आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
(इस आर्टिकल में आलस्य को जीवन की असफलताओं का कारण बताते हुए उससे बचने और आलस्य को दूर करने के उपायों को निर्दिष्ट किया गया है।)
आलस्य क्या है?
किसी काम को करने के लिए मानसिक चेतना का अभाव ही आलस्य है। अर्थात यदि हमें कोई काम दिया गया है या उसे करना हमारी ज़रूरत है, फिर भी हमारा उस में मन न लगना, कोई ना कोई बहाना बनाना, काम को आगे की ओर टालना इसे हम आलस्य का ही रूप कह सकते हैं। यह आलस्य दो प्रकार का हो सकता है। पहला शारीरिक रूप से थकावट के कारण, दूसरा दुष्ट प्रवृत्ति के विचारों के कारण।
शारीरिक रूप से थकावट के कारण जो आलस्य होता है, उसे तो हम थोड़ा सा आराम करके और कुछ अन्य उपायों द्वारा आसानी से दूर कर सकते हैं, लेकिन यदि हमारे विचारों में ही आलस्य समाया हुआ है, तो यह किसी भी दवा द्वारा दूर नहीं हो सकता है। ऐसा व्यक्ति तो केवल ठोकर खाकर ही अपने आलस्य को भगा सकता है।
हमारे जीवन में सफलता को प्राप्त करने के लिए जब दृढ़ निश्चय लिया जाता है, तो जीवन की सभी बुराइयों को जिसमें आलस्य भी शामिल है, उन्हें दूर कर देता है।
वास्तव में आलस्य और सफलता दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते। यदि हम आलस्य करते हैं, हर काम को कल पर टालते हैं, तो ऐसा करके हम अपने लिए सफलता के दरवाजे बंद कर देते हैं। इसके विपरीत यदि हम सफलता के पुजारी हैं, तो आलस्य, प्रमाद और हर बुराई को पीछे छोड़ कर हम सफलता को पाकर रहते हैं।
आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
यह वाक्य शत-प्रतिशत सच है, कि आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, क्योंकि यदि हम पुरुषार्थी हैं और आलस्य नहीं करते, तो जीवन में ऐसी कोई चीज नहीं है, जो हमें सफल इंसान बनने से रोक सके। चाहे वह कोई छात्र हो, या उद्योगपति यदि वह आलस्य न करें, और निरंतर अपने कर्म में लगा रहे तो निश्चित ही वह उन्नति को प्राप्त करता है। लेकिन आलस्य करने वाला सिर्फ बहाने ही बनाता रहता है, असफल होने पर वह दूसरों को दोष देता है, अपने भाग्य को कोसता है और अंत में आंसू बहाता है और दूसरों के सामने हाथ फैलाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने भी भगवत गीता के एक श्लोक में आलस्य के बारे में अर्जुन से यह स्पष्ट किया है, कि संसार में केवल आलस्य ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता का एक प्रसिद्ध श्लोक है।-
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महा रिपु:।
नास्त्युउद्यम समो बंधु: कृत्वा यं नावसीदति।।
इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण युद्ध से भागते हुए अर्जुन को कर्म का पथ दिखाते हुए समझाते हैं, कि"हे अर्जुन मनुष्य के शरीर में निवास करने वाला उसका आलस्य ही उस का सबसे बड़ा शत्रु है। परिश्रम से बढ़कर मनुष्य का दूसरा कोई मित्र नहीं है, परिश्रम करने वाले के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं है।"
सत्य भी है, यदि हम आलस्य जैसे दुर्गुण के वश में हो गए, तो सब कुछ भाग्य के भरोसे छोड़कर हम अपने आने वाले कल के लिए कोई भी पुरुषार्थ नहीं कर सकते।
