कोविड-19 का भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर


कोविड-19 और लॉक डाउन का भारत एवं उसके नागरिकों पर प्रभाव




कोविड-19 या कोरोनावायरस भारत में दिसंबर 2019 में आ चुका था, इसका उद्गम स्थान क्या था और भारत में यह कैसे पहुंचा यह अभी तक एक विवाद का विषय बना हुआ है। इस वायरस ने हम सभी को घरों में कैद कर दिया और बहुत लोगों की तो रोजी-रोटी ही छीन ली। इस वायरस की चपेट में ना आ जाए इस बात से डर कर बहुत से लोगों ने अनेक वस्तुओं का अविष्कार भी किया। नई -नई दवाओं का शोध भी हुआ और नई योजनाओं का उद्गम भी हुआ।इन सब के बावजूद हमारी अर्थव्यवस्था डामाडोल हो गई।

सबसे पहले दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में कोविड-19 के मरीज पाए गए । मार्च 2020 में कोरोनावायरस का प्रसार अभी प्रारंभ ही हुआ था तभी हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने पूरे देश में लॉकडाउन घोषित कर दिया । 23 मार्च को रात्रि को उनका संदेश आया। उन्होंने देशवासियों से सहयोग करने का आवाहन किया और 24 मार्च से 21 दिन के लिए पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया गया।

लॉकडाउन भारत में पहली बार लगा था, इसलिए किसी को भी इसका किसी प्रकार का कोई अनुभव नहीं था और ना ही इसे पूर्व नियोजित ढंग से लागू किया गया। जो जहां था, जिस हाल में था वहीं रह गया और आवागमन की सभी साधन बंद कर दिए गए।

भारत एक विशाल देश है इसमें कुल 28 राज्य एवं 9 केंद्र शासित राज्य हैं, इन सभी राज्यों में एक साथ एक ही नीति को बिना किसी नियोजन के लागू करना यह एक अव्यावहारिक प्रयोग था। जब भी कोई नई नीति या नया प्रयोग किया जाता है तो उसके लाभ और हानियां भी कुछ समय बाद सामने आ जाती हैं। इस लॉक डाउन के भी अच्छे बुरे परिणाम इसके लागू होने के तुरंत बाद ही दिखने लगे।

२३मार्च की शाम को प्रधानमंत्री द्वारा जब 21 दिनों के लॉक डाउन की घोषणा की गई तभी अधिकांश लोग बाजार में चल दिए, क्योंकि हमारा भारत देश एक विकासशील देश है, इसके हर नागरिक इतने सक्षम नहीं हैं, कि अपने घरों में कई दिनों का राशन रख सकें। अतः अधिकांश लोगों ने उस दिन शाम को अपने घरों में कुछ दिनों का राशन संरक्षित किया, ताकि आगे चलकर कोई परेशानी ना हो।
सरकार की तरफ से भूखे लोगों को भोजन कराने की बहुत सारी योजनाएं भी शुरू की गई। जरूरतमंदों को राशन की सामग्री, तैयार भोजन शुद्ध जल आदि की आपूर्ति कराई गई किंतु बहुत से ऐसे लोग थे, जो या तो इस सामग्री तक नहीं पहुंच पाए या यह सामग्री उन तक नहीं पहुंच पाई।

सरकार की तरफ से सख्त निर्देश दिए गए थे, कि कोई भी दुकानदार किसी प्रकार की कालाबाजारी ना करे, लेकिन अधिक कमाने की चाह किसे नहीं होती, बहुत से दुकानदारों ने इस लॉक डाउन का पूरी तरह फायदा उठाया। अपनी दुकान और  गोदामों को सामग्री से भर लिया और, "बाहर से सामान आ ही नहीं पा रहा है,"यह कहकर उस सामान को दुगने और तिगुने दाम पर बेचा।

आवागमन के साधन बंद होने के कारण लोगों को मुश्किल तो हुई ही, वाहन चालकों द्वारा इस परिस्थिति का लाभ भी उठाया गया और उन्हें दोगुना किराया वसूलने का एक मौका भी मिल गया; हालांकि, बहुत सारे वाहन चालकों के चालान भी काटे गए और मुआवजे के रूप में उन्हें दुगनी रकम भी चुकानी पड़ी। इन सबके बावजूद जो साधारण लोग थे, उन्हें तो कष्ट हुआ ही इसका असर सब्जियों फलों एवं अन्य उत्पादों पर भी पड़ा जिसके कारण उनकी कीमतों में इज़फा हो गया।

रेलगाड़ी एवं ट्रकों के आवागमन में रोक के कारण उन पर  आने वाला सामान, दैनिक उपयोग की वस्तुएं आदि निजी वाहनों से चोरी- चुपके लाए जाने के कारण उनके मूल्यों में भी वृद्धि हुई।

सब्जी और फलों की दुकानें जो छोटे- छोटे लोग चलाते थे, उन्हें अचानक से बंद कर देने से वे लोग बेरोजगार तो हो ही गए, फल और सब्जियों का नुकसान भी हुआ, क्योंकि यह चीजें जल्दी खराब हो जाती हैं।  क्योंकि, सब्जी और फल दैनिक जीवन की आवश्यक वस्तुएं हैं उन्हें बेचने की कुछ लोगों को छूट भी दी गई, लेकिन वे लोग केवल सीमित समय और सीमित जगह पर ही अपने सब्जियों और फलों की बिक्री कर सकते थे।

