श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ने से लाभ
(इस आर्टिकल में श्रीमद्भगवद्गीता जो हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है, संक्षिप्त में उसके सभी अध्याय का सार,उसके महत्व, उद्देश्य तथा उसे पढ़ने से जो लाभ मिलता है, उसके बारे में विस्तार से बताया गया है।)
श्रीमद्भगवद्गीता क्या है?
श्रीमद्भगवद्गीता सनातन धर्म के सभी ग्रंथों एवं पुराणों का निचोड़ है। जिसने भगवत गीता को पढ़ लिया और उसे समझ लिया, मानो उसने सभी पुराणों और ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त कर लिया। इसमें जीवन के अनेक रहस्यों का ज्ञान छिपा हुआ है।
श्रीमद्भगवद्गीता अर्जुन को दिया हुआ श्री कृष्ण का निष्काम भक्ति का वह संदेश है, जो सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी है। इसे पढ़ने से जीवन के लगभग सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है। यह धर्मग्रंथ सिर्फ हिंदुओं के लिए नहीं बल्कि सभी धर्म के लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
श्रीमद्भगवद्गीता के रचयिता कौन हैं?
श्रीमद भगवद्गीता स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकला हुआ एक अमृत है , जिन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है। महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन मोह में पड़कर युद्ध से भागने लगता हैै तब उसका मुंह दूर करनेे के लिए भगवान उसे अलग-अलग बातें तथा उदाहरण देकर समझाने की कोशिश करते हैं। वेे उन्हें सृष्टि का रहस्य समझातेे हैं, अपनेेेेेे विराट स्वरूप का दर्शन भी कराते हैं। धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य, जीवन-मृत्यु आदि सभी बातें समझाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का अर्जुन को इस तरह अलौकिक बातों का समझाना, महाभारत के भीष्मपर्व में 700 श्लोकों के अंतर्गत लिखा गया है। इसे महर्षि व्यास ने लिखा है। महर्षि व्यास द्वारा रचित यह 18 अध्याय जिनमें 700 श्लोक लिखे गए हैं, यही आगे चलकर श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में प्रचलित हुआ जिसे समस्त ज्ञान का सार कहा जाता है।
श्रीमद्भगवतगीता में कितने अध्याय हैं?
गीता में कुल 18 अध्याय हैं, जिनमें लगभग 700 श्लोकों का समावेश है। हर अध्याय अपने आप में ज्ञान की पराकाष्ठा है। नीचे उन सभी अध्यायों के नाम दिए गए हैं।
पहला अध्याय: अर्जुनविषादयोग
इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को निमित्त बनाकर समस्त विश्व को गीता के रूप में जो महान उपदेश दिया है, यह उसका प्रस्तावना रूप है। अर्जुन दोनों पक्षों के मध्य अपने रथ को ले जाकर दोनों पक्षों के कुटुंब यों की ओर देखता है तथा रिश्तेदारों के प्रति उसका मोह जाग उठता है।उसमें दोनों पक्ष के प्रमुख योद्धाओं के नाम गिनाने के बाद अर्जुन के विषाद का वर्णन है।
अर्जुनविषादयोग अध्याय में कुल 47 श्लोक हैं।
दूसरा अध्याय: सांख्ययोग
गीता के इस दूसरे अध्याय में दोनों सेनाओं के अपने कुटुम्बजनों और स्वजनों को देखकर शोक और मोह के कारण अर्जुन युद्ध करने से इनकार करने लगता है और अस्त्र-शस्त्र छोड़कर विषाद करने बैठ जाता है। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें किस प्रकार से फिर से युद्ध के लिए तैयार किया यह सब बताया गया है। अर्जुन की मोहजनित स्थिति का वर्णन किया गया है। अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से अपने परिवार मोह की बात करता है और भगवान उसे भांति भांति के ज्ञान का उदाहरण देकर समझाते हैं ।
सांख्ययोग अध्याय में 72 श्लोक हैं।
तीसरा अध्याय कर्मयोग
इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने कर्मयोग की महिमा बताते हुए उसका स्वरूप बताकर अर्जुन को कर्म करने को कहा है। समत्व बुद्धि रूप कर्मयोग की अपेक्षा सकाम कर्म का स्थान बहुत नीचा बताया है। समत्व बुद्धियुक्त पुरुष की प्रशंसा करके अर्जुन को कर्मयोग में जुड़ जाने के लिए कहा और एक श्लोक में बताया है कि बुद्धियुक्त ज्ञानी पुरुष को परम पद की प्राप्ति होती है। भगवान कई प्रकार के नियत कर्मों के आचरण की आवश्यकता बताते हैं। फिर भक्ति प्रधान कर्मियों की विधि से ममता शक्ति और कामनाओं का सर्वथा त्याग करके प्रभुप्रित्यर्थ कर्म करने की आज्ञा देते हैं।
कर्मयोग अध्याय में कुल 43 श्लोक हैं।
चौथा अध्याय: ज्ञानकर्मसंन्यासयोग
इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने कर्म के बारे में विस्तार से बताया है। कर्म को संन्यास से ऊंचा और महान बताया है तथा कर्म करने वालों की अनेक प्रकार से प्रशंसा की है। कर्म योग के द्वारा भक्त-भगवत स्वरूप का तत्वज्ञान अपने आप ही हो जाता है अतः उन्होंने कर्मयोग प्राप्त करने के लिए कहा है।
ज्ञानकर्मसंन्यासयोग अध्याय में कुल 29 श्लोक हैं।
पांचवा अध्याय: कर्मसन्यासयोग
इस अध्याय में अर्जुन ने भगवान से कर्म सन्यास तथा कर्म योग इन दोनों में से कौन-सा साधन कल्याणकारी है, यह जानने की प्रार्थना की है। भगवान ने दोनों साधनों को कल्याणकारी बताया है। उनके अनुसार फल में दोनों समान होते हुए भी साधन में सुगमता होने से कर्म संन्यास की अपेक्षा कर्मयोग श्रेष्ठ है। बाद में उन दोनों साधनों का स्वरूप, उनकी विधि और उनका फल अच्छी तरह समझाया है। इसके उपरांत दोनों के लिए अति उपयोगी और मुख्य उपाय समझाकर संक्षेप में ध्यान योग का भी वर्णन किया है।
कर्मसंन्यासयोगअध्याय में कुल 42 श्लोक हैं।
छठा अध्याय: आत्मसंयमयोग
इस अध्याय में भगवान ने ध्यानयोग का अंग सहित विस्तृत वर्णन किया है। भक्तियुक्त कर्मयोग में प्रवृत्त करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। भगवान ने आखिरी श्लोक में कहा है कि अंतरात्मा को मेरे में पिरो कर जो श्रद्धा और प्रीति पूर्वक मुझे भजता है वह सर्व प्रकार के योगियों से भी उत्तम योगी है लेकिन भगवान के स्वरुप, गुण और प्रभाव को जाने बिना, उन्हें भजना मुश्किल है।
आत्मसंयमयोग अध्याय में कुल 47 श्लोक हैं
सातवां अध्याय: ज्ञानविज्ञानयोग
इस अध्याय में भगवान ने भजन के प्रकार तथा अपने गुण, प्रभाव सहित सर्वस्वरूप का, विभिन्न प्रकार के भक्ति योग का वर्णन किया है। भगवान ने अर्जुन को सत्य स्वरूप का तत्व सुनने के लिए सावधान होकर उसे कहने की प्रतिज्ञा की है, फिर उसे जाने वालों की प्रशंसा करते हुए उस तत्व को विभिन्न तरह से समझा कर उसे जानने के कारणों को भी अच्छी तरह समझाया है। आखिर में ब्रह्म अध्यात्म, कर्म अधिभूत, अधिदैव और अभियज्ञ सहित भगवान के समग्र स्वरूप को जानने वाले भक्तों की महिमा का वर्णन किया है। ज्ञानी की तीन रूपों को बताया है।
ज्ञानविज्ञानयोग में 30 श्लोक हैं।
आठवां अध्याय: अक्षरब्रह्मयोग
इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अध्यात्म, कर्म, अधिभूत अधिदेव और अभियज्ञ इन 6 बातों का और मरण काल में भगवान को जानने की बात का रहस्य समझाया है। विज्ञान सहित ज्ञान का रहस्य बतलाया है।
अक्षरब्रह्मयोग में 28 श्लोक हैं।
नवा अध्याय: विद्याराजगुह्ययोग
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने विज्ञान सहित ज्ञान के रहस्य को और अधिक विस्तार से समझाया है। और यह बताया है कि जिन्हें इस ज्ञान में श्रद्धा नहीं रहती वे उन्हें प्राप्त ना हो कर मृत्यु रूप संसार चक्र में भ्रमण करते रहते हैं। ने मनुष्य शरीर को प्राप्त करके अपने भजन की महिमा बताई है कि यदि कोई उनके परायण होकर कोई भी कार्य करता है तो वह उन्हीं प्राप्त होगा।
विद्याराजगुह्ययोग में 34 श्लोक हैं।
दसवां अध्याय: विभूतियोग