यदि विद्यार्थी की बात की जाए, जिसे अपने भविष्य के लिए सुनहरे सपनों को सजाने का एक अनोखा समय विद्यार्थी जीवन के रूप में प्राप्त होता है, यदि इस विद्यार्थी जीवन में वह आलस्य करें, भोजन और अन्य सुखों में ही अपना जीवन बिताएं, तो ऐसा करके आने वाले भविष्य में उसे केवल दुख ही दुख मिलता है। वह दुख उसे परीक्षा में असफलता के रूप में मिल सकता है, विद्यार्थी जीवन के बाद जब वह गृहस्थ जीवन में प्रवेश करेगा, उस समय उसकी आजीविका के कष्ट के रूप में मिल सकता है, बिना परिश्रम के धन कमाने के चक्कर में किसी अन्य सजा के रूप में भी उसे इस आलस्य का दंड मिल सकता है। लेकिन सच तो यही है, कि बिना ठोकर खाए, आलस्य को छोड़ा नहीं जा सकता। ठोकर खाने के बाद सब संभलेंगे या नहीं, यह भी कहा नहीं जा सकता।
यदि गृहिणी की बात की जाए, तो एक आलसी गृहिणी अपने परिवार के लिए आवश्यक सभी कार्यों को समय पर नहीं कर सकती। यदि गृहिणी पुरुषार्थी है, तो घर के कार्यों को करने के साथ-साथ वह आजीविका को बढ़ाने वाले उपायों को करने में भी सक्षम होती है।
यदि किसी व्यवसायी की बात की जाए, तो आलस्य करने वाला कोई भी व्यवसायी तरक्की नहीं कर सकता। इसकी बजाय यदि आलस्य छोड़कर वह अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने में लग जाए, तो अवश्य ही एक सफल व्यवसायी बन सकता है।
अतः हमारे और सफलता के बीच में केवल और केवल आलस्य नाम की एक दीवार है, जिसे हमें दृढ़ निश्चय के साथ गिरानी होगी, तभी हमारा और सफलता का मिलन होगा।
आलस्य का कारण एवं उसे दूर करने के उपाय
प्राय: हमारे शरीर में थकावट होने के कारण, नींद पूरी ना होने के कारण हमें आलस्य का अनुभव होता है, थोड़ा आराम करके और अपने आप को motivate करके हम इस आलस्य को आसानी से दूर कर सकते हैं।
दूसरा हमारे विचार ही आलस्य से भरे हुए हैं, तो इन्हें तो अच्छे विचारों द्वारा ही दूर किया जा सकता है। हमें अपने से बड़ों की, जीवन में सफलता को प्राप्त हुए लोगों की समझाई गई बातों पर विचार करना चाहिए, और आलस्य को छोड़कर कर्म का मार्ग चुनना चाहिए।
भोजन एवं दिनचर्या में सुधार
हमारा तामसी भोजन जिसमें विभिन्न प्रकार के फास्ट फूड, तली हुई चीजें तथा अधिक भोजन ये सभी हमारे शरीर में आलस्य को उत्पन्न करते हैं। अतः हमें अपने भोजन में इन सभी वस्तुओं को कम कर देना चाहिए तथा इनके स्थान पर सादा भोजन जिसमें कच्ची सब्जियों, फल और अन्य पोषक तत्वों का समावेश हो, उन्हें लेना चाहिए।
यदि देर तक सोने की आदत है, तो उसमें हमें सुधार करना चाहिए, क्योंकि सूर्योदय के बाद उठने वाले लोगों में ज़्यादा आलस्य पाया जाता है।
योग एवं ध्यान द्वारा भी अपने शरीर से आलस्य को दूर रखा जा सकता है।
जीवन में एक लक्ष्य एवं दृढ़ निश्चय
यदि हमने दृढ़ निश्चय कर लिया, कि हम जीवन में कभी भी आलस्य नहीं करेंगे, तो यह दृढ़ निश्चय आलस्य के साथ-साथ जीवन की अन्य बुराइयों को भी हमसे दूर करने में सक्षम है। जरूरत है, तो केवल एक दृढ़ निश्चय की। इस दृढ़ निश्चय को वही कर सकता है, जिसके जीवन का कोई लक्ष्य हो, उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हम प्रतिज्ञाबद्ध हों। एक संकल्पित दृढ़ निश्चय का झोंका ही आलस्य को हमारे जीवन से हमेशा -हमेशा के लिए दूर कर सकता है।
अब जब भी आपको आलस्य आए, अपने आपको जरूर याद दिलाना कि "आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।"तब आप आलस्य के साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे, जैसा अपने शत्रु के साथ करते हैं।
Super article, it's very informative.
ReplyDeleteIf possible request you to please post it in all regional languages so that people from all over the India can be benefited from your deep knowledge.
Ok , will try to do this.
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