जैविक खाद एवं कीटनाशक

 (इस आर्टिकल में जैविक खाद एवं कीटनाशकों के उपयोग के तरीके, लाभ एवं सावधानियों की जानकारी दी गई है।)

आधुनिक समय में जैविक खाद का महत्त्व

आज का युग वैज्ञानिक शोधों से भरपूर एक ऐसा आधुनिक युग है, जिसमें सुविधाओं के साथ-साथ उन सुविधाओं के कुछ  दुष्परिणाम भी हमारे जीवन का हिस्सा बनते जा रहे हैं।
जब से मानव ने कृषि करना सीखा, नए-नए अनुसंधान करता गया। कभी मानव ने झूम कृषि की, तो कभी बागवानी के नए-नए फसलों पर शोध किया। अपने इन्हीं शोधों का कृषि क्षेत्र में नया - नया प्रयोग करके आज मानव ने इतना विकास कर लिया है कि साल में वह जितनी चाहे, फसलें उगा सकता है। यदि वर्षा ना हुई, तो बोरवेल का प्रयोग करके जमीन से पानी निकाल सकता है। विभिन्न प्रकार के कीटों से अपनी फसल की रक्षा कर सकता है, इतना ही नहीं वह अधिक से अधिक उपज भी ले सकता है। लेकिन इस अधिक उपज को पाने के लिए आज हम जिन रासायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक खादों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग कर रहे हैं, उनके दुष्प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता।

रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के दुष्प्रभाव

हरित क्रांति से पहले देश में अन्न का उत्पादन बहुत कम हो पाता था जिससे देश में अन्य की कमी थी। हरित क्रांति के प्रभाव स्वरूप विदेशों से उन्नत बीजों, रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों आदि का निर्यात किया गया एवं उनके प्रयोग से कृषि के क्षेत्र में आशावादी लाभ हुए लेकिन इनके कुछ दुष्प्रभाव भी हुए हैं, और हो भी रहे हैं, आइए उन्हें जाने।

मानव स्वास्थ्य पर रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का प्रभाव

रासायनिक खादों का प्रयोग फसलों की वृद्धि के लिए तथा अधिक- से- अधिक उपज प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
इन रासायनिक खादों का बहुत ही सावधानीपूर्वक प्रयोग किया जाता है, अन्यथा यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। अधिकांश रासायनिक खाद महंगे होते हैं, हर किसान इनका लाभ नहीं ले पाता।
स्वास्थ्य की दृष्टि से, रासायनिक खादों वाले खाद्य पदार्थ, अनेक बीमारियों के दाता होते हैं। आज नई- नई बीमारियां उभर कर आ रही हैं, ये अधिकांशतः इनके उपयोग का ही परिणाम है। क्योंकि जिस खाद्यान्न में जो गुण होते हैं, वे भोजन करने के बाद हमारे शरीर में भी आ जाते हैं, इसी कारण मानव अनेक बीमारियों का शिकार होते जा रहा है।
सब्जियों को जल्दी- से- जल्दी बड़ा करने के लिए आज जो नए-नए तरीके आजमाए जा रहे हैं, इससे उनके स्वाद में तो कमी आ ही रही है, उनका प्रयोग करने से अपच, गैस आदि की समस्या तथा इन समस्याओं के कारण पेट में पथरी, रसौली आदि की समस्या बढ़ती जा रही है।
इनका प्रयोग करते समय यदि सावधानी न बरती जाए, तो यह रासायनिक खाद श्वसन संस्थान के अनेक रोग उत्पन्न करते हैं। इनके संपर्क में आने से आंखों को भी हानि पहुंचती है तथा यदि त्वचा से इनका सीधा संपर्क हो जाए तो त्वचा के भी अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों से उगाई जाने वाली वनस्पतियों का सेवन करने से दुधारू पशुओं के दूध में भी इन रसायनों की कुछ मात्रा घुल जाती है, उस दूध को यदि हम पीते हैं, तो वह हमारे लिए उतना लाभदाई नहीं होता, जितना होना चाहिए।

पर्यावरण पर रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का प्रभाव

रासायनिक खादों का प्रयोग करने के कारण भूमिगत जल प्रभावित हो रहा है। भूमिगत जल जो कि पेयजल का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है, रासायनिक खादों के कारण पीने योग्य नहीं रहा। क्योंकि मिट्टी में से होते हुए यह रासायनिक खाद मिट्टी के भीतर स्थित जल में घुलता जा रहा है।
रासायनिक खादों के प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरा क्षमता कम होती जा रही है।
रसायनिक कीटनाशकों का छिड़काव करते समय इनके अधिकांश रसायन वायु में घुल जाते हैं, इसके कारण वायु प्रदूषित होती जा रही है।
संक्षेप में कहें, तो इनके प्रयोग से जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण के साथ ही खाद्यान्न भी प्रदूषित होते जा रहे हैं।

जैविक खाद

जैविक खाद का अर्थ है गाय, भैंस आदि पालतू जानवरों, वनस्पतियों आदि से मिलकर बनने वाला खाद, जिनका प्रयोग हम अपने फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए रसायनिक खादों के विकल्प के रूप में कर सकते हैं।