इसमें कुल 42 श्लोक हैं। इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने सृष्टि के कण-कण में उन्हीं का वास है, इसके अनेक उदाहरण दिया है। जैसे," छंदों में गायत्री में ही हूं; ऋतु में वसंत मैं ही हूं; कवियों में शुक्राचार्य मैं ही हूं; नदियों में भागीरथी मैं हीं हूं आदि। भगवान श्री कृष्ण के अनुसार संपूर्ण जगत को अपनी योग शक्ति के अंश मात्र से वही धारण करके स्थित हैं, ऐसा उन्होंने साक्ष्य सहित बतलाया है।
विभूतियोग अध्याय में कुल 42 श्लोक हैं।
11वां अध्याय: विश्वरूपदर्शनयोग
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराया है। सृष्टि के हर देवी-देवता, सभी वसुओं, मरुद्गण एवं हर जीव का अपने ही भीतर दर्शन कराया है। मृत्यु के विकराल स्वरूप का दर्शन कराया है। जिसे देखकर अंत में अर्जुन भयभीत हो जाता है और भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप के दर्शन करने के लिए प्रार्थना करता है।
विश्वरूपदर्शनयोग अध्याय में कुल 55 श्लोक हैं।
12 वा अध्याय: भक्तियोग
इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से सगुण एवं निर्गुण भक्ति का वर्णन किया है तथा उसकी प्राप्ति के लिए उपाय भी सुझाया है। उन्होंने कहा है, "हे अर्जुन तू मुझ में ही मन को लगा और मुझ में ही बुद्धि को लगा इसके उपरांत तू मुझ में ही निवास करेगा, इसमें कुछ भी संशय नहीं है।" उन्होंने हर्ष, शोक, शुभ-अशुभ और हर कामना को त्याग कर भक्तिमय भाव से उन्हें भजने का उपदेश दिया है। सुख-दख में सम रहने की
प्रेरणा दी है।
भक्तियोग अध्याय में 20 श्लोक हैं।
13 वां अध्याय: क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग
इस अध्याय में भगवान ने निर्गुण-निराकार का तत्व तथा ज्ञान योग का विषय ठीक से समझाया है। इसमें परब्रह्म का वर्णन किया है तथा उन्हें जोगियों का जोगी और माया से अत्यंत परे कहा है। त्रिगुणमयी प्रकृति का वर्णन किया है। भगवान ने बताया है कि अनादि होने से और निर्गुण होने से अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होने पर भी वास्तव में ना तो कुछ करता है और ना लिप्त होता है और जो इस पुरुष को ज्ञान नेताओं द्वारा तत्व से जानते हैं वह महात्मा जन पर ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग अध्याय में कुल 34 श्लोक हैं।
14 वां अध्याय गुणत्रयविभागयोग
इस अध्याय में भगवान ने तीनों गुणों का स्वरूप, उनके कार्य उनका बंधन स्वरूप, और बंधे हुए मनुष्य की उत्तम, मध्यम आदि गतियों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है उन गुणों से रहित होकर भगवद्भाव को पाने का उपाय और फल बताया है। गुणातीत पुरुष के लक्षणों और आचरण का वर्णन किया है।
गुणत्रयविभागयोग में कुल 27 श्लोक हैं।
15 वां अध्याय: पुरुषोत्तमयोग
इस अध्याय में भगवान ने संसार से वैराग्य पैदा करने हेतु वृक्ष के रूप में संसार का वर्णन करके वैराग्य रूपी शस्त्र द्वारा उसे काट डालने को कहा है। इस अध्याय में भगवान ने आसुरी तथा राक्षसी प्रकृति धारण करने वाले लोगों के बारे में बताया है। उन्होंने कहा है कि जो ज्ञानी महात्मा उनके पुरुषोत्तम स्वरूप को जानते हैं वे सदा उनका ही भजन करते हैं तथा अज्ञानी मनुष्य उन्हें नहीं जानते।
पुरुषोत्तमयोग अध्याय में कुल 20 श्लोक हैं।
16 वां अध्याय: देवासुरसंपद्विभागयोग
इस अध्याय में भगवान ने अज्ञानी मनुष्य तथा ज्ञानी मनुष्य के लक्षण कौन-कौन से होते हैं यह बतलाया है। सात्विक पुरुष के स्वाभाविक लक्षणों का वर्णन किया है। इसमें भगवान ने निष्काम भाव से आचरण करने का महत्व समझाया है। सात्विक, राजसी तथा राक्षसी तीनों गुणधर्मों के लोगों का परिचय दिया है और उन्होंने काम, क्रोध और लोभ को मुख्य अवगुण बताते हुए उन्हें नर्क का द्वार बतलाया है।
देवासुरसंपद्विभागयोग अध्याय में कुल 24 श्लोक हैं।
