिलता ही है, साथ ही शारीरिक एवं मानसिक रूप से भी लाभ मिलता है।

एकादशी व्रत का वैज्ञानिक पक्ष

प्राचीन समय में हमारे ऋषि मुनि ही सबसे बड़े वैज्ञानिक थे, उनके अनुसार यदि सप्ताह में अथवा एक पखवाड़े में 1 दिन अनाज का सेवन ना किया जाए, तो इससे शरीर में जमा पुराने मल को बाहर निकलने का अवसर मिल जाता है। साथ ही फलाहार लेने से शरीर को नई ऊर्जा प्राप्त होती है। इसी उद्देश्य से हमारे ऋषि-मुनियों ने हर महीने एकादशी के दिन अन्न न ग्रहण करके उस दिन व्रत करने का विधान बनाया होगा। हर महीने पड़ने वाली एकादशी को किसी- न- किसी नए फल अथवा विधि से भी जोड़ दिया ताकि लोग मौसम के अनुसार उपलब्ध होने वाले फलों को अनदेखा न करें तथा मौसम के अनुसार अपनी दिनचर्या को बनाए रखें इसका अधिक से अधिक लोगों को लाभ देने के लिए ही इसे भगवत कथाओं से जोड़ा गया है। क्योंकि भगवत भक्ति से ही नया संकल्प लेने की क्षमता प्राप्त होती है।

विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्तजन हर एकादशी को सुखी जीवन एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए एकादशी का व्रत करते हैं।

वर्ष में पड़ने वाली दो श्रेष्ठ एकादशी तिथियां

वर्ष में 24 एकादशी या तथा जिस वर्ष अधिक मास होता है, उस वर्ष 26 एकादशियां पड़ती है, लेकिन इनमें भी दो श्रेष्ठ एकादशियां मानी जाती हैं। यदि कोई वर्षभर पड़ने वाली एकादशी का व्रत नहीं कर पाता है, तो उसे इन दोनों एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।

कार्तिक पूर्णिमा

कार्तिक मास को सभी मासों में श्रेष्ठ मास माना जाता है। इस महीने में पड़ने वाली एकादशी को बड़ी एकादशी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि जो अन्य एकादशी का व्रत नहीं कर सकता, उसे कम- से- कम इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। कहीं-कहीं तो पूरे परिवार के लोग ही इस व्रत को करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के भक्त श्रीहरि और माता तुलसी का विवाह भी रचाते हैं, इस दिन को भक्ति भाव के साथ धूमधाम से मनाते हैं।


निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। सभी एकादशियों में फलाहार का विधान है, लेकिन इस एकादशी को जल भी ग्रहण करना वर्जित है। पौराणिक कथा के अनुसार जो वर्ष भर की एकादशी किसी कारणवश नहीं कर सकता, विधि विधान के साथ इस एकादशी का व्रत करने से उसे सभी एकादशियों  के पुण्य का फल प्राप्त हो सकता है। लेकिन स्वास्थ्य लाभ तो हर महीने की एकादशी का व्रत करने से ही मिलेगा।

इस एकादशी के दिन प्यासे को जल पिलाने के लिए प्याऊ लगवाने तथा जूता छाता आदि दान करने का भी विधान है। इसका उद्देश्य केवल इतना ही है कि भूखे- प्यासे रहकर हम जरूरतमंद लोगों के बारे में सोचे कि कैसे अभाव के कारण लोग भूखे प्यासे रहते होंगे? तथा उन को दान देने का भी केवल इतना ही महत्व है कि हम उनकी कुछ मदद कर सके। अतः हमें जरूरतमंदों की आवश्यकता अनुसार अवश्य ही मदद करनी चाहिए। यही सच्चा दान है।

जो एकादशी का व्रत नहीं कर सकते, उन्हें क्या करना चाहिए?

एकादशी व्रत करने से हमें शारीरिक मानसिक लाभ के साथ-साथ असीम पुणे की भी प्राप्ति होती है। लेकिन अनेक कारणों से सभी लोग इस व्रत को नहीं कर सकते। जो लोग इस व्रत को नहीं करते हैं उनके लिए भी हमारे ऋषि-मुनियों ने कुछ विधान बनाया है।

  1. एकादशी के दिन मांसाहार, मदिरा तथा लहसुन प्याज आदि तामसी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
  2. वैसे तो इस दिन अन्न का त्याग कर देना चाहिए, लेकिन जो लोग सभी अन्नों का त्याग नहीं कर सकते, उन्हें चावल नहीं खाना चाहिए।
  3. इस इन ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए। झूठ बोलने से बचना चाहिए तथा क्रोध से दूर रहना चाहिए।
  4. यदि हम सामर्थ्य वान हैं, सक्षम है, तो हमें इस दिन जरूरतमंद लोगों की मदद ज़रूर करना चाहिए। सिर्फ कोटा पूरा करने के लिए ब्राम्हण को कुछ चीजें देना ही दान नहीं है, यदि आपने प्यास से मरते हुए किसी प्यासे को पानी भी पिला दिया, तो स्वर्ण दान करने से अधिक पुण्य आपको मिल सकता है!

इस प्रकार हम एकादशी व्रत के पीछे का उद्देश्य यदि सही अर्थों में समझें, तो हमारे शरीर को स्वास्थ्य प्रदान करना तथा हमें बुराइयों से बचाना ही है। इस प्रकार हम इस व्रत को करके वास्तव में सुखी और संपन्न जीवन प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि जो स्वस्थ है, वही संसार का सबसे धनी व्यक्ति है। जो बुराइयों से बचा हुआ है, वही सदाचारी है। वास्तव में यही एकादशी महात्म्य है।


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