जैविक खाद एवं कीटनाशकों के लाभ

जैविक खाद से मिट्टी को आवश्यक सभी पोषक तत्व प्राप्त होते हैं, जो खाद्यान्नों के लिए आवश्यक होते हैं। इतना ही नहीं इनसे पैदावार भी रासायनिक खाद की अपेक्षा अधिक होती है। इसका सबसे बड़ा लाभ तो यह है, कि जैविक खाद के प्रयोग से भूमिगत जल, मिट्टी और वायु को किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं होती। क्योंकि यह गाय भैंस आदि के गोबर एवं मूत्र से ही बनते हैं तो इससे पशुपालन को भी बढ़ावा मिलता है।
पशु का भोजन भी  खाद्यान्न और वनस्पतियां ही हैं, जैविक खादों का प्रयोग करके यदि यह उगाई जाती हैं, तो इन्हें खाकर पशुओं के दूध में भी वृद्धि होती है। साथ ही यह दूध हमारे लिए भी अत्यंत लाभकारी होता है।

जैविक खाद के अनेक स्रोत

वर्मी कंपोस्ट, जो कि गोबर और मिट्टी  में केचुओं के द्वारा बनती है, इसका प्रयोग भी हम जैविक खाद के रूप में कर सकते हैं । वर्मी कंपोस्ट के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करें-👈

कंपोस्ट खाद, जिसे विभिन्न प्रकार के कूड़े -करकट (जिनमें  प्लास्टिक ना हो) तथा सब्जियों के डंठल आदि को मिट्टी में सड़ाकर बनाया जाता है, इसका प्रयोग भी हम जैविक खाद के रूप में कर सकते हैं।
गाय, भैंसों का गोबर मिट्टी में अधिक दिन तक दबा कर रखने से वह भी एक जैविक खाद बन जाता है, जो पौधों के लिए लाभकारी होता है।

इसके अलावा एक विशेष प्रकार की खाद जो पांच चीजों से मिलकर बनती है-
गोबर, गाय या भैंस का मूत्र, पुराना गुड़ जो खराब हो गया हो, दाल का आटा तथा पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे की अथवा आसपास की मिट्टी क्योंकि इनमें जीवाणुओं की मात्रा पर्याप्त होती है, यह सभी आपस में मिलकर एक उत्तम खाद का निर्माण करते हैं। 
यदि गाय का गोबर 10 किलो है, तो मूत्र भी उतना ही होना चाहिए। पुराना गुड़, दाल का आटा, बरगद अथवा पीपल के पास की मिट्टी प्रत्येक सामग्री की मात्रा 250- 250 ग्राम के लगभग होनी चाहिए। 1 एकड़ खेत के लिए इतनी खाद पर्याप्त है।
इन सभी चीजों को एक प्लास्टिक के ड्रम में घोलकर छाया में 10 से 15 दिनों के लिए रख देना है और इस बीच समय-समय पर उसे चलाते रहना है।
इस प्रकार से तैयार खाद को फसल बोने से पहले मिट्टी में अच्छी तरह पानी में घोलकर प्रवाहित कर देना है जिससे यह सब जगह फैल जाए। उसके पश्चात हर 21 दिन पर इसे पानी में घोलकर पानी देते समय ही मिट्टी में पहुंचाते रहना है, पौधों पर इस का छिड़काव नहीं करना है।
इस खाद को प्रयोग करने से फसलों में दुगुनी पैदावार लाई जा सकती है।

जैविक कीटनाशकों के स्रोत

 कीटनाशकों का प्रयोग हम अपनी फसलों को किटकों से बचाने के लिए करते हैं, लेकिन यह कीटनाशक जैविक भी हो सकते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए किसी भी प्रकार से नुकसानदेह नहीं है।
यदि 10 किलो गोमूत्र में हरी मिर्च तथा लहसुन 50 से 100 ग्राम एवं हल्दी 50 से 100 ग्राम मिलाकर पौधों पर उस का छिड़काव किया जाए, तो उन्हें अनेक प्रकार के किटकों से बचाया जा सकता है। सावधानी केवल इतनी रखनी है, कि इनका प्रयोग एकदम छोटे पौधों पर नहीं करना है।
नीम के पत्तों के रस को पानी में मिलाकर अथवा उन्हें पानी में उबालकर उनका भी छिड़काव कीटनाशक के तौर पर किया जा सकता है।

हमारा दृढ़ संकल्प

पर्यावरण और अपने स्वास्थ्य को रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से होने वाली हानि से बचाने के लिए हमें दृढ़ संकल्प करके जैविक खादों एवं कीटनाशकों का प्रयोग करना होगा एवं अन्य लोगों को इसके लिए जागरूक करना होगा।
जैविक खाद एवं कीटनाशक वैसे तो सस्ते हैं, लेकिन ऑर्गेनिक खाद्यान्न अभी भी बाजार में बहुत महंगे हैं। इसका कारण सिर्फ इतना ही है, कि अभी इनका प्रयोग प्रचुर मात्रा में नहीं किया जा रहा है। लेकिन हमें इसके प्रयोग के लाभों को समझते हुए ऑर्गेनिक खेती की डिमांड बढ़ानी चाहिए, क्योंकि जब किसी भी चीज की डिमांड होती है, तभी उसकी उपलब्धि भी होती है।
लेकिन यह तभी होगा जब हम दृढ़ संकल्प के साथ जैविक खादों एवं कीटनाशकों का प्रयोग खुद करेंगे एवं दूसरों को भी करने के लिए बाध्य करेंगे।




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