स्कूल और कॉलेज बंद कर देने के कारण विद्यार्थी और शिक्षकों दोनों पर ही प्रभाव पड़ा। क्योंकि हमारे देश में प्राइवेट स्कूलों की संख्या ज़्यादा है और उनमें पढ़ने वाले बच्चे भी। सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की सैलरी उन्हे अबाधित रूप से मिलती रही, लेकिन प्राइवेट शिक्षक आंशिक रूप से बेरोजगार हो गए।
कुछ समय पश्चात ऑनलाइन शिक्षा का प्रावधान चलाया गया लेकिन इसमें केवल गिने-चुने शिक्षकों को ही रखा गया।

भारत एक विकासशील देश है, इसलिए अभी यहां बहुत- सी ऐसी जगह है, जहां विकास की आवश्यकता है। ऑनलाइन शिक्षा एक विश्वास के साथ शुरू तो की गई, लेकिन इसका लाभ हर उस विद्यार्थी को नहीं मिला, जिसे शिक्षा का अधिकार है।
कहीं बच्चों के पास मोबाइल नहीं, तो कहीं नेटवर्क नहीं, ऐसी स्थिति में हर बच्चे के पास शिक्षा नहीं पहुंच पाई।

प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों पर ऑनलाइन शिक्षा का दोहरा बुरा प्रभाव देखने को मिलता है। एक तरफ तो  बिना फीस दिए वे स्कूल में ऑनलाइन भी पढ़ाई नहीं कर पाए और दूसरी तरफ जो बच्चे ऑनलाइन पढ़ भी रहे हैं, मोबाइल उनके पास ना रहने, इंटरनेट कनेक्शन की प्रॉब्लम आदि कारणों से पढ़ाई में उतना ध्यान नहीं दे पाए, जितना पहले स्कूलों में पढ़ा करते थे। पढ़ाई के साथ जो अन्य एक्टिविटीज कराई जाती थी उनमें भी वे उतनी अच्छी तरह पारंगत नहीं हो पाए, जितना स्कूल में रहा करते थे।
कोरोनावायरस से बच्चों को बचाते- बचाते उनका भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। हालांकि, बच्चे तो बिना मास्क और बिना किसी सुरक्षा के बाहर घूमते नजर आते हैं, तो क्या केवल स्कूल जाने से ही वे संक्रमित हो जाते?
जो भी हो इतना तो तय है कि भारत जो एक विकासशील देश है, उसमें सभी बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा से जोड़ना यह एक अनोखा प्रयोग है, जो सभी बच्चों पर सफल नहीं हुआ। यूं कहे तो केवल 30 से 40 परसेंट बच्चे ही इन ऑनलाइन क्लासेज का लाभ उठा पा रहे हैं।

कोविड-19 का भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

जब कोरोनावायरस भारत में आया सबके लिए नया था। क्या करना है, क्या नहीं करना है , इस बात से सभी अनजान थे। अन्य देशों से सबक लेकर उन्हीं के निर्देशों का पालन करना उचित जान पड़ता था। अतः बार-बार हाथ धोना, 2 गज की दूरी, लॉकडउन, क्वॉरेंटाइन, इन सभी बातों का पालन हमें अपनी सुरक्षा के लिए करना था। इन बातों का ध्यान रखने में हमें आर्थिक रूप से कमजोर होना पड़ा।
कोरोनावायरस से बचने के लिए लॉकडाउन में रेलगाड़ी, बाजार, व्यवसाय, स्कूल आदि बंद होने के कारण हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर दुगनी मार पड़ी। एक तरफ तो यह सभी काम बंद होने से आर्थिक उन्नति रुक गई, दूसरी तरफ इन सभी क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के सामने अपना पेट भरने की और जीवन चलाने की मुश्किल  आन पड़ी।
दूरी रखनी थी, स्वच्छता के नियमों का पालन करना था इसलिए, वे लोग जो अपने घरों में नौकर- चाकर रखा करते थे, उन्होंने उन सभी को छुट्टी दे दी। अब उन गरीबों के सामने भी बेरोजगारी और जीवन यापन की समस्या आन पड़ी। सरकार ने जो मदद की, वह सरकार के लिए तो बहुत बड़ी बात थी,लेकिन उन सभी लोगों के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरा के समान थी।

कोरोनावायरस के कारण देश में जितने लोगों की मौतें हुई, उससे भी ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए, व्यवसाय ठप हो गए और इन सभी का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा।
जीडीपी का ग्रोथ माइनस में चला गया यह भी कोरोनावायरस की एक उपलब्धि थी।
दवा विक्रेताओं, सरकारी कर्मचारियों और अन्य धनिक लोगों के लिए इस प्राकृतिक आपदा ने भी सफलता की राह बनाई, लेकिन यदि पूरे भारत की बात करें तो केवल नकारात्मक प्रभाव ही गिना जा सकता है।
अब जबकि, किस वायरस से बचाव के लिए कुछ vaccines बन चुकी है, आशा है कि धीरे-धीरे सब कुछ पहले जैसा हो जाए। देश को जो हानि हुई है, उसकी रिकवरी हो जाए।

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