मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
मन के हारे हार है मन के जीते जीत
मन हमारे शरीर का अदृश्य लेकिन सबसे महत्वपूर्ण इंद्रिय है।हम जब भी कोई काम सच्चे मन से करते हैं, उसका परिणाम बहुत अच्छा होता है। जब भी सच्चे मन से किसी को दुआ देते हैं, वह दुआ जरूर काम आती है। कोई व्यक्ति शरीर से चाहे कितना भी स्वस्थ हो, यदि उसका मन बीमार या उदास हो तो वह कोई भी काम इतनी अच्छी तरह नहीं कर सकता जैसे एक स्वस्थ मन वाला व्यक्ति कर सकता है।
भगवान श्री कृष्ण ने भी मन के बारे में श्रीमद्भगवद्गीता में विस्तार से बताया है और उनका सबसे विख्यात श्लोक हमें अपने मन का किस प्रकार सही उपयोग करना चाहिए यह बताता है-
"मन एव मनुष्याणां कारणम् बंधमोक्षयो:।
बंधाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्।।
जिसका अर्थ है मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है। क्योंकि अगर मन काम, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ, पाप आदि ऐसे विषयों में आसक्त है तो मनुष्य के लिए उसका मन बंधन का कारण बन जाता है। परंतु अगर मन इन सभी विकारों से पूर्णतया दूर हो, तो यही मन हमारे मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होता है।
अच्छे से अच्छे मनुष्य के अंदर यदि काम जैसा विकार जाग जाए, तो उसके चरित्र को नष्ट कर देता है।
अच्छे- भले इंसान क्रोध के वशीभूत होकर मारपीट, हत्या आदि करके जेल में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं।
जब ईर्ष्या जैसा विकार, जिसमें एक मनुष्य दूसरे मनुष्य की खुशी को देखकर जलने लगता है, और चाहता है, कि कैसे भी वह मनुष्य दुखी हो जाए। ऐसा विकार जब हमारे अंदर आ जाता है तो अच्छे से अच्छे रिश्तो को बिगाड़ देता है। ऐसे विकार में पड़कर मनुष्य चोरी, डकैती तथा दूसरों की हत्या तक कर बैठता है।
ये सभी विकार हमारे पुण्य को नष्ट कर देते हैं एवं पाप को बढ़ा देते हैं, जिससे मनुष्य का भविष्य अंधकारमय हो जाता है। क्षण भर के लिए मन में आने वाले ये विकार हमारे सुख,चैन और पारिवारिक शांति को बर्बाद कर देते हैं, इसलिए अपने मन को इन सभी विकारों से दूर रखना चाहिए।
मन हमारा मालिक है या हम उसके
मालिक बन कर रहना, किसे नहीं अच्छा लगता लेकिन वह मनुष्य जो अपने मन की ही हर बात मानता है, वह लाखों संपत्ति का मालिक होते हुए भी अपने मन का गुलाम होता है। चाहे करोड़ों नौकर हमारे आगे -पीछे घूमते हो, दुनिया के अच्छे- अच्छे लोग हमारे सामने सिर झुकाते हो, किंतु यदि हमारा अपना मन ही हमारी बात ना मानता हो, उल्टा हमसे अपनी बातें मनवाता हो, तो वास्तव में हम अपने मन के गुलाम माने जाते हैं। अब यह फैसला तो हमें करना है, कि मन को अपना गुलाम बना कर रखना है, या उसका गुलाम बनना है।
जब मानव ने अपने मन में ठान लिया तो वह चांद पर भी पहुंच गया और अन्य ग्रहों की सैर भी कर ली। पाताल के भीतर पहुंचकर अपने जरूरत की धातुएं और इंधन को भी प्राप्त कर लिया। यदि हम अपने पूरे मन से दृढ़ संकल्प कर लें, तो धरती की ऐसी कौन सी चीज है, जो हम प्राप्त नहीं कर सकते?
