प्राइवेट शिक्षक की ज़िंदगी
(इस कविता में प्राइवेट शिक्षक की ज़िंदगी के कुछ समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है)
कितने दिन पढ़ने के बाद ,
अच्छी डिग्रियां पाने के बाद,
बड़े शौक से कोई शिक्षक बनता है।
"सरकारी ना मिली तो क्या हुआ,
यहां भी तो पढ़ाना ही है।"
यह सोचकर ही कोई प्राइवेट शिक्षक बनता है।
बच्चों के लिए आदर्श शिक्षक का व्यक्तित्व होता है।
इसलिए शिक्षक को भी बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है।
नहीं बता सकता वह, हर किसी को अपनी मजबूरी।
कौन जाने, कितनी इच्छाएं रह जाती है उसकी अधूरी!
मजदूर की मजदूरी से, कम मेहनत का यह काम नहीं।
केवल कपड़ों और भाषा का अंतर है, जीवन में आराम नहीं।
रूल रेगुलेशन से,बड़े घर के बच्चों को शिक्षा देना आसान नहीं।
लगता होगा, लेकिन शिक्षक का जीवन इतना आसान नहीं।
एक सरकारी शिक्षक तो बड़ी शान से अपना जीवन बिताता है।
समय पर नहीं जाता,काम नहीं करता फिर भी वेतन पाता है।
पर प्राइवेट शिक्षक का वेतन, हर गलती के लिए कट जाता है।
यह वेतन भी मिलते ही, खर्चे में प्रसाद की तरह बंट जाता है।
बच्चों की गलती पर भी, एक शिक्षक ही डांट खाता है।
भले ही नंबर बच्चों के कम आए, वही फेल कहलाता है।
कभी अभिभावक को, तो कभी स्कूल प्रशासन को समझाता है।
करके हर समस्या से समझौता, श्रेष्ठ शिक्षक बन जाता है।
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