मोबाइल(हिंदी कविता)
मोबाइल(हिंदी कविता)
आज के युग में मोबाइल है सबके घर का गहना
मानो इसके बिन, मुश्किल है ज़िंदा रहना।
छोटा हो या बड़ा सब इसका मोहताज होता है
महंगा हो या सस्ता सबकी जेब में रहता है।
पहले जब मोबाइल न था,
डांक की चिट्टी का इंतजार रहता था।
कबूतर भी मैसेंजर का काम करता था।
डीजे बजा कर ही कोई डांस करता था,
पर अपनों से अपनों का तार जुड़ा रहता था।
अब मोबाइल के आने से,
माना हर संदेश मिनटों में पहुंच जाता है
पर अपनों के लिए वक्त कहां निकल पाता है!
घर में रहकर भी लोग मोबाइल में ऐसे खोए रहते हैं,
जैसे साधु, संसार से वैराग्य बनाए रखते हैं।
कानों में माइक लगाकर लोग बड़बड़ाते हैं, ऐसे
पागलखाने में किसी को करंट दिया जा रहा हो, जैसे।
माना, इससे लोगों को बड़ी सुविधा है,
पर क्या अच्छा है! क्या बुरा! इसकी बड़ी दुविधा है।
बच्चों के लिए यह वरदान के साथ अभिशाप भी हैं,
इसीसे ऑनलाइन कक्षा का उनको मिला साथ भी है।
माना इसके प्रयोग से उनके संस्कारों में कमी आई है,
पर उनके ह्रदय मंडल पर इसी की छवि छाई है।
माना इस मोबाइल में बहुत कुछ दिया
पर बहुतों को बेरोजगार भी किया।
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