अपने मन को अपना मित्र बना कर उसे अपनी मंजिल बताइए और यदि आपका मन आपका मित्र नहीं बन सकता, तो उसे डांट- फटकार कर बच्चे की तरह समझाइए। यह सच है, कि यह करना बहुत मुश्किल है, लेकिन असंभव तो नहीं है।
हमारा मन हमारी पांच ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से सैर करता है।
जब घर में बैठे-बैठे ही हमारी इच्छा होती है और हम मन में सोचते हैं, स्वादिष्ट व्यंजनों के बारे में, तो व्यंजन हमारी आंखों के सामने हमें दिखने लगते हैं और मन ही मन हम उनका स्वाद चखने लगते हैं।
जब हम खुली आंखों से सपने देखते हैं तो अमेरिका से लेकर चांद तक की यात्रा बैठे-बैठे ही कर लेते हैं, जिसका कोई भी किराया वहन नहीं करना होता है।
मन के कान इतने तेज होते हैं, कि जो कोई नहीं सुन सकता, वह संगीत भी वे सुन सकते हैं, किसी अपशकुन की आहट भी उन्हें मिल जाती है।
मन के नाक अदृश्य खुशबू को भी सूंघ लेते हैं और यदि हम अच्छे- से -अच्छे खुशबूदार जगह पर भी बैठे हों और हमारा मन कहीं और हो, तो हमें उस खुशबू का पता भी नहीं चलता।
मन अपने स्पर्श से घृणा को प्रेम में और प्रेम को घृणा में बदल सकता है।
यदि हमारा मन हमारे कब्जे में है, तो वह परिस्थिति के अनुसार इन सभी इंद्रियों को समझा-बुझाकर रखता है लेकिन जब यही मन इन इंद्रियों को खुली छूट दे देता है तो स्वाद, सुगंध, स्पर्श, दृश्य और श्रवण के चक्कर में हमारी इंद्रियां हमसे गलत से गलत कार्य भी करवा देती हैं। जैसे यदि हमारे मन को ऐश, आराम से भरी जिंदगी अच्छी लगती है और उस पर भी आलस करना अच्छा लगता है तो यही मन हमें दूसरे का धन लूटने की सलाह भी दे देता है और यदि हम अपने मन की बात मान लेते हैं तो कभी-कभी लोगों से मार भी खाते हैं और कभी कुछ सालों की जेल भी काटनी पड़ती है।
मन की बात मानने में विवेक का प्रयोग
मन हमें हमेशा गलत सलाह ही नहीं देता, कभी-कभी वह हमें अच्छे कार्यों के लिए भी प्रेरित करता है। जैसे हम कभी किसी के दुख को देखते हैं, तो हमारा मन कहता है कि हमें उसकी मदद जरूर करनी चाहिए। ऐसे ही जब हम निराश हो जाते हैैं, कोई राह नहीं सूझता तो हमारा मन हमें सांत्वना भी देता है और भविष्य के लिए पथ भी प्रदर्शित करता है। हमें अपने मन के द्वारा दी गई सलाह को एक आलोचक की तरह देखना चाहिए और अपने विवेक का प्रयोग करते हुए क्या सही है, और क्या गलत है, यह निर्णय लेकर प्रयोग में लाना चाहिए।
मन की गुलामी नहीं
कोई भी इंसान अपने जीवन में तभी सफलता को प्राप्त करता है जब वह ठान लेता है कि उसे अपने मन की गुलामी नहीं करनी है, बल्कि अपने मन को अपनी ताकत बना कर दृढ़ निश्चय की शक्ति के रूप में उसका इस्तेमाल करना है। जब तक कोई अपने मन की उन बातों को मानता है, जो उसे पतन की राह पर ले जाए तब तक सिर्फ और सिर्फ उसका विनाश ही होता है। इसलिए हमें आज ही यह निश्चय कर लेना है कि अब हम अपने मन को अपने अनुसार चलाएंगे उसका गुलाम बनकर नहीं रहेंगे।
सच्चे मन से काम करने का परिणाम
जब भी हम कोई भी काम अपनी लगन मेहनत के साथ-साथ सच्चे मन से करते हैं तो उसका परिणाम हमारे भाग्य को बदलने वाला और भविष्य के लिए सुखद ही होता है। लेकिन इस सुखद परिणाम को पाने के लिए हमें अपने चंचल मन को अलग-अलग तरीकों से समझाना होगा और यह दुष्ट हो गया है, तो इसे फटकार भी लगाना होगा लेकिन सबसे अच्छा तो यही है कि हम इसे अपना मित्र बना लें। इसके लिए हमें अपने दिनचर्या और जीवनशैली को बदलना होगा। जैसे अन्य बीमारियों को ठीक करने के लिए हम उस बीमारी से संबंधित परहेज करते हैं, जरूरत पड़ने पर उसकी दवा भी खाते हैं। उसी तरह अपने मन की चंचलता को दूर करने के लिए भी हमें कुछ आवश्यक उपाय जरूर करने चाहिए।
अपने भोजन में सुधार
हमारा भोजन हमारे शरीर का पोषण करता है, भोजन करने से ही हमें ऊर्जा मिलती है, एक छोटे से शिशु का शरीर भोजन पाकर ही वृद्धि करता है। यह भोजन यदि हम सही तरीके से लें तो हमारे शरीर की रोगों से रक्षा होती है और यही भोजन यदि हम गलत तरीके से लें तो रोगों का कारण भी बन जाता है। हमारे भोजन का बुरा और अच्छा प्रभाव हमारे मन पर भी पड़ता है क्योंकि मन भी तो हमारे शरीर का ही हिस्सा है।
मन की बात करके मन को जीत लिया आपने।
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