17 वां अध्याय: श्रद्धात्रयविभागयोग
इस अध्याय में भगवान ने ज्ञानियोग का उपदेश देते हुए क्षत्रिय धर्म की दृष्टि से युद्ध को कर्तव्य बतलाया है। अर्जुन को युद्ध ना करने से होने वाली हानियों से परिचित कराया है।
श्रद्धात्रयविभागयोग अध्याय में कुल 28 श्लोक हैं।
18वां अध्याय: मोक्षसंन्यासयोग
इसमें भगवान ने सर्व अध्याय का सार बतलाया है। 17 अध्यायों में जो कुछ भी अर्जुन को भगवान ने समझाया, उसे संक्षिप्त में अर्जुन से पुनः कहकर युद्ध करने के लिए कहते हैं क्योंकि यही उसका धर्म है और धर्म का परित्याग किसी भी परिस्थिति में नहीं किया जाना चाहिए।
मोक्षसंन्यासयोग अध्याय में 78 श्लोक हैं।
भगवत गीता पढ़ने का उद्देश्य
भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो कुछ भी समझाया है, वह सामान्य मानव के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना अर्जुन के लिए। भगवत गीता में मनुष्य के लगभग सभी प्रश्नों का उत्तर है। इसे अध्ययन करने से मनुष्य की सभी शंकाएं दूर हो जाती हैं। अपने कर्तव्य का उचित ज्ञान होने के कारण वह अपने सभी कर्तव्यों को ठीक ठीक निभाने का प्रयत्न करता है।
पाखी के अन्य आडंबर ना करके यदि केवल भगवत गीता का एक अध्याय अथवा कुछ श्लोकों का ही अर्थ सहित पाठ किया जाए, तो यह भक्ति प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम उपाय है तथा इससे हमें अपने जीवन के लिए भी मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
भगवत गीता पढ़ने का उद्देश्य मानव को अपने धर्म के प्रति जागरूक करना है।
श्रीमद भगवत गीता पढ़ने से लाभ
श्रीमद्भगवद्गीता का नियमित पाठ करने से निष्काम भाव, सुख दुख में समान भाव रखने की बुद्धि, अपने कर्तव्य के प्रति दृढ़ रहने का ज्ञान और अन्य अनेक ऐसी बातें जो हमारे लिए मार्गदर्शक का कार्य करती हैं, हम सीख पाते हैं। इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता हमारे लिए जीवन के हर पथ पर एक गुरु का कार्य करती है।
जहां श्रीमद्भगवद्गीता का नियमित पाठ होता है, भूत-प्रेत आदि दूर ही रहते हैं। पॉजिटिव एनर्जी बनी रहती है। इस प्रकार श्रीमद भगवत गीता पढ़ने से हमें केवल लाभ ही लाभ मिलता है।
श्रीमद भगवत गीता पढ़ने से मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। जिस मोक्ष को पाने के लिए ऋषि मुनि जप, तप, योग आदि करते हैं, उसे गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए केवल श्रीमदभगवतगीता का पाठ करके ही पाया जा सकता है।
जो लोग पितरों को महंगी वस्तुएं देकर तर्पण नहीं कर सकते, यदि केवल वे उनके परायण श्रीमदभगवतगीता का पाठ करते हैं तो उनका कल्याण हो जाता है।
आज के युग में भगवत गीता का महत्व
आज मानव मानव का शत्रु बनता जा रहा है, आलस्य और प्रमाद के वशीभूत होकर जो मनुष्य अपने कर्तव्य से भागता फिरता है, उसे एक बार भगवत गीता का अर्थ सहित चिंतन करते हुए पाठ जरूर करना चाहिए। यदि भगवत गीता का पाठ विद्यार्थी जीवन और मानव जीवन में नियमित रूप से किया जाए, तो बहुत से अपराध करने से बचा जा सकता है। धर्म अधर्म की उचित व्याख्या जानने के बाद (जो कि भगवत गीता में भली भांति समझाया गया है।) हर मानव अपने कर्तव्य को सही रूप में निभा पाएगा और इससे सिर्फ मानव का ही नहीं पूरे देश का कल्याण निश्चित ही संभव हो जाएगा।
निष्कर्ष
श्रीमद्भगवद्गगीता पढ़ने से जो लाभ मिलते हैं, उन्हें देखते हुए हमें अपने परिवार,मित्र तथा सभी प्रिय जनों को श्रीमद भगवत गीता पढ़ने के लिए प्रेरणा देनी चाहिए और खुद भी इसका लाभ उठाना चाहिए। क्योंकि श्रीमद भगवत गीता पढ़ने से लाभ ही लाभ मिलता है। आज तक जो भी श्रीमद्भगवद्गीता के शरण में गया है, उसने बहुत कुछ पाया है।
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